नई दिल्ली: चीन का दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में प्रभाव बढ़ता जा रहा है, जिससे न्यूज़ीलैंड में नाराजगी देखी जा रही है। रिपोर्ट के अनुसार, चीन अपनी कूटनीतिक और आर्थिक शक्ति का इस्तेमाल कर इस क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है, जिससे क्षेत्रीय शक्ति संतुलन में बदलाव की आशंका जताई जा रही है।
2023 की एक ब्रूकिंग्स इंस्टीट्यूशन रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने दक्षिण प्रशांत में अपनी मौजूदगी तेजी से बढ़ाई है, जिसमें कुक द्वीप समूह जैसे देशों के साथ रणनीतिक समझौते शामिल हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि चीन का यह कदम न केवल आर्थिक लाभ के लिए है, बल्कि सैन्य पैठ बनाने की संभावना भी जताई जा रही है, हालांकि यह अभी कम संभावना वाला माना जा रहा है।
न्यूज़ीलैंड और चीन के बीच गहरे आर्थिक संबंध हैं, जहां 2008 में हुए मुक्त व्यापार समझौते के बाद चीन न्यूज़ीलैंड का सबसे बड़ा वस्तु व्यापार साझेदार बन गया है। हालांकि, न्यूज़ीलैंड अपने पश्चिमी सहयोगियों, खासकर ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के साथ मिलकर चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने की कोशिश कर रहा है, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया है।
2024 में लोवी इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट ने चेतावनी दी है कि चीन की सहायता, जो अक्सर प्रशांत द्वीप देशों के स्थानीय अभिजनों के साथ सीधे बातचीत के माध्यम से दी जाती है, वहां की शासन व्यवस्था को कमजोर कर सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इन देशों में कर्ज संकट बढ़ रहा है, और पश्चिमी देशों को पारदर्शी व रियायती सहायता विकल्प पेश करने की जरूरत है।
चीन का यह कदम ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के पारंपरिक प्रभाव को चुनौती दे रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह प्रभाव अनियंत्रित रहा, तो दक्षिण प्रशांत में नई शक्ति संरचना देखने को मिल सकती है, जिसमें छोटे द्वीप देश कर्ज के जाल में फंस सकते हैं। इस बीच, न्यूज़ीलैंड सरकार इस मुद्दे पर कूटनीतिक पहल तेज करने की तैयारी में है।