बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सरगर्मी के बीच झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) ने अब अपने इरादे स्पष्ट कर दिए हैं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पार्टी अब महागठबंधन (Mahagathbandhan) से बाहर रहकर बिहार की 12-15 सीमावर्ती सीटों पर चुनाव लड़ने का मन बना चुकी है।
तेजस्वी यादव से ‘सम्मानजनक हिस्सेदारी’ की उम्मीद टूटी!
राजद नेता तेजस्वी यादव की अगुवाई में जब तीन बार बिहार में महागठबंधन की बैठक हुई, तब झामुमो को आमंत्रित नहीं किया गया, न ही 21 सदस्यीय समन्वय समिति में स्थान मिला।
- 2024 झारखंड चुनाव में झामुमो ने RJD को उदारता से 6 सीटें दी थीं और सरकार बनने के बाद मंत्री पद भी सौंपा था।
- लेकिन बिहार में झामुमो को “समान भागीदारी” नहीं मिल रही है।
JMM का कहना है कि हमने गठबंधन धर्म निभाया, पर अब लगता है कि बिहार में हमारी उपेक्षा की जा रही है। मजबूरी में अब हम एकला चलो की ओर बढ़ रहे हैं।
झामुमो की रणनीति: सीमावर्ती सीटों पर फोकस
हालांकि JMM का बिहार में आधार सीमित है, लेकिन चकाई जैसी सीटों पर उसका ऐतिहासिक प्रभाव रहा है।
- 2010 में चकाई सीट से जीत: सुमित कुमार सिंह (अब निर्दलीय मंत्री)
- दर्जनभर सीटें झारखंड सीमावर्ती क्षेत्रों में हैं, जहां झामुमो का जनाधार है।
राष्ट्रीय विस्तार की दिशा में झामुमो
झामुमो ने हाल ही में अपने महाधिवेशन में राष्ट्रीय पार्टी बनने की रणनीति बनाई है। उसमें बिहार, यूपी, बंगाल, ओडिशा, तमिलनाडु में संगठनात्मक विस्तार का प्रस्ताव पास किया गया था। बिहार चुनाव में भागीदारी इस नीति का हिस्सा है। JMM महासचिव विनोद कुमार पांडेय ने कहा कि “अगर महागठबंधन में उचित समन्वय नहीं हुआ, तो हम अपने दम पर चुनाव लड़ने को तैयार हैं।”
क्या असर पड़ेगा महागठबंधन पर?
झामुमो अलग हुआ तो सीमावर्ती सीटों पर महागठबंधन वोट बंटेंगे। साथ ही तेजस्वी यादव को राजनीतिक नुकसान हो सकता है। इसका BJP को सीधा फायदा मिल सकता है। जबकि महागठबंधन एकजुट रहता है तो सभी सीटों पर सीधा मुकाबला NDA बनाम गठबंधन होगा। सीमावर्ती क्षेत्रों में महागठबंधन को मजबूती मिल सकती है।