तिरुवनंतपुरम : केरल सरकार के स्कूलों में जुंबा डांस शुरू करने के फैसले ने एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। राज्य सरकार का दावा है कि यह कदम बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर करने के लिए उठाया गया है, साथ ही ड्रग्स के खिलाफ जागरूकता फैलाने के लिए भी यह प्रोग्राम शुरू किया गया है।
मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन ने कहा कि संगीत और ऐरोबिक मूवमेंट से बच्चों का तनाव कम होगा और उनकी ऊर्जा बढ़ेगी। लेकिन इस फैसले का मुस्लिम संगठनों ने जमकर विरोध किया है, जिससे राज्य में तीखी बहस छिड़ गई है।
सरकार का रुख
शिक्षा मंत्री आर बिंदु ने इस पहल का समर्थन करते हुए कहा, “हम 21वीं सदी में जी रहे हैं, मध्ययुगीन सोच से बाहर निकलना होगा। जुंबा डांस से न सिर्फ बच्चों बल्कि आम लोगों को भी फायदा होगा।” सरकार का कहना है कि इसके लिए स्कूलों में प्रशिक्षित इंस्ट्रक्टर नियुक्त किए जाएंगे, और यह प्रोग्राम बच्चों के सीखने की क्षमता को बढ़ाएगा। कुछ स्कूलों में पहले ही इसकी शुरुआत हो चुकी है।
मुस्लिम संगठनों का विरोध
दूसरी ओर, समस्त केरल सुन्नी युवाजन संघम (SYS) के राज्य सचिव अब्दुस्समाद पूक्कूत्तुर ने इसे नैतिकता के खिलाफ बताया है। उन्होंने अभिभावकों से इस पर गंभीरता से विचार करने की अपील की।
इसी तरह, मुस्लिम स्टूडेंट फेडरेशन (MSF) के स्टेट प्रेसिडेंट पीके नवास ने सवाल उठाया कि स्कूल में डांस प्रोग्राम पढ़ाई को कैसे प्रभावित नहीं करेगा। उन्होंने सरकार से पूछा कि क्या इस फैसले के लिए शिक्षकों, अभिभावकों और छात्रों से राय ली गई है।
विजडम इस्लामिक ऑर्गनाइजेशन के महासचिव टीके अशरफ, जो एक शिक्षक भी हैं, ने कहा, “मैं अपने बेटे को जुंबा डांस में हिस्सा नहीं लेने दूंगा। हमने सरकारी स्कूल में क्वालिटी एजुकेशन के लिए बच्चे को भर्ती किया था, न कि इस तरह के प्रोग्राम के लिए।”
समस्ता केरल जमीय्यातुल उलेमा ने भी आपत्ति जताई है, उनका कहना है कि डांस में इस्तेमाल होने वाले कपड़े और मूवमेंट धार्मिक मूल्यों के खिलाफ हैं।
बहस का आधार
हालांकि, इस विवाद में न तो सरकार और न ही विरोधी पक्षों ने कोई वैज्ञानिक अध्ययन पेश किया है। वेबसाइट्स जैसे डूल न्यूज़ और ऑनमेनोरमा के अनुसार, मुस्लिम संगठन इसे इस्लाम विरोधी मानते हैं, जबकि सरकार इसे स्वास्थ्य सुधार से जोड़ रही है। इससे पहले, जुंबा डांस के मानसिक स्वास्थ्य लाभों पर 2024 में ज़ुम्बा डॉट कॉम की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि यह तनाव कम करने और आत्मविश्वास बढ़ाने में मददगार हो सकता है, लेकिन इसकी स्कूली शिक्षा से सीधी कड़ी पर शोध की कमी है।
आगे की राह
यह विवाद भारत में शिक्षा और संस्कृति के बीच टकराव को दर्शाता है, जो वैश्विक स्तर पर भी देखा जाता है, जैसे अमेरिका में कंडोम वितरण को लेकर हुई बहस। विशेषज्ञों का मानना है कि इस मुद्दे को हल करने के लिए डेटा-आधारित चर्चा और सभी पक्षों की सहमति जरूरी है। क्या केरल सरकार इस विरोध को दरकिनार करेगी या फिर रायशुमारी के बाद नीति बदलेगी, यह आने वाले दिनों में साफ होगा।