बिहार की राजनीति में महागठबंधन अब ‘महाझगड़े’ की शक्ल लेता दिख रहा है। 2020 में जहां पूरा गठबंधन एक सुर में तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने की मुहिम में जुटा था, वहीं तेजस्वी आज 2025 में अपने ही साथियों की नजर में अकेले पड़ते जा रहे हैं। वजह? कांग्रेस की बदली रणनीति और नए प्रभारी कृष्णा अल्लावरू की आक्रामक एंट्री, जिसने तेजस्वी की सियासी राह मुश्किल कर दी है।
2020 का हीरो, 2025 में किनारे?
साल 2020 में पोस्टरों से लेकर रैलियों तक, ‘मुख्यमंत्री तेजस्वी’ की गूंज थी। कांग्रेस समेत पूरा महागठबंधन उन्हें चेहरा मान चुका था। लेकिन अब पांच साल बाद, वही कांग्रेस आरजेडी के नेतृत्व पर सवाल उठाने लगी है। कांग्रेस न सिर्फ सीटों की बराबरी की बात कर रही है, बल्कि यह भी साफ कर चुकी है कि वह अब किसी की “बी-टीम” नहीं बनेगी।
कृष्णा अल्लावरू: कांग्रेस की नई चाल, महागठबंधन का नया टकराव
तेजस्वी की परेशानी की असली शुरुआत हुई जब कांग्रेस आलाकमान ने कृष्णा अल्लावरू को बिहार का नया प्रभारी बनाया। अल्लावरू ने आते ही दो टूक शब्दों में कहा—“अब कांग्रेस झुकेगी नहीं, अकेले भी चुनाव लड़ने को तैयार है।” इसके साथ ही कांग्रेस ने बड़े संगठनात्मक बदलाव किए:
- अखिलेश सिंह की छुट्टी
- राजेश राम को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया
- कन्हैया कुमार ने यात्रा शुरू की, जिसमें खुद राहुल गांधी ने शिरकत कर माहौल गरमा दिया
‘नौकरी दो, पलायन रोको’ यात्रा: RJD की नींद उड़ाने वाला रोड शो
बेगूसराय में राहुल गांधी और कन्हैया की रैली में जो भीड़ जुटी, उसने RJD के खेमे में बेचैनी बढ़ा दी। तेजस्वी यादव, जो कांग्रेस को सहयोगी दल भर समझते थे, अब दिल्ली दरबार में कांग्रेस को मनाने पहुंचे। लेकिन दिल्ली में 15 अप्रैल को हुई मुलाकात—जिसमें मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी शामिल थे—तेजस्वी के लिए सुखद साबित नहीं हुई।
कांग्रेस का संदेश साफ: अब दबने का नहीं, ताकत दिखाने का वक्त है
कांग्रेस इस बार सीट शेयरिंग में पिछली बार की 70 सीटों की बात नहीं मानने वाली। उसे सिर्फ “19 सीटों की पार्टी” कहकर नजरअंदाज करने की गलती RJD नहीं कर सकती। कांग्रेस अपने बूते चुनाव लड़ने के मूड में भी है और तेजस्वी को सीएम चेहरा मानने में भी अब हिचक दिखा रही है।
कांग्रेस को डर है कि अगर 2020 जैसे हालात बने, तो इस बार राष्ट्रीय स्तर पर भी इसकी छवि कमजोर हो सकती है। इसलिए कांग्रेस हर मोर्चे पर तैयारी में जुट गई है—संगठन, संदेश, और जनसंपर्क तीनों स्तरों पर।
तेजस्वी की मुश्किलें और 17 अप्रैल की निर्णायक बैठक
तेजस्वी यादव के सामने अब दोहरी चुनौती है—एक तरफ एनडीए की बढ़ती रणनीति और दूसरी ओर महागठबंधन में भीतर की बगावत। 17 अप्रैल को होने वाली अगली बड़ी बैठक में यह तय होगा कि कांग्रेस को कितनी सीटें मिलेंगी और क्या तेजस्वी यादव को दोबारा सर्वमान्य नेता माना जाएगा या नहीं। अगर यह दरार गहराई, तो बिहार में महागठबंधन का हाल दिल्ली में हुए ‘आप-कांग्रेस’ समीकरण जैसा हो सकता है—एक गठबंधन, कई चेहरे और अंत में अलग-अलग रास्ते। राजनीति के इस शतरंज में अब चाल कांग्रेस की है, जवाब तेजस्वी को देना है।
2025 का बिहार चुनाव अब सिर्फ विकास या जातीय समीकरण का मुद्दा नहीं, बल्कि लीडरशिप की लड़ाई बन गया है। और इस बार कांग्रेस ने साफ कर दिया है—या बराबरी का रिश्ता, या फिर अपनी राह। बिहार में सियासत गरमा रही है, गठबंधन डगमगा रहा है और तेजस्वी की चुनौती दिन-ब-दिन बड़ी होती जा रही है। देखते हैं 17 अप्रैल को राजनीति कौन सी करवट लेती है।