Hilsa Vidhansabha 2025: बिहार की राजनीति में नालंदा जिले की हिलसा विधानसभा सीट (संख्या 175) हमेशा से सुर्खियों में रही है। यह सीट न केवल अपने नक्सल प्रभावित इतिहास के लिए जानी जाती है, बल्कि यहां जातीय समीकरण भी हर चुनाव का रुख तय करते हैं। हिलसा का पश्चिमी इलाका अब भी विकास से वंचित है, लेकिन राजनीतिक दृष्टि से यह इलाका बेहद सक्रिय और निर्णायक साबित होता रहा है।
चुनावी इतिहास
1957 में अस्तित्व में आई इस सीट से कांग्रेस के लाल सिंह त्यागी पहले विजेता बने थे। शुरुआती दौर में कांग्रेस और जनसंघ के बीच मुकाबले ने राजनीति को धार दी, लेकिन 1980 के दशक में बीजेपी ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। हालांकि, 2005 के बाद यहां जेडीयू और आरजेडी के बीच सीधी टक्कर देखने को मिल रही है।
Rajgir Vidhansabha 2025: बदलते समीकरणों में किसके हाथ आएगी जीत?
2005 से लेकर 2010 तक जेडीयू ने लगातार जीत दर्ज की और अपना वर्चस्व कायम किया। 2010 में जेडीयू प्रत्याशी उषा सिन्हा ने बड़ी जीत हासिल की थी। लेकिन 2015 में आरजेडी के शक्ति सिंह यादव ने वोटरों का भरोसा जीतकर जेडीयू के वर्चस्व को तोड़ा। उस चुनाव में यादव समीकरण ने आरजेडी को स्पष्ट बढ़त दी थी।
हालांकि, 2020 में हालात बदले और जेडीयू उम्मीदवार कृष्ण मुरारी शरण उर्फ प्रेम मुखिया ने आरजेडी के शक्ति सिंह यादव को मात्र 12 वोटों के बेहद करीबी अंतर से हरा दिया। यह नतीजा इस बात का संकेत था कि हिलसा सीट पर मुकाबला अब बेहद रोमांचक और कांटे का हो चुका है।
जातीय समीकरण
अगर जातीय समीकरण की बात करें तो यादव और कुर्मी मतदाता यहां की राजनीति की धुरी माने जाते हैं। इन दोनों समुदायों की संख्या इतनी अधिक है कि हर दल को अपना उम्मीदवार तय करते समय इन्हें साधना पड़ता है। इनके अलावा पासवान, रविदास और भूमिहार मतदाता भी निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
हिलसा का राजनीतिक इतिहास इस बात की गवाही देता है कि यहां के मतदाता जातीय समीकरणों के साथ-साथ प्रत्याशी की व्यक्तिगत छवि और विकास के मुद्दों को भी तरजीह देते हैं। 2025 के विधानसभा चुनाव में हिलसा सीट फिर से सुर्खियों में है क्योंकि जेडीयू और आरजेडी दोनों के लिए यह प्रतिष्ठा की सीट बन चुकी है। जीत किसकी होगी, यह तो वक्त बताएगा, लेकिन मुकाबला निस्संदेह दिलचस्प और हाई-प्रोफाइल होने वाला है।






















