भारत की राजनीति में बयानों का महत्व क्या है, यह साबित करने की जरुरत नहीं है। पहले मामला राजनीतिक होता था। नेता चुनाव हार जाते थे। पार्टियां चुनाव हार जाती थी। लेकिन अब बयानों का आपराधिक पहलू भी सामने आ चुका है। कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की सदस्यता विवादित बयान देने के मामले में ही चली गई है। तो दूसरी ओर बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव पर गुजरात के अहमदाबाद की कोर्ट में मामला चल रहा है। इस कड़ी में दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल भी शामिल हो गए हैं। केजरीवाल पर पटना में मामला दर्ज हुआ है। राहुल ने ‘मोदियों’ को चोर कहा था। तेजस्वी ने गुजरातियों को ठग कहा था। केजरीवाल ने पीएम नरेंद्र मोदी को अनपढ़ कहा है। लेकिन नेताओं की फिसली जुबान का सिलसिला नया नहीं है। आमतौर पर सौम्य समझे जाने वाले पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की भी जुबान फिसल चुकी है। वाजपेयी की जुबान जब फिसली थी, तो उसका खामियाजा उन्हें चुनाव हारकर चुकाना पड़ा था। किस्से सिर्फ वाजपेयी के बयान तक सीमित नहीं हैं। लंबी फेहरिस्त है जब नेताओं की जुबान फिसली और उन्हें शर्मिंदा होना पड़ा।
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वाजपेयी की टिप्पणी ने उन्हें हरवा दिया
अटल बिहारी वाजपेयी को भारतीय राजनीति में ऐसे नेता के रूप में याद किया जाता है, जो प्रभावी भाषण और संतुलित व्यवहार के लिए जाने जाते थे। लेकिन गलती उनसे भी हुई। कांग्रेस की प्रतिद्वंदी उम्मीदवार सुभद्रा जोशी के लिए वाजपेयी ने ऐसा बयान दे दिया कि चुनाव हार गए। बात 1962 की है, जब देश में तीसरा आम चुनाव चल रहा था। अटल बिहारी वाजपेयी 1957 में यूपी की बलरामपुर सीट से सांसद चुने गए थे। तब उन्होंने हैदर हुसैन को हराया था। लेकिन 1962 के चुनाव में वाजपेयी का सामना कर रहीं थी कांग्रेस की सुभद्रा जोशी। प्रचार अभियान के दौरान सुभद्रा जोशी यह वादा कर रही थीं कि वो बारहों महीने और तीसों दिन जनता की सेवा करेंगी। जोशी के इसी बयान पर वाजपेयी ने टिप्पणी कर दी थी कि महिलाएं महीने में कुछ दिन सेवा नहीं कर सकती हैं तो सुभद्रा जी कैसे दावा कर रही हैं? वाजपेयी के इस बयान को कांग्रेस ने महिलाओं का अपमान बताते हुए मुद्दा बनाया। नतीजा यह हुआ कि वाजपेयी 2057 मतों से चुनाव हार गए। हालांकि 1967 में हुए चौथे चुनाव वाजपेयी ने सुभद्रा जोशी को बड़े अंतर से हराया था। इसलिए कहा जाता है कि शायद वाजपेयी की जुबान नहीं फिसली होती तो वे 1962 का भी चुनाव नहीं हारते।
सोनिया के बयान के बाद भाजपा ने तोड़ दिया जीत का रिकॉर्ड
कांग्रेस की पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी की हिंदी वैसे तो बहुत साफ नहीं है। लेकिन हिंदी में तीन शब्दों की उनकी एक टिप्पणी ने भाजपा को गुजरात में रिकॉर्ड तोड़ जीत दिला दी थी। साल 2007 में गुजरात चुनाव प्रचार के दौरान सोनिया गांधी ने तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी को मौत का सौदागर कह दिया। भाजपा ने सोनिया के इस बयान को गुजरात की अस्मिता का अपमान बताते हुए मुद्दा बना लिया। नतीजा यह हुआ कि गुजरात में भाजपा 117 सीटों पर जीती जो एक रिकॉर्ड था। कांग्रेस 59 सीटों पर सिमट गई।
भागवत के बयान ने बिहार में भाजपा को किया धराशायी
देश में कुछ मुद्दे ऐसे हैं, जिनसे छेड़छाड़ तो दूर उनकी समीक्षा की बात भी उल्टा असर करती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत का एक बयान इसी बात का गवाह है। 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव के पहले मोहन भागवत ने कहा कि आरक्षण की समीक्षा होनी चाहिए। लेकिन इस बयान को राजद के लालू यादव और जदयू के नीतीश कुमार ने ऐसा भुनाया कि भाजपा की बुरी हार हुई।
मुलायम के विवादित बयान ने भी बटोरी थी सुर्खियां
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी सत्ता के लिए छटपटा रही है। पिछले दो चुनावों में सपा का हर प्रयास असफल हो रहा है। मौजूदा सरकार में शामिल भाजपा के नेता सपा की पूर्व की सरकारों पर अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने के आरोप लगाती हैं। इसका आधार समाजवादी पार्टी के पूर्व अध्यक्ष व यूपी के पूर्व सीएम मुलायम सिंह यादव का एक बयान को भी बनाया जाता है। मुलायम ने रेप के मामलों में फांसी की सजा की मांग पर कहा था ‘लड़कों से ऐसी गलतियां हो जाती हैं तो इसका ये मतलब नहीं कि फांसी दे दी जाए। रेप के आरोपियों को फांसी की सजा देना गलत है।’
दिग्विजय ने तो अपनी पार्टी की महिला नेता पर ही दे दिया था विवादित बयान
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह तो जैसे विवादित बयानों की खान हैं। लादेन को ओसामा जी कहने वाले दिग्विजय सिंह एक बार अपनी ही पार्टी की सांसद मीनाक्षी नटराजन पर टिप्पणी के लिए सुर्खियों में आए थे। दिग्विजय ने खुद आप को राजनीति का पुराना जौहरी बताते हुए कहा, ‘मुझे पता है कि कौन फर्जी है और कौन सही है। इस क्षेत्र की सांसद मीनाक्षी नटराजन सौ टंच माल है।’ गौरतलब है कि मीनाक्षी नटराजन तब मध्यप्रदेश के मंदसौर की सांसद थीं।