Ghosi Vidhansabha 2025: जहानाबाद जिले की सबसे चर्चित सीटों में से एक घोसी विधानसभा (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 217) इस बार भी राजनीतिक विश्लेषकों की निगाह में है। यह सीट जहानाबाद लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है और घोसी, हुलासगंज, मोदनगंज के अलावा काको प्रखंड के कुछ हिस्सों को शामिल करती है। बिहार की यह सीट न केवल राजनीतिक बदलावों की गवाह रही है, बल्कि यहां से निकलने वाले नेताओं ने प्रदेश की सियासत में अहम भूमिका निभाई है।
चुनावी इतिहास
1951 से अब तक घोसी में 17 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, और हर दशक में इस सीट का मिजाज बदलता रहा है। कभी कांग्रेस का गढ़ रही यह सीट बाद में निर्दलीयों और फिर क्षेत्रीय दलों के बीच झूलती रही। कांग्रेस ने अब तक पांच बार, निर्दलीयों ने चार बार, जदयू ने तीन बार, भाकपा ने दो बार जबकि भाजपा, जनता पार्टी और भाकपा (माले-लिबरेशन) ने एक-एक बार जीत हासिल की है। यह रिकॉर्ड बताता है कि घोसी के मतदाता किसी एक पार्टी से बंधे नहीं हैं, बल्कि हर चुनाव में नए समीकरण बनते-बिगड़ते रहते हैं।
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घोसी की राजनीति पर चार दशक तक जगदीश शर्मा परिवार का एकछत्र दबदबा रहा। 1977 से 2009 तक लगातार 8 बार विधायक रहे जगदीश शर्मा ने कांग्रेस, निर्दलीय, जनता पार्टी, भाजपा और जदयू के टिकट पर जीत दर्ज की थी। उनका राजनीतिक वर्चस्व इतना मजबूत था कि 2009 में जब वे जहानाबाद से लोकसभा सांसद बने, तो उनकी पत्नी शांति शर्मा उपचुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में विजयी रहीं।
2010 में उनके बेटे राहुल शर्मा ने जदयू से जीत दर्ज की, लेकिन 2015 में जब उन्हें टिकट नहीं मिला और उन्होंने ‘हम पार्टी’ से चुनाव लड़ा, तो हार का सामना करना पड़ा। 2020 में माले प्रत्याशी रामबली सिंह यादव ने राहुल शर्मा को 3793 वोटों के अंतर से पराजित कर शर्मा परिवार के प्रभुत्व को चुनौती दी। रामबली यादव की जीत ने घोसी में वाम राजनीति को पुनर्जीवित कर दिया। यहां पहले भी भाकपा ने दो बार जीत दर्ज की थी, लेकिन इस बार माले की वापसी ने यह दिखा दिया कि जमीनी संगठन और वर्गीय मुद्दे अभी भी इस क्षेत्र में असर रखते हैं।
जातीय समीकरण
घोसी का चुनावी गणित जातीय समीकरणों से गहराई से जुड़ा है। यहां यादव, भूमिहार, रविदास और पासवान समुदाय के मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। कुल मतदाताओं में अनुसूचित जाति की हिस्सेदारी लगभग 19.93% है, जबकि मुस्लिम मतदाता करीब 4.3% हैं। ऐसे में किसी भी पार्टी के लिए यादव और दलित वोटों का एकजुट होना जीत की कुंजी साबित होता है।






















