देश में नई बहस चल पड़ी है कि देश का नाम क्या हो। इंडिया और भारत दोनों ही नामों को भारतीय संविधान में मान्यता दी गई है। लेकिन अभी एक वर्ग इंडिया शब्द के विरोध में उतर आया है। भाजपा के यूपी से सांसद हरनाथ सिंह यादव तो इंडिया शब्द को अंग्रेजों द्वारा दी गई गाली बता रहे हैं और भारत शब्द की वकालत कर रहे हैं। लेकिन इतिहास में यह भी दर्ज है कि जिस राज्य से हरनाथ सिंह यादव सांसद बने हैं, उस राज्य के उन्हीं के पार्टी के सीएम योगी आदित्यनाथ देश का नाम भारत नहीं करना चाहते थे। वैसे पिछले 13 सालों का ही इतिहास देखें तो कुल 6 औपचारिक कोशिशें हुई हैं देश का नाम बदलने की, जिसमें अर्जी संसद से लेकर कोर्ट तक लगाई गई है।
2010 में कांग्रेस सांसद ने लगाई थी मांग
वैसे तो आज कांग्रेस भारत और इंडिया के विवाद को अलग रंग देने में जुटी हुई है। लेकिन यह भी सच है कि यूपीए की सरकार रहते हुए कांग्रेस के सांसद ने ही देश का नाम सिर्फ भारत रखने का बिल पेश किया था। यह प्रयास एक बार नहीं दो बार किया गया। दोनों बार प्रयास कांग्रेस सांसद शांताराम नाइक ने किया। पहली बार शांताराम नाइक ने 2010 में प्राइवेट बिल लाकर संविधान से इंडिया शब्द हटाने का प्रस्ताव दिया। इस प्रस्ताव में देश का नाम भारत करने की बात थी। इसके बाद 2012 में भी शांताराम नाइक ने अपनी मांग दुहराई।
योगी आदित्यनाथ भी चाहते थे संशोधन
यूपी के सीएम बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने कई शहरों, स्टेशनों के नाम बदले हैं। वैसे नाम बदलने के पक्षधर योगी आदित्यनाथ सीएम बनने से पहले बतौर सांसद भी रहे हैं। मोदी सरकार बन जाने के बाद 2015 में बतौर लोकसभा सांसद योगी आदित्यनाथ ने एक प्राइवेट बिल पेश किया। इसमें बिल में योगी आदित्यनाथ ने देश का नाम संविधान में इंडिया दैट इज भारत की जगह इंडिया दैट इज हिंदुस्तान करने की मांग की। योगी आदित्यनाथ की मांग में भारत नहीं हिंदुस्तान था। वैसे देश का नाम भारत करने का प्रस्ताव 1949 में भी आया था। तब संविधान सभा में एचवी कामथ ने देश का नाम इंडिया से बदल कर भारत या भारतवर्ष करने का संशोधन प्रस्ताव पेश किया था। इस पर बहस हुई। हालांकि यह वोटिंग के बाद गिर गया था।
सुप्रीम कोर्ट में भी पहुंची है अर्जी
संविधान सभा और संसद के साथ देश का नाम बदलने की अर्जी सुप्रीम कोर्ट में भी पहुंची है। 2016 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर देश का नाम भारत करने की मांग की गई थी। लेकिन तत्कालीन चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर ने रद्द कर दिया था। 2020 में भी सुप्रीम कोर्ट में फिर ऐसी ही एक याचिका दायर हुई। इसे भी सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया।