देश की राजनीतिक गलियारों में इस वक्त दो पदयात्रा काफी चर्चा का विषय बना हुआ हुआ है। एक राहुल गांधी की भारत जोड़ो पदयात्रा है, जिसमें वो कन्याकुमारी से कश्मीर के लिए पैदल निकल पड़े हैं। उनकी ये पदयात्रा 3,570 किमी लंबी है। इसके जरिए वो कांग्रेस की खोई हुई राजनीतिक जमीन तलाशने में लगे हुए हैं। वही दूसरी ओर चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर बिहार में जनसुराज पदयात्रा कर रहे हैं। उन्होंने ऐलान कर रखा है कि वो बिहार के प्रत्येक जिले के प्रखंड स्तर तक अपनी इस पदयात्रा को ले जाएंगे। इस दौरान वो लगभग 3000 किमी की दूरी तय करेंगे। अपनी पदयात्रा के दौरान वो बिहार में नई तरह की राजनीति शुरू करने का दम भर रहे हैं। इनकी ये पदयात्रा जिस मकसद से की जा रही वो पूरा होगा या नहीं ये तो आने वाला समय ही बताएगा।
लेकिन इससे पहले इस बात को समझाने की जरूरत है कि भारत की राजनीति में पदयात्राओं का क्या इतिहास रहा है। वैसे आधुनीक भारत की बात करे तो पदयात्रा की नींव महात्मा गांधी ने रखी थी। जिसे दांडी यात्रा का नाम दिया गया था। हालांकि ये कोई राजनीतिक पदयात्रा नहीं थी बल्कि अंग्रेजी शासन के कानून के विरोध में की गई थी। आजादी के बाद कई ऐसे नेता हुए जिन्होंने पदयात्रा की। किसी को इससे आपार सफलताएं मिली तो कोई कुछ खास नहीं कर पाए।
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पूर्व PM चंद्रशेखर की भारत यात्रा
भारत के 8 वें प्रधानमंत्री रहे चंद्रशेखर ने आजाद भारत की सबसे बड़ी राजनीतिक पदयात्रा की थी। इस पदयात्रा को भारत यात्रा का नाम दिया गया था। ये पदयात्रा साल 1983 में कन्याकुमारी से दिल्ली तक की गई थी। जिसमें उन्होंने 4,000 किमी की दूरी तय की थी। ये पदयात्रा 6 जनवरी 1983 को कन्याकुमारी के विवेकानंद स्मारक से प्रारंभ की गई थी जो दिल्ली के राजघाट पर जाकर खत्म हुई। इस पदयात्रा का कुछ खास प्रभाव चंद्रशेखर के राजनीतिक जीवन पर तत्काल देखने को नहीं मिला। चंद्रशेखर 1990 में में देश के प्रधानमंत्री तो बने पर बहुमत की कमी के कारण साल 1991 उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था।
वाई एस राजशेखर रेड्डी की पदयात्रा
आंध्र प्रदेश के नेता वाई एस राजशेखर रेड्डी ने पदयात्रा के जरिए ही आंध्र प्रदेश के CM की कुर्सी तक की दूरी तय की थी। दरअसल साल 9 अप्रैल 2003 को वाई एस राजशेखर रेड्डी ने आंध्र प्रदेश में 1,500 किमी की पदयात्रा की थी। जो लगभग 2 महीने तक चली थी। इस दौरान उन्होंने आंध्र प्रदेश के 11 जिलों का दौरा किया था और वहां के लोगों से सीधा संपर्क किया था। इस पदयात्रा का बड़ा फायदा उन्हें 2004 के आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव में मिला। उनकी पार्टी ने चुनाव में जीत हासिल की और वो वहां के मुख्यमंत्री बने। वो 2004 से अपने निधन यानी 2009 तक आंध्र प्रदेश को मुख्यमंत्री रहे।
चंद्रबाबू नायडू की पदयात्रा
वाई एस राजशेखर रेड्डी से पहले आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू थे। वाई एस राजशेखर रेड्डी की पदयात्रा की सफलता से सबसे बड़ा नुकसान चंद्रबाबू नायडू का ही हुआ था। उनके साल 2004 में अपनी सत्ता गंवानी पड़ी। वाई एस राजशेखर रेड्डी की पदयात्रा वाली ट्रिक को चंद्रबाबू नायडू ने साल 2014 में आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले अपनाया। साल 2013 में चंद्रबाबू नायडू 1,700 किमी लंबी पदयात्रा की। इसके जरिए उनके फिर से एक बार सत्ता आंध्र प्रदेश में वापसी की और एक बार फिर से मुख्यमंत्री बने।
दिग्विजय की नर्मदा यात्रा
पदयात्रा का दौर दक्षिण भारत से होता हुआ मध्य भारत में भी पहुंचा। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने साल 2017 में पदयात्रा की थी। जिसे नर्मदा यात्रा का नाम दिया गया था। इस पदयात्रा में उन्होंने मध्य प्रदेश की 110 विधानसभा सीटों का दौरा किया और वहां के आम लोगों से सीधी मुलाकात की। दिग्विजय इस पदयात्रा को एक धार्मिक यात्रा बताते रहे लिकिन जानकर इसे भी राजनीतिक यात्रा ही मानते हैं। इसका फायदा भी कांग्रेस को 2018 में मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव मिला। हालाकिं कांग्रेस को पूर्ण बहुमत तो नहीं मिला फिर भी वो बसपा और सपा की समर्थन से सरकार बनने में कामयाब रही।
जगन मोहन रेड्डी की पदयात्रा
अपने पिता वाई एस राजशेखर रेड्डी के दिखाए राह पर चलते हुए बेटे जगन मोहन रेड्डी ने भी भी आंध्र प्रदेश में पदयात्रा निकाली। साल 2017 में उन्होंने ने ये पदयात्रा निकाली जो करीब 341 दिन तक चली। इस दौरान उन्होंने लगभग 3,648 किमी की दूरी तय की। अपने पिता की तरह ही उनकी भी पदयात्रा सफल रही। जिसका परिणाम उन्हें 2019 के आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव में देखने को मिला। जगन मोहन रेड्डी की पार्टी ने विधान सभा की 175 में से 151 सीटें जीत कर इतिहास रच दिया। इसी के साथ जगन मोहन रेड्डी पहली बार आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।