नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मजबूत करते हुए शुक्रवार को एक अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ उनकी सोशल मीडिया पर पोस्ट की गई कविता को लेकर गुजरात पुलिस द्वारा दर्ज FIR को रद्द कर दिया। जस्टिस एएस ओका और जस्टिस उज्जल भुयां की पीठ ने कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी पर लगाम नहीं लगाई जा सकती और हर छोटी आलोचना से आहत होने वालों के आधार पर कानून का इस्तेमाल नहीं हो सकता।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, कोर्ट ने पुलिस को निर्देश दिया कि बोलने या लिखने से जुड़े मामलों में तुरंत FIR दर्ज करने की बजाय पहले प्रारंभिक जांच की जाए। यह फैसला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के भविष्य के मामलों के लिए एक मजबूत नजीर बनेगा। पीठ ने कहा, “पुलिस को नागरिकों के बोलने के अधिकार का सम्मान करना होगा। कविता, व्यंग्य, नाटक या स्टैंड-अप कॉमेडी जैसे मामलों में सीधे FIR मौलिक अधिकारों का हनन करती है।”
कोर्ट ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा 173(3) का हवाला दिया, जो 3 से 7 साल तक की सजा वाले अपराधों में प्रारंभिक जांच की इजाजत देता है। अदालत ने स्पष्ट किया कि जब मामला बोले गए या लिखे गए शब्दों से जुड़ा हो, तो यह देखना जरूरी है कि क्या वाकई कोई अपराध बनता है। पीठ ने कहा, “ऐसे मामलों में प्रारंभिक जांच से तुच्छ शिकायतों पर FIR को रोका जा सकता है। यह अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत दी गई अभिव्यक्ति की आजादी को सुरक्षित रखेगा।”
फैसले में पुलिस के संवैधानिक दायित्व पर जोर देते हुए कोर्ट ने कहा कि अभिव्यक्ति पर कोई भी पाबंदी तर्कसंगत और संतुलित होनी चाहिए। जस्टिस ने चेताया, “अनुच्छेद 19(2) के अपवादों का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए। ये प्रतिबंध काल्पनिक या दमनकारी नहीं हो सकते।” कोर्ट ने यह भी कहा कि उच्च पुलिस अधिकारियों को ऐसी जांच के लिए मंजूरी देनी चाहिए ताकि यह पता लगाया जा सके कि कार्रवाई का आधार है या नहीं।
इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस को संवेदनशील बनाने के लिए व्यापक प्रशिक्षण की जरूरत बताई। पीठ ने कहा, “संविधान को 75 साल हो चुके हैं। पुलिस को अब तक इसके मूल्यों और अभिव्यक्ति की आजादी के सम्मान के प्रति जागरूक होना चाहिए था। अगर ऐसा नहीं है, तो राज्यों को प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करने चाहिए।”
यह फैसला पुलिस को याद दिलाता है कि उनकी शक्तियां संविधान के अधीन हैं और लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सबसे ऊपर है। कोर्ट ने प्रस्तावना का हवाला देते हुए कहा, “संविधान भारत को विचार और अभिव्यक्ति की आजादी की गारंटी देता है। पुलिस को इसकी रक्षा करनी होगी।”