नई दिल्ली: वरिष्ठ वकील और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के उस बयान की कड़ी आलोचना की, जिसमें उन्होंने न्यायपालिका की भूमिका, विशेष रूप से सुप्रीम कोर्ट के अनुच्छेद 142 के तहत पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने की शक्ति पर सवाल उठाए थे। सिब्बल ने कहा कि धनखड़ का बयान सुनकर उन्हें “दुख और आश्चर्य” हुआ, क्योंकि आज के समय में अगर किसी संस्था पर सबसे अधिक भरोसा है, तो वह न्यायपालिका है।
धनखड़ ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रपति के लिए निर्णय लेने की समय-सीमा निर्धारित करने को विधायिका और कार्यपालिका के क्षेत्र में अतिक्रमण बताया था। उन्होंने अनुच्छेद 142 को “लोकतंत्र के खिलाफ न्यायपालिका के पास 24×7 उपलब्ध परमाणु मिसाइल” करार दिया। इसके जवाब में सिब्बल ने कहा कि जब सरकार के कुछ लोगों को न्यायपालिका के फैसले पसंद नहीं आते, तो वे उस पर अपनी सीमाएं लांघने का आरोप लगाने लगते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि संविधान ने अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट को पूर्ण न्याय देने का अधिकार दिया है। सिब्बल ने यह भी स्पष्ट किया कि राष्ट्रपति केवल नाममात्र का मुखिया होता है और वह कैबिनेट की सलाह पर काम करता है, न कि अपने निजी अधिकारों के आधार पर।
उन्होंने कहा, “जगदीप धनखड़ को यह बात पता होनी चाहिए।” सोशल मीडिया पर इस मुद्दे को लेकर तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं। कुछ यूजर्स ने सिब्बल की टिप्पणी का समर्थन किया, जबकि अन्य ने उनकी आलोचना करते हुए न्यायपालिका की निष्पक्षता पर सवाल उठाए। यह विवाद विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच संतुलन को लेकर एक बार फिर चर्चा को गर्म कर रहा है।