बिहार की सत्ता की ड्राइविंग सीट पर बैठे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बीच रास्ते में ही अपनी सहयोगी भाजपा को उतार दिया। भाजपा की जगह उन्होंने राजद को बैठा लिया। इस बात को एक साल बीत गए हैं। उसी वक्त से भाजपा ड्राइविंग सीट पर कब्ज़ा करने की तैयारियों में जुट गई है। लेकिन उससे पहले लोकसभा चुनाव वाली परीक्षा से भी भाजपा को गुजरना है। इन तमाम बातों को ध्यान में रखते हुए भाजपा एक के बाद एक बड़े दांव चल रही है। इन दांवो में जातीय समीकरण का भी खूब ख्याल भाजपा ने रखा है। बिहार में भाजपा त्रिदेव के भरोसे है। ये त्रिदेवों ने तीन मोर्चों पर बिहार भाजपा का कमान संभाल रखा है। पहला बिहार भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी, दूसरा बिहार विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा और तीसरा बिहार विधान परिषद के नवनियुक्त नेता प्रतिपक्ष हरि सहनी हैं।
MLC हरी सहनी लेंगे सम्राट चौधरी की जगह, बने बिहार विधान परिषद के नए नेता प्रतिपक्ष
BJP सवर्ण वोटरों को छोड़ना नहीं चाहती
सवर्ण भाजपा के कोर वोटर माने जाते हैं। खास कर बिहार में लालू यादव के समय की मंडल-कमंडल वाली राजनीति के समय ही बहुत बड़ा सवर्ण वोट भाजपा की तरफ शिफ्ट हुए था। इसलिए भाजपा किसी भी कीमत पर अपने कोर वोटरों को छिटकने नहीं देना चाहती है। पिछले कुछ समय से इस बात की चर्चा भी खूब हो रही थी की सवर्ण भाजपा से थोड़े नाखुश है। लेकिन पिछले कुछ समय से भाजपा ने बिहार में एक सवर्ण चहरे को तवज्जो दिया है ताकि सवर्ण वोटरों पर पकड़ बनी रहे।
इसका एक उदाहरण बिहार विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा हैं। जब भाजपा जदयू के साथ सत्ता में थी तब विजय कुमार सिन्हा को विधानसभा के स्पीकर का पद मिला था। विपक्ष में आते ही भाजपा ने उन्हें नेता प्रतिपक्ष बना दिया। आगमी चुनावों में भाजपा के दांव का सवर्ण वोटरों पर क्या प्रभाव पड़ेगा ये तो परिणाम ही बताएँगे।
लव-कुश समीकरण में सेंधमारी की कोशिश
बिहार की राजनीति में जातीय समीकरणों का हमेशा से बोलबाला रहा है। एक समय पर एमवाई(मुस्लिम-यादव) समीकरण बिहार की सत्ता की चाभी बन गई थी। उसके बाद लव-कुश(कुर्मी-कुशवाहा) समीकरण ने उसकी जगह ली। अब इसी समीकरण में भाजपा ने सेंधमारी की योजना बना ली है। चूंकि एमवाई समीकरण में कोई सेंधमारी कर पाना अभी भी भाजपा के लिए कठिन है। यही कारण है कि बिहार भाजपा की कमान कुशवाहा समाज से आने वाले सम्राट चौधरी को सौंपी गई है।
अब सम्राट चौधरी कुशवाहा समाज के वोटरों को कितना भाजपा की तरफ समेटेंगे और भाजपा को कितना फायदा दिलाएंगे इस पर उनका राजनीतिक भविष्य भी निर्भर करता है। क्योंकि कई बार उन्हें भाजपा के कई बड़े नेता सीएम फेस के रूप में भी प्रोजेक्ट करते हैं। हालांकि इस तरह का एक असफल प्रयास भाजपा ने यादव समाज से आने वाले नेता नित्यानंद राय को प्रदेश अध्यक्ष बना कर भी किया था।
BJP ने चल दिया है सहनी दांव
दो दांव भाजपा पहले ही चल चुकी है,आज तीसरा दांव हरि सहनी को बिहार विधान परिषद का नेता प्रतिपक्ष बनाकर चल दिया है। इस दांव को समझने के लिए सहनी(मल्लाह) समाज के सबसे बड़े नेता के रूप में खुद को स्थापित करने की कोशिश करते मुकेश सहनी का जिक्र करना जरुरी है। जिक्र बोचहां में हुई उपचुनाव का भी करना जरूरी है जहां मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी ने भाजपा का खेल खराब किया था। जिसका फायदा राजद को हुआ और वो जीत भी गई।
इस से भाजपा को ये तो समझ आ गया कि सहनी वोटरों पर ध्यान ना देना उसका खेला खराब कर देगी। चूंकि मुकेश सहनी की पार्टी इस समय ना तो भाजपा के साथ है ना ही किसी विपक्षी गठबंधन का हिस्सा है। वो संकल्प यात्रा कर बिहार सहित यूपी और झारखंड के सहनी वोटरों को अपनी और करने का प्रयास कर रहे हैं। इनसब की काट के लिए ही हरि सहनी को बिहार विधान परिषद का नेता प्रतिपक्ष बनाया गया है। इस बात का प्रमाण हरि सहनी के बयान से भी लगता है। उन्होंने कहा कि ‘एक साधारण मछली मारने वाले बेटे को बड़ी जिम्मेदारी दी है। मैं हर संभव जिम्मेदारी को निभाने की कोशिश करूंगा।’ हालांकि इस जिम्मेदारी के जरिए वो भाजपा को कितना फायदा पहुंचाएंगे ये तो वक्त ही बताएगा।