नई दिल्ली: लोकसभा में वक्फ संशोधन विधेयक पर चर्चा के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने विपक्ष पर अल्पसंख्यकों में डर फैलाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि यह विधेयक किसी धर्म विशेष के खिलाफ नहीं है, बल्कि वक्फ संपत्तियों के पारदर्शी प्रशासन के लिए लाया गया है। हालांकि, इस विधेयक को लेकर विपक्षी दलों और मुस्लिम धर्मगुरुओं ने कड़ा विरोध जताया है।
AIMPLB के पास क्या विकल्प?
अगर यह विधेयक लोकसभा और राज्यसभा में पारित हो जाता है, तो ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) इसके खिलाफ न्यायिक लड़ाई लड़ सकता है। लखनऊ स्थित ऐशबाग ईदगाह के इमाम मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने इस विधेयक पर निराशा व्यक्त की। उनका कहना है कि प्रस्तावित संशोधन वक्फ के हित में नहीं, बल्कि उसके लिए नुकसानदेह साबित हो सकते हैं।
मौलाना ने दावा किया कि यदि यह विधेयक पास हो जाता है, तो AIMPLB कोर्ट का रुख करेगा, क्योंकि इसमें किए गए कई संशोधन संविधान की धारा 14, 25, 26 और 29 का उल्लंघन करते हैं। उन्होंने कहा कि वक्फ काउंसिल और बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने का प्रस्ताव नाइंसाफी है, क्योंकि किसी भी अन्य धार्मिक ट्रस्ट में अन्य धर्मों के लोगों को कानूनी रूप से शामिल नहीं किया जाता।
वक्फ संपत्तियों और धार्मिक मामलों को लेकर आपत्तियां
मौलाना खालिद रशीद का कहना है कि देशभर में 90% से अधिक वक्फ संपत्तियां मस्जिदों, कब्रिस्तानों और दरगाहों से जुड़ी हुई हैं। ऐसे में यह दावा करना कि यह धार्मिक मामला नहीं है, सरासर गलत है। उन्होंने आशंका जताई कि वक्फ से जुड़ी संपत्तियों के संरक्षण को कमजोर करने से धार्मिक स्थलों को नुकसान हो सकता है।
उन्होंने एक अन्य आपत्ति में कहा कि इस विधेयक में किसी गैर-मुस्लिम को यह साबित करने की शर्त रखी गई है कि वह कम से कम पांच वर्षों से इस्लाम धर्म का अनुयायी है, तभी वह वक्फ कर सकता है। मौलाना के अनुसार, यह प्रावधान संविधान की धारा 26 के खिलाफ है।
सरकार के नियंत्रण की आशंका
मौलाना ने यह भी कहा कि इस विधेयक के तहत वक्फ बोर्ड के सदस्यों का चयन सरकार द्वारा नामांकन के माध्यम से किया जाएगा, जबकि अब तक यह प्रक्रिया चुनाव के जरिए होती थी। उन्होंने इसे गैर-संवैधानिक करार दिया और आरोप लगाया कि यह वक्फ बोर्ड को सरकारी नियंत्रण में लाने की कोशिश है। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि जब मौजूदा वक्फ एक्ट में पहले से ही महिलाओं की भागीदारी का प्रावधान है, तो फिर नए विधेयक में इसे दोहराने की क्या आवश्यकता थी?
आगे की रणनीति
AIMPLB और अन्य मुस्लिम संगठनों ने इस विधेयक के खिलाफ अपने विरोध को तेज करने का संकेत दिया है। यदि इसे संसद में पारित कर दिया जाता है, तो संभावना है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस मामले को कोर्ट में चुनौती देगा। अब देखना यह होगा कि सरकार इस विवादित विधेयक पर क्या रुख अपनाती है और क्या विपक्ष तथा मुस्लिम संगठनों की आपत्तियों को दूर करने के लिए कोई संशोधन किया जाता है या नहीं।