Danapur Vidhan Sabha 2025: बिहार की राजनीति में दानापुर विधानसभा सीट (संख्या 186) हमेशा से अहम मानी जाती रही है। पटना जिले की इस सीट का सियासी सफर कांग्रेस से शुरू होकर जनता दल, भाजपा और राजद तक का रहा है। बदलते राजनीतिक समीकरण, जातीय गणित और नेताओं की व्यक्तिगत पकड़ ने दानापुर को कई बार चुनावी सुर्खियों में पहुंचाया।
चुनावी इतिहास
आज़ादी के बाद से लेकर 80 के दशक तक इस सीट पर कांग्रेस का दबदबा रहा। लेकिन 1985 के बाद जनता दल ने यहां अपनी जड़ें जमानी शुरू कीं। 90 के दशक में जब राष्ट्रीय जनता दल (RJD) का उदय हुआ तो दानापुर भी उसकी झोली में आ गया। खास बात यह रही कि लालू प्रसाद यादव ने 1995 में दानापुर से भी जीत दर्ज की थी। हालांकि मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने यह सीट छोड़ दी और उपचुनाव में भाजपा उम्मीदवार विजय सिंह ने जीत हासिल की।
2000 और 2002 के चुनावों में RJD ने अपनी पकड़ बनाए रखी। 2002 के उपचुनाव में रामानंद यादव की जीत ने राजद को राहत दी। लेकिन 2005 से भाजपा ने इस सीट पर मजबूत पकड़ बना ली। आशा देवी, जिनके पति और भाजपा नेता सत्यनारायण सिन्हा की राजनीतिक विवाद में हत्या हो गई थी, ने इस सीट से लगातार तीन बार (2005, अक्टूबर 2005 और 2010) जीत दर्ज की। उनकी राजनीतिक उपस्थिति ने भाजपा को लंबे समय तक यहां टिकाए रखा।
2015 में जब राजद और जदयू साथ आए तो मुकाबला बेहद कड़ा हो गया। राजद के राज किशोर यादव और भाजपा की आशा देवी के बीच कांटे की टक्कर हुई। आशा देवी को लगभग 72 हजार वोट मिले जबकि राजद उम्मीदवार को करीब 66 हजार वोट। हालांकि, अंतिम बाजी भाजपा के हाथ रही। 2020 में तस्वीर बदल गई। राजद के रीतलाल यादव ने भाजपा की आशा देवी को 15,924 वोटों से हराकर इस सीट को फिर से राजद के खाते में डाल दिया। रीतलाल यादव की जीत ने साफ कर दिया कि दानापुर में जातीय समीकरण और व्यक्तिगत पकड़ दोनों ही निर्णायक हैं।
जातीय समीकरण
दानापुर का चुनावी गणित जातियों के संतुलन पर आधारित है। यहां करीब तीन लाख से अधिक मतदाता हैं, जिनमें यादव लगभग 80 हजार और अगड़ी जातियों (राजपूत, भूमिहार, ब्राह्मण) के वोटर 60 हजार से अधिक हैं। वैश्य समाज का भी यहां गहरा प्रभाव है। इसके अलावा पासवान, रविदास, मुस्लिम और कुर्मी समुदाय भी संतुलन बिगाड़ने की क्षमता रखते हैं। यादव मतदाता अक्सर राजद के पक्ष में झुकते हैं, जबकि अगड़ी जातियों का झुकाव भाजपा की ओर रहता है। यही वजह है कि दानापुर का हर चुनाव दिलचस्प और अनिश्चितताओं से भरा रहता है।






















