बिहार की राजनीति में कांग्रेस एक नई लकीर खींचने की तैयारी में है। पार्टी का हाल ही में हुआ अधिवेशन, कन्हैया कुमार की सक्रियता और बिहार में कांग्रेस की यात्रा – ये सभी संकेत दे रहे हैं कि कांग्रेस अब अकेले दम पर अपनी सियासी जमीन तैयार करने में जुटी है।
कांग्रेस की बिहार यात्रा अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच रही है। राहुल गांधी की यात्राओं और युवाओं को आगे लाने के संकल्प ने बिहार कांग्रेस के भीतर एक नई ऊर्जा भरने की कोशिश की है। पार्टी का दावा है कि इस यात्रा से बिहार में बदलाव की आगाज हो चुका है और लोग इसमें जोर-शोर से जुड़ रहे हैं।
यात्रा के दौरान कन्हैया कुमार को दी जा रही तवज्जो और तेजस्वी यादव की चुप्पी भी बड़े राजनीतिक संकेत दे रही है। कांग्रेस के रणनीति के जानकार बता रहे हैं कि युवा चेहरों को पार्टी में अधिक जिम्मेदारी देने का फैसला पहले ही हो चुका है। यह बदलाव बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की रणनीति को नया आकार दे सकता है।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने अधिवेशन के दौरान यह साफ कर दिया कि जो निष्क्रिय नेता हैं, उन्हें पद छोड़ देना चाहिए। यानी, कांग्रेस अब नए और ऊर्जावान चेहरों को आगे लाने के मूड में है। यही कारण है कि कन्हैया कुमार की बिहार में बढ़ती सक्रियता को एक बड़ी रणनीतिक चाल माना जा रहा है।
क्या विधानसभा चुनाव में कांग्रेस कन्हैया कुमार को चेहरा बना सकती है? यह सवाल बिहार की सियासत में जोर पकड़ रहा है। कांग्रेस के भीतर भी एक बड़ा वर्ग चाहता है कि युवाओं को नेतृत्व में लाया जाए और एक आक्रामक विपक्षी भूमिका निभाई जाए।
जहां कांग्रेस अपनी सियासी जमीन मजबूत करने में लगी है, वहीं RJD इस पूरे घटनाक्रम पर चुप्पी साधे हुए है। तेजस्वी यादव की यह चुप्पी संदेह पैदा कर रही है कि क्या कांग्रेस और RJD के रिश्ते में अब पहले जैसी बात नहीं रही? क्या कांग्रेस अपने अलग रास्ते तलाश रही है? बिहार में कांग्रेस कितनी सीटों की मांग करेगी, इस पर अभी संशय बना हुआ है, लेकिन साफ है कि इस बार पार्टी किसी भी कीमत पर सिर्फ सहायक भूमिका में नहीं रहना चाहती।
कांग्रेस का यह नया रुख बिहार की राजनीति में एक बड़े बदलाव का संकेत दे रहा है। पार्टी अब युवाओं, सामाजिक न्याय और रोजगार जैसे मुद्दों पर खुलकर सामने आने की तैयारी में है। राहुल गांधी की यात्रा और कन्हैया कुमार की तेजी से बढ़ती सक्रियता को देखकर यह कहना गलत नहीं होगा कि कांग्रेस इस बार बिहार में कुछ बड़ा करने के मूड में है।
अब देखना यह होगा कि RJD इस पूरी स्थिति से कैसे निपटती है और क्या महागठबंधन में सीटों को लेकर कोई नया विवाद खड़ा होता है। लेकिन एक बात तो तय है – बिहार की राजनीति में इस बार सियासी समीकरण पूरी तरह बदल सकते हैं!