नई दिल्ली : भारत सरकार ने सिंधु जल संधि पर जनता की राय लेने की घोषणा की है, जो 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हस्ताक्षरित एक महत्वपूर्ण जल-वितरण समझौता है। इस संधि को अप्रैल 2025 में जम्मू-कश्मीर में हुए आतंकवादी हमले के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं के चलते निलंबित कर दिया गया था। सूत्रों के अनुसार, सरकार सिंधु जल संधि के भविष्य पर एक व्यापक आउटरीच कार्यक्रम चलाने की योजना बना रही है, जिसमें जनता की राय शामिल होगी। यह कदम पाकिस्तान के साथ जारी तनाव और संधि के तहत पानी के बंटवारे को लेकर बढ़ती असंतुष्टि के बीच आया है।
सिंधु जल संधि, जिसे विश्व बैंक की मध्यस्थता से हस्ताक्षरित किया गया था, सिंधु नदी और इसके सहायक नदियों के पानी के उपयोग को विनियमित करती है। हाल के वर्षों में, भारत ने इस संधि को अनुचित मानते हुए आलोचना की है, खासकर पंजाब और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों में पानी की कमी के संदर्भ में। अप्रैल 2025 में, पाहलगाम आतंकवादी हमले के बाद, भारत सरकार ने संधि को निलंबित कर दिया और पाकिस्तान पर राज्य-प्रायोजित आतंकवाद का आरोप लगाया। जून 2025 में, सरकार ने घोषणा की कि संधि का निलंबन अनिश्चित काल के लिए जारी रहेगा, और पश्चिमी नदियों के पानी को राजस्थान की सिंचाई अवसंरचना की ओर मोड़ने की योजना बनाई गई है।
नई पहल के तहत, सरकार सिंधु जल संधि के रद्द करने या संशोधन के विकल्पों पर जनता की राय लेगी। यह कार्यक्रम विभिन्न हितधारकों, जिसमें किसान, जल विशेषज्ञ, और नीति निर्माता शामिल हैं, के साथ परामर्श और चर्चा को शामिल करेगा। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “सिंधु जल संधि पर जनता की राय लेना महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह निर्णय केवल राष्ट्रीय सुरक्षा और जल संसाधनों के प्रबंधन को ही नहीं, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता को भी प्रभावित करेगा।”
इस कदम से भारत-पाकिस्तान के बीच संबंधों पर और असर पड़ने की संभावना है, खासकर जब से पाकिस्तान ने विश्व बैंक के पास मध्यस्थता की मांग की है। भारत का मानना है कि संधि के मौजूदा terms अब टिकाऊ नहीं हैं, और इसे नए सिरे से विचार करने की आवश्यकता है।
सिंधु जल संधि पर जनता की राय लेने की भारत सरकार की पहल एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जो न केवल जल संसाधनों के प्रबंधन बल्कि क्षेत्रीय राजनीति और सुरक्षा पर भी गहरा असर डाल सकती है। आने वाले महीनों में इस मुद्दे पर और विकास देखने को मिल सकते हैं।