झारखंड में बरहेट विधानसभा एक ऐसी सीट है जो झारखंड मुक्ति मोर्चा का गढ़ है। बरहेट सीट से विधायक हेमंत सोरेन हैं, जो मुख्यमंत्री भी हैं। बड़ी बात यह है कि इस सीट पर झारखंड बनने के बाद हुए चार चुनावों में हर बार झामुमो ही जीती है। 2005 में थॉमस सोरेन, 2009 में हेमलाल मुर्मू जीते थे। जबकि 2014 और 2019 का चुनाव हेमंत सोरेन ने जीता है। तो क्या यह सीट भाजपा के लिए अबूझ पहेली है? जवाब हां भी हो सकता है और नहीं भी। क्योंकि बरहेट गढ़ तो झामुमो का है, लेकिन पैर पसार रही है भाजपा।
बोरियो विधानसभा : हर बार बदल जाता है जनता का मूड, इस बार जारी रहेगा रिवाज या होगा नया आगाज?
बरहेट विधानसभा : पिछले 3 चुनावों में भाजपा ने 25 प्रतिशत मत बढ़ाए
झारखंड निर्माण के बाद 2005 में हुआ पहला चुनाव तो झामुमो के लिए एकतरफा रहा। 45.92 फीसदी वोटों के साथ झामुमो के थॉमस सोरेन ने जीत दर्ज की। तब भाजपा के साइमन माल्टो को 31.02 फीसदी वोट मिले। लेकिन 2009 में भाजपा उम्मीदवार मनोज मुर्मू को सिर्फ 9.35 फीसदी वोट मिले। इसके बाद भाजपा ने रिकवरी शुरू की। 2014 में झामुमो ने हेमंत सोरेन को खड़ा किया तो भाजपा ने उनके खिलाफ तत्कालीन विधायक हेमलाल मुर्मू को खड़ा किया। भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़कर 28.38 फीसदी हो गया। हालांकि 46.18 फीसदी वोट लाकर जीते हेमंत सोरेन ही। इसके बाद 2019 के चुनाव में भाजपा ने एक बार फिर पुराने नेता साइमन माल्टो को टिकट दिया और तब उसे 34.82 फीसदी वोट मिले। लेकिन 53.49 फीसदी वोट लाकर जीते हेमंत सोरेन ही। हालांकि बाबूलाल मरांडी की जेवीएम और सुदेश महतो की आजसू तब भाजपा के खिलाफ थी और दोनों के उम्मीदवारों को मिलाकर लगभग 4 फीसदी वोट मिले। अब ये दोनों भाजपा के साथ हैं।
हालांकि अभी हुए लोकसभा चुनाव में इस विधानसभा के वोटों के देखें तो एक बार फिर भाजपा पिछड़ती ही नजर आती है। क्योंकि राजमहल लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली बरहेट विधानसभा से झामुमो के प्रत्याशी को लगभग 24 हजार वोटों की लीड मिली थी। इस विधानसभा में झामुमो प्रत्याशी विजय कुमार हंसदक को 76,068 वोट मिले थे। जबकि भाजपा प्रत्याशी ताला मरांडी को 52,629 वोट मिले थे। विजय कुमार हंसदक एक वक्त में बरहेट विधानसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं। 2009 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर बरहेट विधानसभा से चुनाव लड़े विजय कुमार हंसदक को 20,303 वोट मिले थे और वे दूसरे स्थान पर रहे थे।