अगर सरस्वती माता सुर लगाती होंगी तो शायद वह लता मंगेशकर की तरह ही गाती होंगी। सुर साम्राज्ञी के नाम से मशहूर लता दी जब गाती थीं तो उनको सुननेवाले मंत्रमुग्ध होकर बस उन्हें सुनते रहते हैं। आज लता दीदी ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया है। भले ही उनका शरीर अब इस दुनिया में ना हो लेकिन SWAR KOKILA लता दीदी हमेशा हमारे दिलों के बीच जिंदा रहेंगी। वो कभी जाएँगी नहीं वो हमारे दिल में हैं। जब जब लता दी के गाने हमें सुनाई देंगे वो हमारे बीच जिंदा रहेंगी और अनवरत दिलों में जिंदा बसी रहेंगी। जब तक ये पृथ्वी है ये संसार है तब तक लता दी जिंदा अपनी आवाज़ के साथ हमरे बीच जिंदा रहेंगी। हम उनके गाने जब भी सुनते हैं तो लगता है तो लगता है कि सब कुछ बस सामने ही घट रहा हो। ऐ मेरे वतन के लोगों हों या फिर दिल तो पागल है, हर गाना बस आपको आपके दिल के करीब लगेगा। उनके लव सॉन्ग आपको प्रेम में एक बार फिर पड़ जाने को विवश कर देगा। दर्द भरे गीत दिल में किसी अपनों के खोने की हूक उठाएगा।
पहली बार वसंत जोगलेकर की फिल्म कीर्ति के लिए गाया
इंदौर के गोमांतक मराठा परिवार में पंडित दीनानाथ मंगेशकर के घर जन्मी लता मंगेशकर को बचपन से ही गाने का शौक था। 28 सितंबर 1929 को जन्मी लता दी ने जब कुंदन लाल सहगल की फिल्म चंडीदास देखी तो उस छोटी सी बच्ची ने बड़े होकर हीरो से शादी करने की बात कह कर हर किसी को हैरान कर दिया था। पहली बार उन्होंने वसंत जोगलेकर की फिल्म कीर्ति के लिए गाया। दीनानाथ मंगेशकर को उनका गाना गाना पसंद नहीं था, इसलिए इसे निकलवा दिया गया। 13 साल की उम्र में लता दी ने अपने पिता को खो दिया। इसके बाद उन्हें पैसों की किल्लत झेलनी पड़ी। पेट भरने के लिए हिरोइन का किरदार भी निभाया। पहली बार उन्होंने 1942 में मंगलागौर में एक किरदार निभाया।
नूरजहां के साथ अभिनय किया
इसके बाद करीब दर्जन भर मराठी फिल्मों में उन्होंने अभिनय किया। बड़ी मां फिल्म में उन्होंने नूरजहां के साथ अभिनय किया और इसमें उनकी छोटी बहन आशा भोसले भी छोटी बहन के किरदार में थीं। 1948 से गायन के क्षेत्र में पूरी तरह से जमने की कोशिश कर रही लता दी को पहली बड़ी सफलता महल फिल्म के आएगा आनेवाला गीत से मिली। इसके बाद जो सिलसिला चला, वह करीब छह दशकों तक चलता रहा। लता दी एक ऐसी कलाकार बनीं, जिनके जीवित रहते उनके नाम से पुरस्कार प्रदान किया जाता है।
गिनीज बुक रिकार्ड में नाम
30 हजार से अधिक गाना गाने का गिनीज बुक रिकार्ड उनके नाम है। वर्ष 1969 में पद्म भूषण, वर्ष 1999 में पद्म विभूषण और वर्ष 2001 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न उन्हें मिल चुका है। इसके अलावा उन्हें पुरस्कार मिल चुके हैं, जो एक कलाकार को दिए जाते हैं। पुरस्कार कभी भी लता दी के कद को परिभाषित नहीं करते। उन्होंने पुरस्कारों का मान बढ़ाया। उम्र बीतने के बाद भी उनके मन की बच्ची हमेशा जिंदा रही। आत्मीय लोगों से मुलाकात पर खिलखिलाकर हंस पड़ना, बस यही अदा लोगों को उन्हें अपना बना देती थी। वे सबकी हैं और सब उनके। यही भाव उन्हें हर दिल अजीज बनाता है। इनसाइडर लाइव भी लता दीदी को भावभीने श्रधांजलि अर्पित करता है