दरभंगा जिले की विधानसभा सीट संख्या 82 दरभंगा ग्रामीण Darbhanga Gramin Vidhansabha बिहार की सियासत में खास महत्व रखती है। इस सीट का चुनावी इतिहास बताता है कि यहां मतदाता जातीय समीकरण, राजनीतिक लहर और उम्मीदवार की पकड़ को ध्यान में रखकर फैसला करते हैं। साल 2010 से पहले यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थी, लेकिन उसके बाद से यह सामान्य वर्ग के लिए खुल गई। पहली बार 1977 में यहां चुनाव हुआ, जब जनता पार्टी के उम्मीदवार जगदीश चौधरी ने जीत दर्ज की और विधानसभा पहुंचे।
चुनावी सफर और आरजेडी का दबदबा
इस सीट पर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) का प्रभाव लंबे समय से कायम है। साल 2000 और 2005 के दोनों चुनावों में आरजेडी के पीतांबर पासवान ने जीत दर्ज की। 1995 में जनता दल के मोहन राम यहां से विधायक बने थे, लेकिन इसके बाद से आरजेडी ने लगातार अपनी पकड़ मजबूत की। 2010, 2015 और 2020—तीनों चुनावों में आरजेडी के ललित कुमार यादव ने यहां से जीत हासिल की।
Alinagar Vidhansabha 2025: बदलते समीकरण और 2025 के चुनावी रण में संभावनाओं का विश्लेषण
2015 के विधानसभा चुनाव में ललित यादव ने जीतनराम मांझी की पार्टी ‘हम’ के नौशाद अहमद को 34,491 वोटों के भारी अंतर से हराया। वहीं, 2020 में मुकाबला और कड़ा हुआ, लेकिन एक बार फिर ललित यादव ने जीत दर्ज की। उन्होंने जेडीयू उम्मीदवार फराज फातमी को 2,141 वोटों के छोटे अंतर से हराया। यादव को 64,929 वोट (41.26%) मिले, जबकि फातमी को 62,788 वोट (39.9%) हासिल हुए। लोजपा के प्रदीप ठाकुर 17,586 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे।
जातीय समीकरण
दरभंगा ग्रामीण का चुनाव हमेशा जातीय गणित पर आधारित रहा है। इस सीट पर मुस्लिम, यादव और ब्राह्मण मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। अनुमान के मुताबिक मुस्लिम मतदाता लगभग 3 लाख, ब्राह्मण मतदाता करीब 4 लाख और यादव मतदाता करीब 1.6 लाख हैं। इनके अलावा मल्लाह समुदाय के लगभग 2 लाख, एससी-एसटी के करीब 2.5 लाख और कोइरी, कुर्मी, पासवान व सहनी जातियों का भी बड़ा वोट बैंक मौजूद है।
2020 के चुनाव में यहां कुल 2.77 लाख मतदाताओं ने मतदान किया, जिनमें पुरुष मतदाता 53.2% और महिलाएं 46.7% रहीं। इतना विविध और संतुलित वोट बैंक यह तय करता है कि किस दल का गठजोड़ और उम्मीदवार किसे अधिक आकर्षित कर पाता है।
भविष्य की सियासत
दरभंगा ग्रामीण विधानसभा में आरजेडी ने लगातार सफलता हासिल की है, लेकिन 2020 का चुनाव यह संकेत देता है कि एनडीए और महागठबंधन के बीच मुकाबला बेहद करीबी होता जा रहा है। मुस्लिम और यादव वोट जहां आरजेडी को मजबूत आधार देते हैं, वहीं ब्राह्मण और पासवान वोटरों की नाराज़गी स्थिति बदल सकती है। ऐसे में 2025 का चुनाव इस सीट पर बेहद दिलचस्प होने वाला है।






















