रांची: ऐसा कहा गया था कि अगला विश्वयुद्ध सेना और हथियारों से नहीं बल्कि तकनीकियों से लड़ा जाएगा। इसका जीता जागता प्रमाण 18 सितंबर को देखने को मिल गया। सिलसिलेवार ढंग से कम्युनिकेशन डिवाईस पेजर का इस प्रकार अचानक टाईम बॉम्ब की तरह फटना दुनिया को ऐसे सवाल पर लाकर छोड़ रहा कि क्या हम सब भी बारूद के ढेर पर बैठे हैं। जी हां, बीते दिनो लेबनान में जो घटित हुआ वो कोई साधारण घटना नहीं है। इस प्रकार जेब में रखे पेजर का विस्पोट होना और लोगों की जान चली जाना हमें उस सवाल का जवाब ढूंढने को कह रहा कि हम कितने सुरक्षित है। मोबाईल हमारी बातें सुनता है ये हम सबको पता है।
आप यदि मार्केट से कुछ सामान लाने की चर्चा करते हैं तो थोड़ी ही देर में आपके मोबाईल सोशल साईट्स पर उस सामान का विज्ञापन दिखने लगेगा जबकी आपने इस बारे में न तो गूगल सर्च किया न ही किसी सोशल साईट पर जिक्र किया फिर भी आपकी बातें सुनकर मोबाईल आपकी जरूरत की चीजों के विज्ञापन दिखाने लगता है। देखने में तो ये छोटी बात लग रही पर ये बात छोटी है नहीं। इस प्रकार आपके घर में आपके हाथ में आपकी निजता को हर क्षण भंग कर रहा ये मोबाईल आपको नुकसान भी पहुंचा सकता है। यदि हम गौर करे तो मोबाईल के इसी अवगुण के कारण हिजबुल्लाह के लड़ाकों ने इसे नकार कर पेजर को चुना था। इसके पीछे का तर्क था कि मोबाईल से लोकेशन ट्रेस किया जा सकता है इसके मुकाबले पेजर को सेफ समझा जा रहा था। परंतु पेजर में हुए धमाकों ने इन सारे दावों को भस्म कर दिया।
बताया जा रहा कि पेजर में C4 जैसे एक्सप्लोसिव का इस्तेमाल करके ये धमाका किया गया। सवाल है कि कैसे? इसका जवाब है कि संभवत: पेजर के निर्माण के समय ही इसमें इसकी बैटरी में C4 एक्सप्लोसिव को डाल दिया गया होगा और जब ये पेजर लेबनान के लड़ाको के पास इस्तेमाल में होंगे तब इसे हैक कर वायरलेस सिग्नल का इस्तेमाल किया गया। बता दें ये सिग्नल ब्लूटूथ या मोबाइल नेटवर्क किसी भी तरह से भेजे जा सकते हैं, जिससे बैटरी का तापमान बढ़ेगा और एक्सप्लोसिव रिएक्ट करेगा। इस तकनीक से लेबनान और सीमावर्ती इलाकों में सिलसिलेवार पेजर में धमाकों के कारण 400 से ज्यादा लोग घायल हुए।
तमाम पड़ताल में अबतक जो बात सामने आई वो ये है कि C4 जैसे एक्सप्लोसिव का इस्तेमाल कर इसे अंजाम दिया गया है। ये एक्सप्लोसिव छोटे आकार का होता है। इसे बैटरी में आसानी से फिट किया जा सकता है और फिर रिमोट कंट्रोल की मदद से धमाका किया जाता है। ये काफी हैरान करने वाली घटना है। पेजर की मदद से हुए धमाकों में सवाल उठ खड़ा हुआ है कि आखिर ऐसा कैसे संभव है। बता दें जैसे टाईम बम को समय सुनिश्चित कर विस्पोट कराया जा सकता है वैसे ही पेजर और मोबाईल की बैटरी में विस्पोटको को डाल कर मेसेज भेज कर एक्टिव किया जा सकता है। जी हां ये मेसेज डिवाईस या सिस्टम को हैक कर भेजे जाते है और कमांड मिलते ही विस्पोटक एक्टिव हो जाता है और ब्लास्ट कर जाता है।
ये संदेश कोई साधारण संदेश नहीं होते ये अल्फ़ान्यूमेरिक, जिसे अल्फ़ामेरिक भी कहा जाता है इस प्रकार के होते हैं। साधारण तौर पर इस मेसेज को समझना कठिन होता है। इसे लेकर तकनीकि एक्सपर्टस् का दावा है कि इसे एक सिग्नल के द्वारा ट्रिगर किया गया होगा, जो अल्फान्यूमेरिक टेक्स्ट मैसेज हो सकता है। अल्फ़ान्यूमेरिक उसे कहते हैं जो किसी दिए गए भाषा सेट के सभी अक्षरों और अंकों को शामिल करता है। जैसे अंग्रेजी भाषा के उपयोगकर्ताओं के लिए डिज़ाइन किए गए लेआउट में, अल्फ़ान्यूमेरिक वर्ण वे होते हैं जो 26 वर्णमाला वर्णों, ए से ज़ेड और 10 अंकों, 0 से 9 के संयुक्त सेट से बने होते हैं। ये प्रोगाम पहले से ही डिवाई में इनबिल्ट होता है कि इन संदेशों के प्राप्त होते टाईम बम की तरह डिवाईस की बैट्री एक्टिव होकर फट जाएगी। बस कहानी यहीं खत्म नहीं हुई है। ये कमांड हर उस डिवाई सिस्टम को दिया जा सकता है जिसमें बैट्री इस्तेमाल हो रही हो। जैसे मोबाईल लैपटाप कार इत्यादि।
आज भारत में चीन मोबाईल का नम्बर वन विक्रेता है। बैट्री टार्च और इलेक्ट्रानिक डिवाईस बल्ब जैसे हजारों छोटे छोटे उपकरण चीन के बनाए हुए हमारे घरों का हिस्सा बन चुके हैं। क्या कभी युद्ध की स्थिति में चीन ये कदम नहीं उठा सकता। इससे इंकार नहीं किया जा सकता है। भारत में इस घटना के बाद से चिंता बढ़ी हुई है। घर घर में संभावित विस्पोटक मौजूद है। बहरहाल, लेबनान में सिलसिलेवार धमाको में अबतक 400 लोग घायल हो चुके हैं दर्जनों की मौत हो चुकी है। इसका आरोप मोसाद इजरायल पर लग रहा वहीं बताया जा रहा कि अमेरिका के टोही विमान को 17 सितंबर को खाड़ी के आस पास देखा गया था । इस टोही विमान में खासियत ये है कि ये असुरक्षित डिवाईस को आसानी से हैक कर सकता है। वहीं इस घटना के बाद से ही विस्पोटों का सिलसिला शुरू हो गया। हालांकि अब तक इजरायल ने इस बात पर स्वीकृति या अस्वीकृत नहीं दी है।