नई दिल्ली: अशोका यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर और राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख अली खान महमूदाबाद की गिरफ्तारी ने देशभर में चर्चा का माहौल गर्म कर दिया है। हरियाणा पुलिस ने प्रोफेसर महमूदाबाद को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ से जुड़ी उनकी सोशल मीडिया टिप्पणियों के लिए 18 मई को गिरफ्तार किया था। अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जता दी है, और सभी की निगाहें अगले कुछ दिनों में होने वाली सुनवाई पर टिकी हैं।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ भारत की हालिया सैन्य कार्रवाई थी, जिसके तहत पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoJK) में आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया गया। इस ऑपरेशन में भारतीय सेना ने 21 आतंकी शिविरों पर हमला किया, जिसमें 100 से अधिक आतंकवादियों के मारे जाने का दावा किया गया। ऑपरेशन की जानकारी देने के लिए कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह ने प्रेस ब्रीफिंग की थी, जो भारतीय सशस्त्र बलों में महिलाओं की बढ़ती भूमिका का प्रतीक मानी गई।
हालांकि, प्रोफेसर महमूदाबाद ने इस प्रेस ब्रीफिंग को लेकर सोशल मीडिया पर टिप्पणी की, जिसमें उन्होंने महिला अधिकारियों की भागीदारी को “प्रतीकात्मक” और “दिखावा” करार दिया, अगर इसे जमीनी हकीकत में न बदला गया। उन्होंने दक्षिणपंथी टिप्पणीकारों से मुस्लिम समुदाय के खिलाफ हिंसा, जैसे मॉब लिंचिंग और अवैध बुलडोजिंग, पर भी आवाज उठाने की अपील की थी। उनकी इन टिप्पणियों को हरियाणा राज्य महिला आयोग ने सशस्त्र बलों का अपमान और सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने वाला बताया, जिसके बाद उनकी गिरफ्तारी हुई।
प्रोफेसर महमूदाबाद को 20 मई तक पुलिस हिरासत में रखा गया है। उनके वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में इस गिरफ्तारी को चुनौती दी है। सोमवार को प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने इस मामले को मंगलवार या बुधवार के लिए सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया। सिब्बल ने कोर्ट से तत्काल सुनवाई की मांग करते हुए कहा, “उन्हें देशभक्ति वाले बयान के लिए गिरफ्तार किया गया है।” हालांकि, कोर्ट ने अगले दिन के लिए सुनवाई तय की।
इस गिरफ्तारी ने व्यापक बहस छेड़ दी है। अशोका यूनिवर्सिटी के फैकल्टी एसोसिएशन ने इसे “निराधार” बताते हुए प्रोफेसर की तत्काल रिहाई की मांग की है। AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और CPI(M) की नेता सुभाषिणी अली सहित कई राजनीतिक नेताओं और कार्यकर्ताओं ने भी इस कार्रवाई की निंदा की है। दूसरी ओर, हरियाणा के बीजेपी युवा मोर्चा के महासचिव योगेश जठेरी और हरियाणा राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष रेणु भाटिया ने प्रोफेसर के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी।
कांग्रेस ने भी इस मामले पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। पार्टी के मीडिया प्रमुख पवन खेड़ा ने कहा, “प्रोफेसर की एकमात्र गलती यह है कि उन्होंने यह पोस्ट लिखी। उनकी दूसरी गलती उनका नाम है। यह मोदी सरकार के दोहरे मापदंडों को दर्शाता है।” उन्होंने आरोप लगाया कि हिंसा के खिलाफ बोलने वाले एक शिक्षाविद को जेल भेजा गया, जबकि सशस्त्र बलों का अपमान करने वाले भाजपा नेताओं पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई इस मामले में अहम मोड़ साबित हो सकती है। यह गिरफ्तारी अभिव्यक्ति की आजादी, राष्ट्रवाद और सांप्रदायिक सद्भाव जैसे संवेदनशील मुद्दों पर बहस को और तेज कर रही है। प्रोफेसर महमूदाबाद ने अपनी टिप्पणियों को मिसोजिनिस्टिक होने से इनकार किया है और इसे सेंसरशिप का मामला बताया है। अब कोर्ट के फैसले का इंतजार है, जो आने वाले दिनों में इस विवादास्पद मामले की दिशा तय करेगा।