बेंगलुरु: एक ओर जहां देश में नैतिकता, परिवार मूल्य और भारतीय संस्कृति की बात होती है, वहीं दूसरी ओर टेक सिटी बेंगलुरु से शुरू हुई एक नई कैब सेवा ने बहस को जन्म दे दिया है — क्या आधुनिकता के नाम पर हम सांस्कृतिक पतन की ओर बढ़ रहे हैं?‘Smooch Cabs’ नाम की यह सेवा खासतौर पर कपल्स के लिए शुरू की गई है। इसमें न तो कोई मंज़िल की जल्दी है, न सफर की पारंपरिक उपयोगिता। उद्देश्य सिर्फ इतना है — “कपल्स को कार के भीतर एक-दूसरे के साथ रोमांस करने की पूरी आज़ादी देना।” टिंटेड ग्लास, डू-नॉट-डिस्टर्ब पॉलिसी और ड्राइवर को नॉइज़-कैंसिलिंग हेडफोन देने जैसे इंतज़ाम यह सुनिश्चित करते हैं कि भीतर क्या हो रहा है, कोई न देख पाए — न सुने।जहाँ एक ओर ये सुविधा कुछ युवा कपल्स के लिए “प्राइवेसी” का साधन बनी है, वहीं दूसरी ओर यह भारत की सांस्कृतिक और नैतिक धरोहर पर सवालिया निशान भी छोड़ रही है। क्या यह वह भारत है, जहां “परिवार संस्था” का आदर सर्वोपरि था?
शहर की सड़कों पर ‘प्रेम’ या सार्वजनिक मर्यादाओं की अवहेलना?
पुलिस और ट्रैफिक विभाग दोनों ने चिंता जताई है कि कुछ कैब्स ट्रैफिक के दौरान रुक जाती हैं, जिससे जाम और अव्यवस्था बढ़ती है। इतना ही नहीं, इस सेवा से प्रेरित होकर अब ऑटो-रिक्शा चालक भी ‘प्राइवेट राइड्स’ देने लगे हैं। सवाल ये उठता है — क्या प्राइवेसी की आड़ में सार्वजनिक स्थलों पर मर्यादा की सीमाएं टूट रही हैं?
संस्कृति बनाम आधुनिकता: समाज दो धड़ों में बंटा
Smooch Cabs ने न केवल एक बिज़नेस आइडिया के रूप में सनसनी फैलाई है, बल्कि सामाजिक ताने-बाने को भी झकझोर दिया है। एक वर्ग इसे ‘आधुनिकता की स्वीकार्यता’ मान रहा है, तो वहीं दूसरा वर्ग इसे ‘पश्चिमी अपसंस्कृति की नकल’ और भारतीय मूल्यों के क्षरण के रूप में देख रहा है।वरिष्ठ समाजशास्त्रियों और संस्कृति विशेषज्ञों का मानना है कि यह सेवा भारतीय समाज की उस दिशा में बढ़ती प्रवृत्ति का संकेत है, जिसमें “स्वतंत्रता” के नाम पर नैतिक जिम्मेदारियों को तिलांजलि दी जा रही है।
‘बोल्ड बिज़नेस’ या सांस्कृतिक विघटन?
जहाँ एक ओर Smooch Cabs अब दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में भी अपने विस्तार की योजना बना रही है, वहीं सोशल मीडिया पर इसका तीखा विरोध भी शुरू हो गया है। #BanSmoochCabs जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे हैं, और कई संगठनों ने इसे भारतीय संस्कृति का ‘सरेआम अपमान’ करार दिया है।
सवाल सिर्फ कैब का नहीं, दिशा का है
भारत, जो सदियों से “गृहस्थ धर्म”, “नैतिकता” और “मर्यादा” का संवाहक रहा है, क्या वह अब तेज़ी से उन रास्तों की ओर बढ़ रहा है जहाँ नैतिक मूल्यों को बाजारवाद के हवाले कर दिया गया है?Smooch Cabs एक कैब सेवा नहीं, बल्कि उस नई सोच का प्रतीक है जो हमारी पारंपरिक परिभाषाओं को चुनौती दे रही हैl