हथुआ विधानसभा Hathua Vidhansabha 2025 (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 104) बिहार की राजनीति में हमेशा से सुर्खियों में रहने वाली सीट रही है। गोपालगंज जिले में आने वाली यह सीट 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई। खास बात यह है कि यह लालू प्रसाद यादव का पैतृक इलाका है, लेकिन लंबे समय तक उनकी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) यहां जीत दर्ज नहीं कर पाई। वर्ष 2020 में पहली बार इस पर आरजेडी का परचम लहराया और अब 2025 का विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही यहां राजनीतिक हलचल तेज हो चुकी है।
मीरगंज से हथुआ तक का सफर
1952 से 2009 तक यह क्षेत्र “मीरगंज विधानसभा” के नाम से जाना जाता था। शुरुआती दौर में कांग्रेस का दबदबा यहां स्पष्ट रूप से दिखता था। 1952 में कांग्रेस के जर्नादन भगत ने जीत दर्ज की और इसके बाद 1957, 1969, 1972 और 1985 में भी कांग्रेस ने ही बाजी मारी। हालांकि 1977 में सीपीआई के सीताराम मिश्रा ने कांग्रेस को मात दी और 1980 में कांग्रेस ने फिर वापसी की।
2009 परिसीमन के बाद मीरगंज का अस्तित्व समाप्त हुआ और हथुआ विधानसभा अस्तित्व में आई। इसके बाद यहां का राजनीतिक समीकरण पूरी तरह बदल गया।
Bhore Vidhan Sabha 2025: जातीय समीकरण, पुराने खिलाड़ी और नए दांव से तय होगा नतीजा
जेडीयू बनाम आरजेडी की टक्कर
हथुआ में जेडीयू के रामसेवक सिंह का दबदबा लंबे समय तक कायम रहा। 2010 और 2015 दोनों चुनावों में उन्होंने जीत हासिल की। 2010 में आरजेडी के राजेश कुमार सिंह को 22,847 वोटों से हराकर उन्होंने अपनी मजबूत पकड़ दिखाई। 2015 में भी रामसेवक सिंह को 57,917 वोट मिले और उन्होंने विपक्ष को कड़ा झटका दिया। लेकिन 2020 के चुनाव में समीकरण बदल गए। आरजेडी के राजेश कुमार सिंह ने बड़ी जीत हासिल की। उन्हें 86,731 वोट मिले और उन्होंने जेडीयू के रामसेवक सिंह को 30,527 वोटों के अंतर से हराया। इस जीत ने हथुआ सीट को आरजेडी के लिए खास बना दिया।
जातीय और सामाजिक समीकरण
हथुआ विधानसभा का चुनावी गणित जातीय समीकरणों पर काफी हद तक निर्भर करता है। यहां यादव, मुस्लिम और ब्राह्मण मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं, जबकि राजपूत वोटर भी प्रभावी स्थिति में हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की कुल जनसंख्या 4,25,810 है, जिसमें 92% ग्रामीण और 8% शहरी आबादी है। अनुसूचित जाति की हिस्सेदारी 12.72% और अनुसूचित जनजाति की हिस्सेदारी 3.26% है। 2019 की मतदाता सूची के अनुसार इस सीट पर 2,95,208 मतदाता हैं। ऐसे में जातीय संतुलन साधना किसी भी उम्मीदवार के लिए चुनौती से कम नहीं।
2025 के चुनाव में संभावित समीकरण
हथुआ विधानसभा सीट पर 2025 का चुनाव बेहद दिलचस्प रहने वाला है। आरजेडी अपनी 2020 की जीत को दोहराना चाहेगी, जबकि जेडीयू इस सीट पर खोई हुई पकड़ वापस पाने की कोशिश में है। भाजपा भी यहां सक्रिय है और वह जातीय समीकरण के साथ-साथ विकास के मुद्दे को भुनाने की रणनीति बना सकती है। कांग्रेस की पकड़ यहां लगातार कमजोर होती गई है, लेकिन अगर विपक्षी गठबंधन मजबूत होता है तो वह भी समीकरण बदल सकता है। इस बार का चुनाव पूरी तरह इस सवाल पर टिका होगा कि लालू यादव के पैतृक क्षेत्र में आरजेडी अपनी पकड़ बरकरार रख पाती है या जेडीयू फिर से अपनी पुरानी स्थिति हासिल कर लेती है।






















