रमज़ान का पाक महीना आते ही बिहार में ‘दावत-ए-इफ्तार’ का राजनीतिक रंग’ और गहरा हो गया है। हर साल की तरह इस बार भी सत्ताधारी और विपक्षी दलों द्वारा भव्य इफ्तार पार्टियों का आयोजन किया जा रहा है, लेकिन इस बार के इफ्तार आयोजन में केवल दुआओं और रोज़ेदारों की मेहमाननवाज़ी नहीं होगी, बल्कि इसमें बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सियासी बिसात भी बिछाई जाएगी।
जदयू का इफ्तार: बहिष्कार के बीच सियासी दांव
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 23 मार्च को अपने आवास पर दावत-ए-इफ्तार का आयोजन कर रहे हैं। इस इफ्तार में कई मुस्लिम संगठनों और प्रभावशाली हस्तियों को आमंत्रित किया गया है। लेकिन इस बीच जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने नीतीश कुमार के इफ्तार और अन्य आयोजनों के बहिष्कार का फरमान जारी कर सियासी भूचाल खड़ा कर दिया है। जमीयत प्रमुख मौलाना अरशद मदनी का आरोप है कि नीतीश कुमार सत्ता की खातिर मुस्लिम समुदाय के साथ अन्याय को नजरअंदाज कर रहे हैं और सरकार के “संविधान विरोधी” फैसलों का समर्थन कर रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या जदयू का इफ्तार मुस्लिम समाज के भीतर नीतीश की छवि को सुधार पाएगा या यह महज एक चुनावी स्टंट बनकर रह जाएगा?
राबड़ी आवास नहीं, अब्दुल बारी सिद्दीकी के घर होगा राजद का इफ्तार
मुख्य विपक्षी दल राजद (राष्ट्रीय जनता दल) ने भी 24 मार्च को इफ्तार पार्टी का आयोजन करने का ऐलान किया है। लेकिन इस बार यह आयोजन राबड़ी देवी के आवास पर नहीं, बल्कि पार्टी के वरिष्ठ नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी के घर पर होगा।
राजद के इस इफ्तार में कई मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधि तो शामिल होंगे ही, साथ ही कांग्रेस और महागठबंधन के अन्य दलों के नेताओं की मौजूदगी पर भी सबकी नजर रहेगी। यह आयोजन केवल रोज़े की अफ्तारी तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि महागठबंधन की सियासी एकता को दर्शाने का भी एक मंच बनेगा।