नवादा जिले का गोविंदपुर विधानसभा क्षेत्र (Govindpur Vidhan Sabha 2025) बिहार की राजनीति में एक दिलचस्प उदाहरण रहा है, जहां दशकों से एक ही परिवार का वर्चस्व कायम रहा। 1967 में इस सीट के अस्तित्व में आने के बाद से यहां की राजनीति यादव परिवार के इर्द-गिर्द घूमती रही है। लेकिन 2020 के चुनाव में इस समीकरण को एक नया मोड़ मिला, जब राजद के मोहम्मद कामरान ने पूर्णिमा यादव को बड़े अंतर से हराकर यादव परिवार के लंबे राजनीतिक दबदबे को तोड़ दिया। अब 2025 के विधानसभा चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यादव परिवार इस क्षेत्र में अपनी खोई हुई पकड़ दोबारा हासिल कर पाएगा या कामरान अपनी जीत दोहरा पाएंगे।
राजनीतिक इतिहास
गोविंदपुर विधानसभा का राजनीतिक इतिहास बेहद समृद्ध और पारिवारिक प्रभाव से भरा रहा है। 1967 में पहली बार कांग्रेस के अमृत प्रसाद ने जीत का आगाज़ किया था। इसके बाद 1969 में लोकतांत्रिक कांग्रेस के टिकट पर युगल किशोर यादव की जीत ने इस क्षेत्र में यादव राजनीति की नींव रखी। उनके निधन के बाद उनकी पत्नी गायत्री देवी यादव ने उपचुनाव जीता और 1980, 1985, 1990 में कांग्रेस से तथा 2000 में राजद के टिकट पर जीत हासिल की। उनके बाद उनके पुत्र कौशल यादव ने तीन बार जीत दर्ज की — दो बार निर्दलीय और एक बार जेडीयू से 2010 में। राजनीति की यह विरासत आगे उनकी पत्नी पूर्णिमा यादव तक पहुंची, जिन्होंने 2015 में कांग्रेस के टिकट पर विजय पाई।
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हालांकि, 2020 का चुनाव इस परंपरा के अंत का प्रतीक साबित हुआ। राजद के मोहम्मद कामरान ने पूर्णिमा यादव को 33,074 वोटों के भारी अंतर से हराकर नया इतिहास रच दिया। उस चुनाव में कामरान को कुल 79,557 वोट मिले जबकि पूर्णिमा यादव को 46,483 वोटों पर संतोष करना पड़ा। लोजपा के उम्मीदवार रंजीत यादव तीसरे स्थान पर रहे। इस परिणाम ने स्पष्ट कर दिया कि गोविंदपुर की जनता अब जातिगत समीकरणों से आगे बढ़कर विकास और नई नेतृत्व शैली को तरजीह देने लगी है।
जातीय समीकरण
गोविंदपुर की सामाजिक संरचना भी इसकी राजनीति को गहराई से प्रभावित करती रही है। यादव समुदाय यहां 20 प्रतिशत से अधिक है और लंबे समय तक सत्ता पर कब्जा रखता आया है। हालांकि अनुसूचित जाति के मतदाता इनसे भी अधिक यानी 25.19% हैं, लेकिन उनकी असंगठित स्थिति के कारण वे किसी एक दिशा में मतदान नहीं कर पाते। वहीं मुस्लिम समुदाय की जनसंख्या करीब 13.6% है और वे भी चुनावी परिणाम को निर्णायक रूप से प्रभावित करते हैं। यह एक पूरी तरह ग्रामीण क्षेत्र है, जहां शहरी मतदाता नहीं हैं, जिससे जातीय और पारंपरिक समीकरणों की भूमिका और बढ़ जाती है।






















