राम मंदिर का उद्घाटन 22 जनवरी को होगा। पीएम नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा समारोह का आयोजन होगा। इस आयोजन को लेकर तैयारियों को पूरा कराया जा रहा है। साथ ही राम मंदिर के निर्माण के पीछे की कहानियों को जानने के पीछे आपकी दिलचस्पी बढ़ गई है। ऐसी ही एक कहानी कोठारी बंधुओं की है। 33 साल पहले अयोध्या की सड़कों पर कारसेवा करने आए दो युवाओं मौत ने देश में रामभक्तों को झकझोर कर रख दिया था।
अयोध्या की चकाचक होती सड़कें और आकार लेते भव्य मंदिर के पीछे जाने कितने ही कारसेवकों का बलिदान रहा है। एक कारसेवा वर्ष 1990 में हुई थी। यह इतिहास के पन्नों में दर्ज हुई। तारीख थी 2 नवंबर 1990। ठीक 33 साल पहले राम मंदिर का आंदोलन चरम पर था। देश के कोने- कोने से लाखों की संख्या में कारसेवक अयोध्या की सीमा में घुस चुके थे। युवा स्टूडेंट्स, स्वयंसेवक महिलाएं और लड़कियां सभी बस अयोध्या पहुंच जाना चाहते थे। मंदिर आंदोलन के नायक अशोक सिंघल के आह्वान पर लाखों कारसेवकों का जमावड़ा अयोध्या में हो चुका था। सभी पर गिरफ्तारी की भी तलवार लटक रही थी। उस समय यूपी में समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव की सरकार थी। सुबह में विवादित राम मंदिर में पहुंच कर कारसेवा करने की योजना तैयार की गई। अशोक सिंघल, उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा, विनय कटियार सहित विश्व हिन्दू परिषद से जुड़े संतों की जमात अयोध्या में मौजूद थी।
सुबह से ही सड़कों पर होने लगा था कारसेवकों का जुटान
अयोध्या की सड़कों पर सुबह से ही कारसेवकों का जुटान होने लगा था। देश के विभिन्न भागों से पहुंचे कारसेवक शरण लिए स्थलों से निकल कर सड़क पर उतर चुके थे। कारसेवकों के जुटने का केंद्र सरयू तट रखा गया था। वहां से कारसेवकों का हुजूम हनुमानगढ़ी की ओर चल पड़ा। अशोक सिंघल संतों के जत्थे की अगुआई कर रहे थे। कारसेवकों का दल जैसे ही अयोध्या कोतवाली से आगे बढ़ा, पुलिस की सरगर्मी बढ़ गई। सुरक्षा में लगे कांस्टेबलों के डंडे फटकने लगे और बंदूके तन गई।
पुलिस अधिकारियों ने माइक पर हुजूम को आगे न बढ़ने की चेतावनी दी। कारसेवक कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे। वे आगे बढ़ते रहे। कारसेवकों का दल जैसे ही अयोध्या मेन रोड से हनुमानगढ़ी की ओर मुड़ने की कोशिश की, पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी। कारसेवक गोलियों से भी नहीं डर रहे थे। एक कारसेवक को गोली लगती, साथी कारसेवक उसे उठाकर ले जाते। हुजूम आगे बढ़ने का प्रयास करता रहा। काफी देर तक यह सिलसिला चलता रहा।
कोठारी ब्रदर्स भी कर रहे थे कारसेवा
