Hijab Controversy Bihar: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा एक कार्यक्रम के दौरान नियुक्ति पत्र प्राप्त करने आई मुस्लिम महिला के चेहरे से हिजाब हटाने से जुड़ा मामला बिहार की राजनीति में लगातार गर्माया हुआ है। घटना को लेकर जहां विपक्ष और सामाजिक संगठनों के बीच तीखी बहस जारी है, वहीं अब भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता खुलकर मुख्यमंत्री के बचाव में सामने आ गए हैं।
केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने नीतीश कुमार के कदम को सही ठहराते हुए कहा कि मुख्यमंत्री ने कोई गलत काम नहीं किया है। उनके अनुसार यदि कोई व्यक्ति नियुक्ति पत्र लेने के लिए आगे आता है तो पहचान के लिए चेहरा दिखाना स्वाभाविक प्रक्रिया है। गिरिराज सिंह ने यह भी कहा कि भारत एक लोकतांत्रिक और संवैधानिक देश है, जहां कानून का राज चलता है, न कि किसी विशेष धार्मिक नियम का। उनके बयान को भाजपा की उस लाइन के तौर पर देखा जा रहा है, जिसमें समान नियम और प्रशासनिक प्रक्रिया को सर्वोपरि बताया जा रहा है।
वहीं बिहार सरकार में मंत्री मंगल पांडेय ने इस पूरे विवाद को महिला सशक्तिकरण के व्यापक संदर्भ में रखा। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में राज्य सरकार ने हमेशा मातृशक्ति को मजबूत करने का काम किया है। शिक्षा, आर्थिक स्वावलंबन, सामाजिक भागीदारी और राजनीतिक प्रतिनिधित्व के क्षेत्र में महिलाओं को आगे बढ़ाने की नीतियां ही नीतीश कुमार की पहचान रही हैं। मंगल पांडेय का दावा है कि इसी भरोसे का परिणाम था कि विधानसभा चुनाव में महिलाओं ने बड़े पैमाने पर नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व पर विश्वास जताया।
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हालांकि पूर्णिया से निर्दलीय सांसद पप्पू यादव ने भाजपा नेताओं के बयानों पर कड़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि गिरिराज सिंह और संजय निषाद द्वारा जिस तरह की भाषा का प्रयोग किया गया, वह न केवल अनुचित है बल्कि समाज में विभाजन पैदा करने वाली भी है। पप्पू यादव ने दोनों नेताओं से सार्वजनिक माफी की मांग करते हुए कहा कि इस पूरे प्रकरण में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का इरादा गलत नहीं था, लेकिन जिस तरीके से बाद में बयानबाजी की गई, उसने मामले को अनावश्यक रूप से भड़का दिया।
पप्पू यादव ने यह भी कहा कि पहले यह मामला लगभग समाप्त हो चुका था, लेकिन इसके बाद जिस तरह की टिप्पणियां की गईं, वह महिलाओं के सम्मान और सामाजिक मर्यादा पर सवाल खड़े करती हैं। उनके अनुसार मुख्यमंत्री का कदम उस समुदाय के लिए असहज हो सकता है, लेकिन इसे दुर्भावना से जोड़ना सही नहीं है। इस बयान से साफ है कि यह विवाद अब केवल प्रशासनिक फैसले तक सीमित नहीं रहा, बल्कि राजनीतिक शालीनता और सार्वजनिक भाषा के स्तर पर भी बहस का विषय बन चुका है।






















