लोकसभा चुनाव के बाद दो राज्यों में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। हरियाणा और जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव के बाद अब इंतजार रिजल्ट का है। चुनाव और रिजल्ट के बीच एग्जिट पोल भाजपा के लिए Bad News लेकर आए हैं क्योंकि जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाने का सपना तो टूट ही रहा है, हरियाणा में हैट्रिक का सपना भी दम तोड़ता दिख रहा है। हालांकि नतीजों से पहले सबकुछ कहना संभव नहीं। इसके बावजूद हरियाण और जम्मू-कश्मीर चुनाव के बाद एग्जिट पोल सही साबित हुए तो बिहार में सियासी उलटफेर की शुरुआत हो सकती है।
दरअसल, नीतीश कुमार और भाजपा के रिश्ते पहले की तरह नहीं रहे। भाजपा को नीतीश कुमार पर भरोसा भी पहले जैसा नहीं रहा। मौजूदा स्थिति यह है कि भाजपा को कमजोर नीतीश का साथ चाहिए और नीतीश कुमार को कमजोर भाजपा का साथ चाहिए। लेकिन कौन किसको कितना कमजोर चाहिए, इसका खुलासा अभी होना बाकि है।
लोकसभा चुनाव में भाजपा थोड़ी कमजोर हुई और नीतीश कुमार की बैशाखी के सहारे सरकार बनाने की नौबत आई तो जदयू ने झारखंड में हिस्सेदारी ले ली। अगर हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के बाद महाराष्ट्र और झारखंड में भाजपा के हिस्से Good News नहीं आई तो बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार का दबाव भाजपा को भारी पड़ सकता है।
2015 में नीतीश से अलगाव के बाद भाजपा बिहार में अपने कदमों पर खड़ा होने की कोशिश में है लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा। 2025 में भाजपा नीतीश के नेतृत्व की बात तो करती है लेकिन सीएम फेस पर भाजपा कुछ नहीं बोलती। ऐसे में हरियाणा और जम्मू कश्मीर में अगर भाजपा की हार होती है तो नीतीश कुमार बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा पर जदयू को अधिक सीटें देने के लिए दबाव बनाएंगे। यह दबाव भाजपा झेल पाएगी या नहीं, यह तो आने वाला वक्त बताएगा। लेकिन भाजपा ने नीतीश की बात नहीं मानी तो वे अपने विकल्पों का दरवाजा फिर खोल सकते हैं।
भाजपा से अलग होने की कंडीशन में नीतीश के पास रास्ते
- राजद-कांग्रेस का साथ : नीतीश कुमार ने एक बार फिर अगर भाजपा का साथ छोड़ा तो उनके पास आजमाया हुआ राजद-कांग्रेस के गठबंधन का रास्ता सबसे पहले आएगा। राजद मानेगा या नहीं मानेगा, कांग्रेस इस गठबंधन पर क्या निर्णय लेगी, यह आने वाला वक्त बताएगा। लेकिन राजनीतिक हलकों में जो चर्चा है, उसके मुताबिक अगर तीनों दल मान गए तो भाजपा के लिए बिहार में राह एक बार फिर मुश्किल हो सकती है।
- राजद को अकेले छोड़ कांग्रेस-वामदलों से गठबंधन : राजद-कांग्रेस और जदयू के गठबंधन का सबसे बड़ा रोड़ा सीएम की कुर्सी है। राजद एक ही एजेंडे पर काम कर रहा है और वो एजेंडा है तेजस्वी यादव को सीएम बनाने का। ऐसे में राजद ने नीतीश कुमार के साथ आना स्वीकार नहीं किया तो नीतीश कुमार के पास कांग्रेस और वामदलों के साथ मिलकर एक अलग गठबंधन भी बनाने का रास्ता हो सकता है।
- नीतीश अकेले ही लड़ें : भाजपा से अलग होने के बाद जदयू के साथ राजद और कांग्रेस गठबंधन के लिए न माने तो नीतीश कुमार अकेले भी चुनाव में जा सकते हैं। लेकिन इसकी संभावना कम है क्योंकि नीतीश कुमार अकेले चुनाव लड़ने का नतीजा 2014 के लोकसभा चुनाव में देख चुके हैं। उस चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी को सिर्फ 2 सीटें मिली थीं।
- प्रशांत किशोर के साथ आएं : नीतीश कुमार के पास एक रास्ता यह है कि वे प्रशांत किशोर के जनसुराज के साथ चुनाव में जाएं। हालांकि यह राह भी मुश्किल है क्योंकि भले ही प्रशांत और नीतीश एक वक्त में साथ रह चुके हैं, लेकिन प्रशांत चुनाव से पहले समझौता करेंगे, तो उनकी साख पर बट्टा लग सकता है।