इंदौर : एक 81-वर्षीय रिटायर्ड स्कूल प्रिंसिपल को साइबर फ्रॉड के तहत “डिजिटल अरेस्ट” में फंसाकर 1.02 करोड़ रुपये से अधिक की रकम ठगी गई। इस मामले में इंदौर क्राइम ब्रांच के अतिरिक्त डीसीपी राजेश दंडोतिया ने विस्तार से जानकारी दी।
रिटायर्ड प्रिंसिपल नंदिनी को 27 अप्रैल, 2025 की सुबह एक फोन कॉल मिला, जिसमें उन्हें बताया गया कि उनके सिम कार्ड को डिएक्टिवेट किया जा रहा है और उनके खिलाफ 267 एफआईआर दर्ज हैं। फ्रॉडस्टर्स ने खुद को कानून प्रवर्तन अधिकारी बताते हुए नंदिनी को रात भर “डिजिटल अरेस्ट” में रखा, जहां उन्हें घर से बाहर न निकलने और किसी से बात न करने की धमकी दी गई।
अगले दिन, नंदिनी ने 50 लाख रुपये की फिक्स डिपॉजिट ब्रेक करने के लिए बैंक जाने का प्रयास किया। हालांकि, सतर्क बैंक मैनेजर ने उनके चेहरे पर परेशानी देखकर स्थिति को संदिग्ध माना और ट्रांजैक्शन को टाल दिया। इसके बाद बैंक मैनेजर ने तुरंत पुलिस को सूचित किया।
पुलिस को सूचना मिलने के बाद उन्होंने नंदिनी को फोन पर समझाया कि यह एक फर्जी कॉल है। नंदिनी ने अपना फोन स्विच ऑफ कर दिया, लेकिन दो दिन बाद फिर से फ्रॉडस्टर्स ने कॉल करना शुरू कर दिया। पुलिस ने तुरंत कार्रवाई करते हुए नंदिनी को समझाया कि ऐसे डिजिटल अरेस्ट कॉल फर्जी होते हैं।
हालांकि नंदिनी को 1.02 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ, लेकिन बैंक मैनेजर की सतर्कता के कारण 50 लाख रुपये की रकम बचाई जा सकी। इंदौर क्राइम ब्रांच ने इस मामले में फ्रॉडस्टर्स के खिलाफ जांच शुरू कर दी है और संबंधित बैंक अकाउंट्स और नंबरों की पहचान की प्रक्रिया में जुट गई है।
यह घटना भारत में बढ़ती साइबर धोखाधड़ी की प्रवृत्ति को दर्शाती है, जहां बुजुर्गों को निशाना बनाया जा रहा है। इंदौर पुलिस ने बताया कि 1 जनवरी, 2025 से अब तक डिजिटल अरेस्ट के मामलों में कमी आई है, जो जागरूकता अभियानों का सकारात्मक प्रभाव दिखाता है।
राजेश दंडोतिया ने कहा, “बैंक मैनेजर और पुलिस की त्वरित कार्रवाई ने एक बड़े नुकसान को टाल दिया। हम जनता से अपील करते हैं कि वे साइबर फ्रॉड के प्रति सतर्क रहें और किसी भी संदिग्ध गतिविधि की सूचना तुरंत पुलिस को दें।”
इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि डिजिटल अरेस्ट जैसी धोखाधड़ी से बचने के लिए जागरूकता और सतर्कता ही सबसे बड़ा हथियार है।