बिहार की राजनीति में गौड़ाबौराम विधानसभा सीट Gaurabauram Vidhan Sabha 2025 (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 79) एक खास पहचान रखती है। दरभंगा जिले की यह सीट 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई और देखते ही देखते बिहार की वीआईपी सीटों में गिनी जाने लगी। नई-नवेली सीट होने के बावजूद इसके चुनावी नतीजों ने राज्य की राजनीति को कई बार प्रभावित किया है।
चुनावी इतिहास
साल 2010 के पहले विधानसभा चुनाव में जेडीयू उम्मीदवार डॉक्टर इजहार अहमद ने आरजेडी के डॉक्टर महावीर प्रसाद को हराकर इस सीट पर कब्जा जमाया। इसके बाद 2015 में जेडीयू ने मदन सहनी को मैदान में उतारा और वे भी विजयी हुए। इन दोनों चुनावों ने जेडीयू को इस सीट पर मजबूत पकड़ बनाने में मदद की।
Kusheshwarsthan Vidhansabha Election 2025: जातीय गणित और सियासी समीकरण का गहन विश्लेषण
हालांकि 2020 के चुनाव ने समीकरण बदल दिए। वीआईपी पार्टी की प्रत्याशी स्वर्णा सिंह ने राजद उम्मीदवार अफजल अली खान को 7,280 वोटों से हराकर जीत दर्ज की। चुनाव जीतने के बाद स्वर्णा सिंह ने वीआईपी छोड़ भाजपा का हाथ थाम लिया और इस कदम से सीट की राजनीतिक दिशा एक नए मोड़ पर पहुंच गई। चुनावी आंकड़ों पर नजर डालें तो स्वर्णा सिंह को 59,538 वोट मिले, जबकि अफजल अली खान को 52,258 वोट। एलजेपी के राजीव कुमार ठाकुर तीसरे स्थान पर रहे जिन्हें 9,123 वोट मिले।
जातीय समीकरण
गौड़ाबौराम की राजनीति में जातीय समीकरण हमेशा से अहम रहे हैं। यहां यादव और मुस्लिम वोटरों की संख्या सबसे अधिक है और यही समूह चुनावी नतीजों को प्रभावित करता है। इनके अलावा कुर्मी, राजपूत, पासवान और अन्य ओबीसी जातियां भी प्रभावशाली हैं। यही कारण है कि सभी दल यहां टिकट बंटवारे में बेहद सावधानी बरतते हैं।
Mahishi Vidhansabha: गफूर का गढ़, बदलते समीकरण और 2025 की चुनौती
वर्तमान में गौड़ाबौराम विधानसभा क्षेत्र में कुल 2,28,697 मतदाता हैं। इनमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 52.85% और महिला मतदाताओं की संख्या 47.15% है। इस जनसांख्यिकी और जातीय समीकरण ने हमेशा से चुनावी परिदृश्य को रोचक और प्रतिस्पर्धात्मक बनाया है। गौड़ाबौराम का राजनीतिक इतिहास साफ करता है कि यहां जीत केवल पार्टी की ताकत से नहीं बल्कि जातीय गणित और स्थानीय चेहरों के सही चुनाव से तय होती है। यही वजह है कि यह सीट आने वाले विधानसभा चुनावों में एक बार फिर सुर्खियों में रहने वाली है।






















