नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज हूल दिवस के अवसर पर संथाल समाज के अदम्य साहस और पराक्रम को याद किया। इस विशेष दिन पर उन्होंने ट्वीट कर स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अत्याचार के खिलाफ लड़े वीर सिदो, कान्हू, चांद, भैरव, और बहादुर बहनों फूलो-झानो को हृदय से नमन किया। साथ ही, उन्होंने उन सभी वीर-वीरांगनाओं को श्रद्धांजलि दी, जिन्होंने मातृभूमि के स्वाभिमान की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए।
इतिहास का सुनहरा अध्याय 30 जून 1855 को शुरू हुआ संथाल विद्रोह, जिसे इतिहासकारों ने भारत का पहला संगठित जनक्रांति माना है, झारखंड के संथाल समुदाय द्वारा ब्रिटिश शासन और जमींदारी प्रथा के खिलाफ लड़ा गया था। इतिहासकार डब्ल्यू.डब्ल्यू. हंटर के अनुसार, इस विद्रोह में लगभग 20,000 संथालों ने अपने प्राण गंवाए। कार्ल मार्क्स ने अपनी पुस्तक “नोट्स ऑन इंडियन हिस्ट्री” में इस विद्रोह को एक महत्वपूर्ण जनआंदोलन के रूप में वर्णित किया है। 10 नवंबर 1855 को ब्रिटिश शासन द्वारा मार्शल लॉ लागू करना इसकी गंभीरता को दर्शाता है।
स्वाभिमान की प्रेरणा पीएम मोदी ने अपने ट्वीट में कहा, “हूल दिवस हमें अपने आदिवासी समाज के अदम्य साहस और अद्भुत पराक्रम की याद दिलाता है। सिदो-कान्हू, चांद-भैरव और फूलो-झानो के साथ ही सभी वीरों की शौर्यगाथा देश की हर पीढ़ी को मातृभूमि के स्वाभिमान की रक्षा के लिए प्रेरित करती रहेगी।” उनका यह बयान न केवल इतिहास को सम्मान देता है, बल्कि वर्तमान पीढ़ी को देशभक्ति का पाठ भी सिखाता है।
वर्तमान संघर्षों से जुड़ाव कुछ सोशल मीडिया यूजर्स ने पीएम के इस ट्वीट पर प्रतिक्रिया देते हुए मणिपुर के आदिवासी संघर्षों का जिक्र किया, जहां आज भी कuki और नागा समुदाय अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं। हालांकि, इस संबंध में कोई सीधा ऐतिहासिक या शैक्षिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है, जिससे यह स्पष्ट हो कि दोनों घटनाओं के बीच कोई प्रत्यक्ष संबंध है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि ऐतिहासिक तुलनाओं को सावधानी से देखा जाना चाहिए।
जनता की प्रतिक्रियाएं पीएम के ट्वीट पर सोशल मीडिया पर व्यापक चर्चा हुई। कुछ यूजर्स ने वीरों को नमन किया, जबकि अन्य ने मणिपुर जैसे वर्तमान मुद्दों पर ध्यान देने की अपील की। एक यूजर ने लिखा, “हूल दिवस हमारे स्वतंत्रता संग्राम की अमिट गाथा है—वीरों को शत-शत नमन।” वहीं, एक अन्य ने कहा, “मोदी जी, मणिपुर जैसे क्षेत्रों में भी आदिवासी साहस को देखना चाहिए।” हूल दिवस न केवल अतीत की याद दिलाता है, बल्कि आज के संदर्भ में भी आदिवासी समुदायों की भूमिका और चुनौतियों पर विचार करने का अवसर प्रदान करता है।