राजकुमार कोठरी (23) और शरद कोठारी (20) दोनों भाई कलकत्ता में संघ से जुड़ गए थे। वे आरएसएस की शाखाओं में शामिल होते थे। दूसरे साल तक का प्रशिक्षण हासिल कर रखा। वे दिगंबर अखाड़ा की तरफ निकल रहे कारसेवकों के हुजूम में शामिल थे। कारसेवक निहत्थे थे। लेकिन, पुलिस लगातार गोलियां चला रही थी। कोठारी बंधुओं को पुलिस की गोली लग गई। सड़क पर उनकी मौत हो गई। राम मंदिर का आंदोलन तब दिगंबर अखाड़ा मणिराम छावनी और कारसेवकपुरम से हो रहा था। 30 अक्टूबर 1990 की घटना 2 नवंबर को भी दोहराई गई थी। हालांकि, इस दिन कारसेवकों ने मुलायम सरकार को जवाब दे दिया था। वे विवादित ढांचे तक पहुंच कर तोड़फोड़ करने में कामयाब हो गए थे। लेकिन, कारसेवा के क्रम में दो युवा कारसेवकों की शहादत को राम मंदिर आंदोलन के इतिहास में आज भी याद किया जाता है।
पैदल ही पहुंचे थे अयोध्या
मुलायम सरकार ने दावा किया था कि विवादित ढांचे पर परिंदा भी पर नहीं मार सकता है। इसके लिए पुलिस- प्रशासन को कड़े निर्देश जारी किए गए थे। गोलियां चलाने की पूरी छूट थी। इसके बाद भी कारसेवा हुई। कारसेवकों के जुनून की गाथा कोठारी बंधुओं से ही सुनने को मिलती है। आरएसएस की शाखाओं में द्वितीय वर्ष तक प्रशिक्षित दोनों भाइयों ने कारसेवा की घोषणा होते ही अयोध्या आने की जिद शुरू कर दी। बाद में उनके पिता हीरालाल कोठारी ने दोनों को जाने की अनुमति दे दी। 1990 के दिसंबर महीने में उनकी बहन की शादी होने वाली थी। लेकिन, अक्टूबर-नवंबर में होने वाली कारसेवा में दोनों भाइयों ने शामिल होने का फैसला किया था। बहन को शादी में आने का वादा कर दोनों भाई निकल गए। वाराणसी पहुंचने पर उन्हें पता चला कि अयोध्या के लिए ट्रेन सेवा बंद कर दी गई है। रास्ते भी बंद हैं। दोनों ने टैक्सी ली और आजमगढ़ पहुंच गए। वहां से उन्होंने अयोध्या जाने का फैसला लिया। पैदल ही निकल गए। 200 किलोमीटर की पैदल यात्रा की। 30 अक्टूबर 1990 को दोनों भाई अयोध्या पहुंचे थे।
निकाल दी थी मुलायम के दावों की हवा
30 अक्टूबर से कारसेवा शुरू हुई। दोनों भाई गजब के जुनूनी थे। दोनों भाई विवादित बाबरी ढांचे के गुंबदों तक पहुंच गए। वहां भगवा ध्वज फहरा कर मुलायम सरकार की चुनौतियों की हवा निकाल दी। पुलिस की लाठियां भी खाई, लेकिन दोनों का जोश कम नहीं हुआ। 2 नवंबर को कारसेवा का अगला चरण रखा गया था। दोनों भाई बजरंग दल के संस्थापक अध्यक्ष विनय कटियार के नेतृत्व में सड़क पर निकले। पुलिस ने इस दौरान फायरिंग शुरू कर दी। दोनों भाई एक मकान में छिप गए। दावा किया जाता है कि एक पुलिस अधिकारी ने शरद कोठारी को घर से पकड़ लिया। सड़क पर खड़ाकर उन्हें गोली मार दी गई। बड़े भाई राजकुमार कोठारी शरद को बचाने के लिए दौड़े। उन्हें भी गोली मार दी गई। 4 नवंबर 1990 को दोनों भाइयों का सरयू तट पर अंतिम संस्कार किया गया। इस दौरान कारसेवकों की भारी भीड़ सरयू तट पर उमड़ी। सरकार के खिलाफ नारे लगे। कोठारी बंधु बहन पूर्णिमा की शादी में नहीं पहुंच पाए। मंदिर आंदोलन के इतिहास में उनका नाम दर्ज हो गया।