Bihar में राजनीतिक हवा दो-तरफ नहीं चौतरफा चलने लगी है। हर नेता को प्रमोशन की उम्मीद है। अमूमन नेताओं का अप्रेजल चुनाव के बाद होता है। लेकिन बिहार में बिन चुनाव जब सरकार बदल जा रही है, तो दूसरी गतिविधियों की बात ही क्या कहें। सबको बड़ी कुर्सी ही चाहिए। नीतीश कुमार सीएम बने हुए हैं तो उन्हें पीएम की कुर्सी चाहिए। तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम बने हुए हैं, तो उन्हें सीएम की कुर्सी तक पहुंचना है। यहां तक तो बात समझ भी आती है। लेकिन अचानक मंत्री संतोष कुमार सुमन का नाम सीएम की कुर्सी के लिए उछल जाना, सबको हैरान कर रहा है। राजनीतिक गलियारों में एक बार फिर इतिहास दुहराए जाने की सुगबुगाहट दिख रही है। जिसमें नुकसान नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव का होता दिख रहा है।
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मांझी ने उठाई है मांग, नीतीश-तेजस्वी सबको किया परेशान
पूर्व सीएम जीतन राम मांझी ने अपने बेटे और बिहार सरकार के मंत्री संतोष कुमार सुमन को मुख्यमंत्री पद का सबसे योग्य दावेदार बताया है। इशारों में जीतन राम मांझी ने यह मांग कर दी है कि संतोष कुमार सुमन का नाम भी मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर कंसीडर किया जाए। इसके पीछे मांझी का तर्क भी है। उनका कहना है कि संतोष कुमार सुमन सबसे ज्यादा पढ़े लिखे और ईमानदार नेता हैं। इशारों में यह हमला तेजस्वी यादव पर माना जा रहा है। क्योंकि तेजस्वी नौवीं पास हैं और उन पर अवैध संपत्ति का आरोप भी है।
क्यों कर रहे हैं मांझी ऐसा प्रयास?
सबसे बड़ा सवाल यही है कि कभी नीतीश कुमार से बगावत करने वाले जीतन राम मांझी ने कई बार कहा है कि नीतीश कुमार उनके नेता हैं। ऐसे में जब नीतीश कुमार ने कहा है कि 2025 में महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव होंगे, तो इस बात से मांझी को ऐतराज क्यों है? दरअसल, मांझी जिस समुदाय से आते हैं, उससे वे पहले व्यक्ति थे जो सीएम की कुर्सी तक पहुंचे। अगर मांझी के पैमानों पर सीएम पद के उम्मीदवार की समीक्षा करें तो संतोष कुमार सुमन आगे दिखते हैं। क्योंकि तेजस्वी और संतोष दोनों एक मामले में तो एक समान हैं कि दोनों के पिता सीएम रहे हैं। लेकिन पढ़ाई-लिखाई वाले मामले में संतोष आगे निकल जाते हैं। वहीं ईमानदारी वाले मामले में संतोष पर कोई दाग नहीं है। जबकि तेजस्वी पर आरोप हैं। इसलिए मांझी चाहते हैं कि तेजस्वी की दावेदारी अगर खटाई में पड़ जाए, तो उनकी तरह संतोष कुमार सुमन के नाम की लॉटरी भी निकल सकती है।
मिशन मांझी में भाजपा का रोल
वैसे तो अभी तक मांझी प्रकरण में भाजपा सामने नहीं आई है, लेकिन भाजपा कब सामने आ जाए कहना मुश्किल है। इसे समझने के लिए 2014-15 का वो वक्त याद करना होगा, जब जीतन राम मांझी सीएम बने थे। नीतीश कुमार ने लोकसभा चुनाव में हार की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा देकर जीतन राम मांझी को सीएम तो बनवा दिया। लेकिन 8 महीने में ही उन्हें सीएम की कुर्सी से हटवा दिया। तब भाजपा ने पूरी कोशिश की थी कि मांझी को सपोर्ट देकर सीएम बनाए रखे लेकिन नीतीश कुमार तब विधानसभा में बाजी मार ले गए। हालांकि उस रस्साकशी में भाजपा को सम्राट चौधरी, ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू, नीतीश मिश्रा जैसे नेता मिल गए। इस बार भी अगर बेटे को सीएम बनाने के लिए मांझी मुहिम चलाते हैं तो संभव है कि नीतीश और तेजस्वी के खिलाफ भाजपा उनका समर्थन करे। हालांकि अभी तय यह केवल संभावना ही है। जमीनी तौर पर ये उतरा नहीं है।