धमदाहा विधानसभा सीट Dhamdaha Vidhansabha (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 61) बिहार की राजनीति में हमेशा से एक अहम स्थान रखती रही है। पूर्णिया जिले की इस सीट का राजनीतिक इतिहास काफी समृद्ध और उतार-चढ़ाव भरा रहा है। 1952 में जब बिहार में पहला चुनाव हुआ, तब यह सीट “धमदाहा सह कोढ़ा” के रूप में अस्तित्व में थी और यहां से दो विधायक चुने जाते थे। कांग्रेस के भोला पासवान शास्त्री और डॉ. लक्ष्मी नारायण सुधांशु ने जीत हासिल कर इस क्षेत्र को कांग्रेस गढ़ की पहचान दी।
Rupouli Vidhansabha: जातीय समीकरण और राजनीतिक उलटफेर ने बनाई नई तस्वीर
1962 में धमदाहा और कोढ़ा को अलग कर स्वतंत्र सीट बनाया गया और धीरे-धीरे यहां की राजनीति में बड़े बदलाव आने लगे। 1970 और 1977 में जनता पार्टी के सुरज नारायण सिंह यादव ने लगातार जीत दर्ज की, वहीं 1980 में जनता पार्टी (सेक्युलर) से उन्होंने फिर अपनी पकड़ मजबूत की। कांग्रेस का आधार इस दौरान कमजोर होने लगा और क्षेत्रीय राजनीति हावी होती गई।
लेशी सिंह का उदय और लगातार पांच जीत
साल 2000 में समता पार्टी से चुनाव लड़कर लेशी सिंह ने धमदाहा की राजनीति में अपनी मजबूत एंट्री दर्ज की। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। 2005, 2010, 2015 और 2020—हर बार उन्होंने धमदाहा से जीत दर्ज की। जेडीयू से जुड़ने के बाद उनकी राजनीतिक स्थिति और मजबूत हुई। 2020 में उन्होंने आरजेडी उम्मीदवार दिलीप कुमार यादव को 33,594 वोटों से हराकर लगातार पांचवीं जीत हासिल की। उस चुनाव में उन्हें कुल 97,057 वोट यानी 48.50% वोट शेयर मिला, जबकि आरजेडी प्रत्याशी को 31.71% वोट शेयर ही मिल पाया। यह नतीजा साफ बताता है कि धमदाहा सीट पर जदयू और खासकर लेशी सिंह की पकड़ बेहद मजबूत रही है।
जातीय समीकरण और मतदाता संरचना
धमदाहा विधानसभा में कुल 3.07 लाख मतदाता पंजीकृत हैं। इनमें पुरुष वोटर 1.58 लाख (51.54%), महिला वोटर 1.48 लाख (48.39%) और ट्रांसजेंडर वोटर 7 (0.002%) हैं। मुस्लिम और यादव मतदाता इस सीट पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं, लेकिन राजपूत, ब्राह्मण, कोइरी, कुर्मी और पासवान वोटर भी संतुलन बिगाड़ने की क्षमता रखते हैं। यही कारण है कि यहां का चुनाव केवल एकतरफा नहीं बल्कि जातीय समीकरणों के संतुलन पर टिका होता है।
2025 चुनाव के संकेत
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि 2025 के विधानसभा चुनाव में धमदाहा की लड़ाई रोचक हो सकती है। लंबे समय से लगातार जीत रही लेशी सिंह की लोकप्रियता और विकास कार्यों का प्रभाव तो रहेगा, लेकिन विपक्ष जातीय समीकरणों के सहारे चुनौती देने की रणनीति बना रहा है। आरजेडी, कांग्रेस और वाम दल यहां मुस्लिम-यादव समीकरण के सहारे समीकरण बदलने का प्रयास करेंगे, जबकि भाजपा और जदयू मिलकर एनडीए के पक्ष में जातीय और विकास आधारित राजनीति को आगे बढ़ाएंगे।






















