ड्मरी: जेएमएम की सुरक्षित सीट माने जाने वाले डुमरी विधानसभा से इस बार मंत्री बेबी देवी के चुनाव नहीं लड़ने की संभावना बताई जा रही है। बता दें डुमरी विधानसभा हमेशा से ही जेएमएम का गढ़ माना जाता रहा है। इस क्षेत्र में पूर्व शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो की पकड़ बेहद मजबूत थी। पिछले वर्ष बीमारी की वजह से हुई उनकी मौत के बाद उनकी पत्नी बेबी देवी ने मोर्चा सम्भाला वहीं अब बाताया जा रहा है कि इस बार के होने वाले विधानसभा चुनाव में मंत्री बेबी देवी नहीं उतरेंगी बल्कि मंत्री जगरनाथ महतो व बेबी देवी के सुपुत्र अखिलेश महतो को जेएमएम चुनाव मैदान में उतार सकती है।
मालूम हो कि मंत्री बेबी देवी अपने हर कार्यक्रम में अपने पुत्र के साथ ही नजर आ रही है। इस दौरान बेबी देवी ने मीडिया के समक्ष भी जनता से अपने पुत्र को आर्शीवाद देने की बात कही है। कुल मिलाकर कह सकते है कि अब अखिलेश महतो डुमरी से जगरनाथ महतो की विरासत को सम्भालेंगे। लेकिन डुमरी विधानसभा की राह इतनी भी आसान नहीं है। इसका कारण नए नए नेता के रूप में उभरे जयराम महतो हैं। बता दें झारखंड में 1932 के खतियान आधारित नीति लागू करने व स्थानीय लोगों को हक और अधिकार दिलाने समेत अन्य स्थानीय मुद्दों के नाम पर अपनी राजनीतिक अस्तित्व में आए जयराम महतो डुमरी सीट पर जगरनाथ महतो व बेबी देवी की जड़े हिला सकते हैं। ऐसा कहने का कारण है कि जयराम महतो लोकसभा चुनाव 2024 में गिरिडीह से 3 लाख 50 हजार के आसपास वोट लाकर क्षेत्र में अपनी ताकत दिखा चुके हैं।
वहीं इस बार जयराम ने खुद डुमरी विधानसभा से चुनाव लड़ने की घोषणा की है। जयराम की बढ़ती लोकप्रियता ओर लोकसभा में मिले आशातीत जनसमर्थन के दम पर अब जयराम ड़मरी में अपनी किस्मत आजमाना चाहते हैं। मालूम हो कि लोकसभा 2024 में डुमरी से जयराम को 90541 वोट मिले थे वहीं आजसू के चंद्रप्रकाश चौधरी को 55421 वोट प्राप्त हुए थे। इसके अलावा जेएमएम के मथुरा प्रसाद महतो को 52193 वोट मिले थे। लोकसभा के इस परिणाम को देख कर जयराम महतो ने डुमरी से चुनाव लड़ने की घोषण की हैहालांकि उन्होंने एक और सीट पर भी चुनाव लड़ने की घोषणा की है पर अभी इसका खुलासा नही किया है संभावित है कि वो बाघमारा हो सकता है। बता करे डुमरी की तो डुमरी नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में आता है। बल्कि रिपोर्ट की माने तो इसके आसपास का इलाका अति नक्सल प्रभावित है।
नक्सल वारदात यहां के लिए आम बात है। इस कारण् यहां से लोगों का पलायन जारी है और विकास कोसो दूर है। नक्सल एक गंभीर समस्या है जिसके कारण रोजगार की नगण्यता है। रोजगार की तलाश में अपने भूमि को छोड़ युवा पलायन के लिए मजबूर है। रोजगार की तलाश में यहां के युवा दूसरे राज्य में नौकरी की तलाश में जाते रहे हैं जबकि महिलाएं तेंदू पत्ता या दातुन बेचकर अपना और परिवार का पेट भरने को मजबूर है। डुमरी की ये समस्या हमेशा चुनाव के समय यह एक बड़ा मुद्दा बनकर उभरकर भी सामने आता है। सभी दल के नेता यहां की भोली भाली जनता को यह आश्वाशन भी देते हैं कि उनकी सरकार बनी तो नक्सल से आजादी मिलेगी क्षेत्र का विकास होगा। युवाओं को अपने ही क्षेत्र में रोजगार मिलेगा। पलायन से मुक्ति मिलेगी लेकिन कितने चुनाव आए और गए डुमरी कीस्थिति जस के तस बनी रही है। अब जनता पुराने वादो से ऊब चुकी है इसका संकेत लोकसभा चुनाव में दिख चुका है। समय बदल रहा है मानसिकता बदल रही है और बदल रहा है जनता का नजरिया। इस बार ड़मरी में कौन जीतेगा ये आने वाले वक्त में ही पता चल पाएगा।