भाजपा के सामने अब बिहार विधानसभा का चुनाव है, जहां जीत उसे मयस्सर नहीं होती। जदयू के साथ भाजपा का प्रदर्शन निखर जाता है और जदयू के बिना भाजपा के तमाम हथकंडे बिहार में फेल हो जाते हैं। 2015 का बिहार विधानसभा चुनाव इसका स्पष्ट उदाहरण है। लेकिन 2025 में भी भाजपा नीतीश कुमार और जदयू के पिछलग्गू की भूमिका से निजात नहीं पाएगी या फिर भाजपा उस अस्त्र को आजमाएगी, जिसने उसे मध्य प्रदेश और दिल्ली जैसे राज्य झोली में डाल दिए।
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मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा ने किया था प्रयोग
दरअसल, मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा ने एक बड़ा प्रयोग किया। उसने अपने बड़े यानि राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना चुके नेताओं को वापस विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी बना दिया। इसमें तीन केंद्रीय मंत्री समेत सात सांसद शामिल रहे। केंद्रीय मंत्रियों में नरेंद्र सिंह तोमर, प्रह्लाद सिंह पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते को विधानसभा चुनाव लड़ना पड़ा। जबकि सांसद रहे कैलाश विजयवर्गीय, रीति पाठक, गणेश सिंह, मधु वर्मा भी विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार बने। इस कारण भाजपा को शिवराज सिंह चौहान जैसे नेता को राज्य की राजनीति से हटाकर केंद्र में लाने में सहूलियत मिली। साथ ही एंटी इन्कम्बैंसी को इन बड़े चेहरों ने फीका कर दिया।
दिल्ली चुनाव में भी भाजपा का प्रयोग
कुछ ऐसा ही प्रयोग दिल्ली में भी हुआ। 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने प्रवेश वर्मा और रमेश बिधूड़ी को बेटिकट कर दिया। इसके बाद 2025 के विधानसभा चुनाव में प्रवेश वर्मा को पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल के खिलाफ और रमेश बिधूड़ी को निवर्तमान सीएम आतिशी के खिलाफ उतार दिया। भाजपा की इस चाल से आम आदमी पार्टी उलझी और अपने सबसे बड़े नेता अरविंद केजरीवाल समेत कई बड़ी सीटों पर हारने के साथ सत्ता से बाहर हो गई।
बिहार विधानसभा चुनाव के लिए BJP की रणनीति
अब आने वाला चुनाव बिहार का है। भाजपा का फोकस बिहार है और यह उसकी हर नीति रणनीति में स्पष्ट दिख रहा है। केंद्रीय बजट पर बिहार पर विशेष मेहरबानी चुनावी तोहफा ही माना जा रहा है। मंत्रिमंडल में बिहार से 8 मंत्रियों की सूची भी कुछ ऐसा ही कहती है। बिहार से केंद्रीय मंत्रिमंडल में अभी जीतन राम मांझी, ललन सिंह, गिरिराज सिंह, चिराग पासवान, नित्यानंद राय, रामनाथ ठाकुर, राज भूषण चौधरी और सतीश चंद्र दुबे शामिल हैं। इनमें गिरिराज सिंह, नित्यानंद राय, राजभूषण चौधरी और सतीश चंद्र दूबे भाजपा से हैं। लोकसभा में बिहार से अभी भाजपा के 12 सदस्य हैं। बात बिहार के आगामी चुनाव की करें तो क्या भाजपा मध्य प्रदेश और दिल्ली वाला फार्मूला बिहार में भी लागू कर सकती है?
इसके पीछे का मकसद यह हो सकता है कि जब भी बिहार में भाजपा के चेहरे की बात कही जाती है तो राजनीतिक पंडित यह कहते हैं कि भाजपा के पास नीतीश कुमार को काउंटर करने वाला चेहरा अभी नहीं है। ऐसे में अगर भाजपा अपने सांसदों को बिहार विधानसभा चुनाव में उतारती है तो भाजपा के उम्मीदवारों का कद जदयू के मुकाबले बड़ा दिख सकता है।
बिहार विधानसभा चुनाव में अगर भाजपा सांसदों को उम्मीदवार बनाती है तो किन किन सांसदों पर असर होगा।
- अगर ऐसा हुआ तो सबसे पहला असर रविशंकर प्रसाद पर पड़ सकता है। पटना साहिब से सांसद रविशंकर प्रसाद अपनी वरिष्ठ कद के बावजूद केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह नहीं बना पा रहे हैं। रविशंकर जिस पटना साहिब से सांसद हैं, वहां से भाजपा को दूसरे उम्मीदवार को जिताने में परेशानी नहीं होगी। अगर रविशंकर को बिहार विधानसभा चुनाव में उतारा जाएगा तो संभावना यह है कि वे कुम्हरार सीट से उम्मीदवार बन सकते हैं।
- वहीं पश्चिम चंपारण के सांसद डॉ. संजय जायसवाल भी बिहार विधानसभा चुनाव में सटीक उम्मीदवार साबित हो सकते हैं। संभवत: यही कारण है कि 2024 में लगातार चौथी बार लोकसभा चुनाव जीतने के बाद भी उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया।
- अगला नाम जनार्दन सिंह सिग्रीवाल का भी हो सकता है, जो महाराजगंज से सांसद हैं। बिहार विधानसभा में उन्हें काम करने का पुराना अनुभव है और उनके विधानसभा चुनाव में उतरने से भाजपा को सारण में अपनी स्थिति ठीक करने में सहूलियत मिल सकती है।
- गिरिराज सिंह का नाम भी बिहार विधानसभा चुनाव में आ सकता है ताकि भाजपा के इस फायरब्रांड नेता के कारण बिहार विधानसभा में भाजपा मजबूत दिख सके।
- इसके अलावा राजीव प्रताप रूडी भी संभावित हो सकते हैं क्योंकि दिल्ली में उनकी पूछ मंत्रिमंडल में नहीं हो रही और वे लगातार दरकिनार किए जाते रहे हैं।