भाकपा-माले ने आरा के व्यवहार न्यायालय द्वारा 23 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाए जाने को न्यायिक जनसंहार करार दिया है। पार्टी के राज्य सचिव कुणाल ने कहा कि यह फैसला भाजपा और सामंती ताकतों की साजिश का नतीजा है। उन्होंने कहा कि माले इस फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में जाएगी। यह फैसला 2015 में हुए जेपी सिंह हत्याकांड से जुड़ा है। इस मामले में मनोज मंजिल सहित 23 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। मंजिल भाकपा-माले के विधायक हैं।
पार्टी ने कहा है कि यह फैसला राजनीतिक द्वेष से प्रेरित है। उन्होंने कहा कि मंजिल और अन्य सभी आरोपी निर्दोष हैं। पार्टी ने कहा कि वह इस फैसले के खिलाफ हर संभव कानूनी लड़ाई लड़ेगी।
उन्होंने कहा कि उसी भोजपुर में दलित-गरीबों के एक से बढ़कर एक जनसंहार हुए, लेकिन एक मामले में भी अपराधियों को आज तक सजा नहीं हुई. लेकिन दलित-गरीबों की आवाज बनने वाले हमारे नेताओं के साथ घोर अन्याय हुआ है. सभी 23 अभियुक्तों को एक प्रकार की ही – आजीवन कारावास की सजा दी गई. न्यायालय द्वारा दोषी पाए गए लोगों में 90 साल के बुजुर्ग रामानंद प्रसाद भी शामिल हैं.
उन्होंने कहा कि देश को मनोज मंजिल जैसे नेताओं की जरूरत है. एक दलित-मजदूर परिवार से आने वाले मनोज मंजिल ने छात्र जीवन में ही दलित-गरीबों के संघर्ष को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया. छात्र जीवन में उन्होंने कैंपस के भीतर एक प्रखर छात्र नेता की पहचान बनाई. उसके बाद उन्होंने भोजपुर के ग्रामांचलों में काम करना शुरू किया. उनके नेतृत्व में चलाए गए सड़क पर स्कूल आंदोलन ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त की. सीएए कानून में संशोधन के खिलाफ भी उन्होंने इलाके में कई आंदोलन किए. कोविड काल में भी उनकी उल्लेखनीय भूमिका रही. वे अपनी टीम के साथ लगातार अस्पतालों में कैंप करते रहे और अपनी जान की बिना परवाह किए लोगों के इलाज की व्यवस्था करवाते रहे. सड़क दुर्घटना हो या फिर जनता की कोई अन्य समस्या, मनोज मंजिल जनता तक पहुंचने वाले सबसे पहले नेता हुआ करते थे. अभी वे खेत मजदूर मोर्चे पर काम कर रहे थे और खेग्रामस के राज्य अध्यक्ष थे.
अपनी पहलकदमियों और दलित-गरीबों के प्रति अटूट समर्पण की वजह से मनोज मंजिल अपने इलाके में काफी लोकप्रिय थे. उनकी लोकप्रियता का आलम यह था कि 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में उन्हें अगिआंव विधानसभा सीट पर 62 प्रतिशत से अधिक मत मिले. उनके निकटतम प्रतिद्वन्दी भाजपा-जदयू गठबंधन के उम्मीदवार 50 हजार से अधिक वोटों से पीछे रहे गए थे. इसी लोकप्रियता के कारण भाजपा व सामंती ताकतों को इस उभरते नौजवान दलित विधायक से डर समाया हुआ था और वे लगातार उनके खिलाफ साजिशें करती रहती थीं. संसद या विधानसभा में इन ताकतों को जनता के पक्ष में बोलने वाली आवाजें नहीं चाहिए. लेकिन उनकी इन साजिशों से दलित-गरीबों की दावेदारी नहीं रूकने वाली है. विदित हो कि 2015 के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले मनोज मंजिल व उनके साथियों को हत्या के उपर्युक्त मुकदमे में साजिश करके फंसाया गया था.