पटना: राजनीति में कहा जाता है कि कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता। बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव और सुशील कुमार मोदी के बीच के उतार-चढ़ाव भरे रिश्ते इस कहावत को बखूबी चरितार्थ करते हैं। दशकों से इन तीनों नेताओं के आपसी समीकरणों ने राज्य की सियासत को आकार दिया है।
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नीतीश और लालू: कॉलेज के दिनों की दोस्ती से राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता तक
नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव की दोस्ती पटना विश्वविद्यालय में छात्र रहने के दिनों से शुरू हुई। दोनों ने समाजवादी छात्र राजनीति में हिस्सा लिया और जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया। उस समय लालू यादव का राजनीतिक कद नीतीश से बड़ा था।
1977 में दोनों ने जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा—लालू ने लोकसभा और नीतीश ने विधानसभा के लिए। लालू ने जीत दर्ज की, जबकि नीतीश हार गए। 1985 में दोनों पहली बार साथ में विधानसभा पहुंचे, लेकिन लालू पहले से स्थापित नेता बन चुके थे।
1990 में लालू मुख्यमंत्री बने, लेकिन नीतीश को उम्मीद के मुताबिक महत्व नहीं मिला। दोनों के बीच दूरियां बढ़ीं और उन्होंने अपने-अपने राजनीतिक दल बनाए—लालू ने राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और नीतीश ने जनता दल यूनाइटेड (JDU)। इसके बाद दोनों धुर विरोधी बन गए। समय ने करवट ली और 2015 में दोनों ने महागठबंधन बनाकर भाजपा को हराया। हालांकि, यह गठबंधन ज्यादा समय तक नहीं टिक सका। महागठबंधन के दौरान सुशील कुमार मोदी ने लालू परिवार के खिलाफ ‘मिट्टी-मॉल घोटाले’ का अभियान छेड़ा। करीब 50 दिनों तक चलाए गए इस अभियान ने नीतीश कुमार को महागठबंधन पर शक करने पर मजबूर कर दिया। सुशील मोदी के लगातार हमलों और घोटाले के आरोपों ने नीतीश कुमार को भाजपा के साथ दोबारा गठबंधन करने पर मजबूर किया। 2017 में नीतीश ने महागठबंधन को तोड़कर भाजपा के साथ सरकार बना ली।
नीतीश और सुशील मोदी: भरोसे की साझेदारी से सियासी अलगाव तक
नीतीश कुमार और सुशील कुमार मोदी भी जेपी आंदोलन के दिनों से साथी रहे। दोनों की दोस्ती बिहार की राजनीति में मिसाल मानी जाती थी। 2005 से 2020 तक जब-जब नीतीश मुख्यमंत्री बने, सुशील मोदी ने उपमुख्यमंत्री के रूप में उनका साथ दिया। नीतीश कुमार ने एक बार सार्वजनिक रूप से कहा था कि अगर सुशील मोदी भाजपा में शीर्ष भूमिका निभा रहे होते, तो गठबंधन टूटने की नौबत ही नहीं आती। इससे पता चलता है कि नीतीश सुशील मोदी पर कितना भरोसा करते थे। हालांकि, 2020 के बाद नीतीश और सुशील मोदी के राजनीतिक रास्ते अलग हो गए। भाजपा ने सुशील मोदी को बिहार की सक्रिय राजनीति से दूर कर राज्यसभा भेज दिया।