प्रयागराज में महाकुंभ के दिव्य आयोजन में श्रद्धालुओं की आस्था अपने चरम पर है। संगम के पवित्र जल में स्नान करने के लिए पूरे देश से श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ रहा है, लेकिन गंगा और यमुना की लहरों में स्नान करने का जोश वैज्ञानिक सच्चाइयों से टकरा रहा है। सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) की ताज़ा रिपोर्ट एक चेतावनी के रूप में सामने आई है—संगम का जल अब स्नान योग्य नहीं रहा।
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PCB ने प्रयागराज में 9 से 21 जनवरी के बीच 73 जगहों से जल सैंपल लिए और 6 वैज्ञानिक पैमानों पर जांच की। रिपोर्ट नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) में दाखिल की गई है। पानी में फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया की मात्रा मानकों से कई गुना अधिक मिली, जो संक्रमण और बीमारियों की वजह बन सकती है। संगम के पानी में 2000-4500 प्रति मिलीलीटर तक फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया पाया गया, जबकि सुरक्षित स्तर 100 होना चाहिए। गंगा-यमुना के कई हिस्सों में BOD (बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड) और COD (केमिकल ऑक्सीजन डिमांड) का स्तर भी बढ़ा हुआ पाया गया।
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उत्तर प्रदेश जल निगम और प्रयागराज नगर निगम ने जियो-ट्यूब तकनीक से नालों के अपशिष्ट जल को शोधित करने का दावा किया है। 1 जनवरी से 4 फरवरी तक 3660 MLD शोधित पानी गंगा में छोड़ा गया, लेकिन रिपोर्ट बताती है कि प्रदूषण नियंत्रण के दावे खोखले साबित हो रहे हैं। यह पहली बार नहीं है जब नदियों की स्वच्छता पर सवाल खड़े हुए हैं। 2010 और 2019 के कुंभ मेले में भी पानी की गुणवत्ता खराब पाई गई थी।