नई दिल्ली : भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) धनंजय वाई. चंद्रचूड़ ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ प्रस्ताव पर गंभीर चिंताएं जाहिर की हैं। उन्होंने आगाह किया है कि एकसाथ चुनाव कराने से छोटे और क्षेत्रीय दलों को नुकसान हो सकता है, क्योंकि संसाधन संपन्न राष्ट्रीय दल उनका वर्चस्व हासिल कर सकते हैं।
यह बयान उस समय आया है जब संसद की संयुक्त समिति (JPC) इस विधेयक की समीक्षा कर रही है, जिसका मकसद 2029 से शुरू होकर 2034 में पहली बार सभी चुनाव एक साथ कराना है।
छोटे दलों के लिए असमान मुकाबला
चंद्रचूड़ ने अप्रैल में JPC को दिए अपने लिखित सुझावों में कहा कि बेहतर संसाधनों वाले राष्ट्रीय दलों के प्रभुत्व से क्षेत्रीय दलों की स्थिति कमजोर हो सकती है। 2018 की लॉ कमीशन रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में क्षेत्रीय दलों का वोट शेयर 23% था, जो इस बदलाव से और कम हो सकता है।
उन्होंने चुनावी प्रक्रिया में धनबल के असंतुलन पर भी प्रकाश डाला, जहां उम्मीदवारों के लिए खर्च की सीमा (₹70-95 लाख प्रति चुनाव) तय है, लेकिन राजनीतिक दलों पर कोई पाबंदी नहीं है। एक 2020 के अध्ययन के अनुसार, मीडिया सेंटर फॉर स्टडीज ने अनुमान लगाया कि राजनीतिक दलों का असंगठित खर्च सालाना ₹30,000 करोड़ तक पहुंचता है।
संघवाद और लोकतंत्र पर खतरा
प्रस्ताव का विरोध करने वाले दलों, जैसे कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, का कहना है कि यह कदम संघीय ढांचे और लोकतांत्रिक जवाबदेही को कमजोर करेगा। इतिहास बताता है कि स्वतंत्र भारत में 1952 से 1967 तक एकसाथ चुनाव हुए, लेकिन विधानसभाओं के बार-बार भंग होने से यह प्रथा टूट गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का तर्क है कि इससे चुनावी लागत कम होगी और विकास कार्यों में रुकावट नहीं आएगी, लेकिन विपक्ष इसे सत्ता के केंद्रीकरण का प्रयास बता रहा है।
चुनावी वित्त पर सख्ती की मांग
चंद्रचूड़ ने सुझाव दिया कि चुनावी अभियान वित्त से जुड़े नियमों को मजबूत करना जरूरी है ताकि सभी दलों के बीच समान अवसर सुनिश्चित हो सके। उन्होंने अविश्वास प्रस्ताव पर समय सीमा तय करने के प्रावधान को भी लोकतंत्र के खिलाफ बताया, क्योंकि इससे अल्पमत वाली सरकारें सत्ता में बनी रह सकती हैं।
अगली बैठक 11 जुलाई को
JPC की अगली बैठक 11 जुलाई को होगी, जिसमें चंद्रचूड़ और पूर्व CJI जे.एस. खेहर के साथ-साथ कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली और ईएमएस नचियप्पन भी अपनी राय देंगे। इस बीच, विधेयक पर बहस तेज हो गई है, और यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सरकार इन चिंताओं को संबोधित करती है या अपने रुख पर कायम रहती है।