बिहार में नीतीश कुमार के नाम सबसे अधिक दिनों तक राज्य के मुख्यमंत्री बने रहने का रिकॉर्ड कायम हो चुका है। इससे पहले 8 बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले नीतीश कुमार अकेले ही हैं। लेकिन नीतीश कुमार ऐसा कैसे कर सके और क्या यही करिश्मा कोई और कर सकेगा, यह तो भविष्य के गर्भ में छिपा है। वैसे नीतीश कुमार ने सीएम बनने के बाद ऐसा क्या किया, जो इतने दिनों तक सीएम बने रहे, इसे शायद चिराग पासवान ने भांप लिया है। चिराग के हालिया राजनीतिक कदमों की तरफ गौर करें तो वे भी नीतीश कुमार की तरह ही एक दांव खेलने का प्रयास कर रहे हैं। यह अलग बात है कि नीतीश ने दांव तब खेला जब वो सत्ता में थे। चिराग विपक्ष में रहते हुए ऐसी कोशिशें कर रहे हैं।
जातियों के वर्गीकरण से बना नीतीश का आधार
बिहार की सियासत को 1990 से देखें तो लालू यादव और राबड़ी देवी की सरकार के 15 साल का आधार उनका जातीय समीकरण माना जाता है। मुस्लिम-यादव यानि माई समीकरण के जरिए 15 सालों तक राजद सत्ता में बना रहा। लेकिन 2005 में जब नीतीश कुमार आए तो उन्होंने इस समीकरण के रहते हुए भी अपने लिए जगह कहां ढूंढ़ी यह सभी को पता। क्योंकि माई समीकरण तो आज भी लालू यादव और राजद के पक्ष का माना जाता है और नई जातीय गणना से यह स्पष्ट भी है कि इनकी बहुतायत है। इसके बावजूद नीतीश अगर बिहार में लगातार जीत और स्वीकार्यता का आधार बना सकें, तो इसका बड़ा कारण जातियों का नया वर्गीकरण माना गया।
खुद की जाति 2.87 प्रतिशत फिर भी बहुतों को स्वीकार्य नीतीश
दरअसल, नीतीश कुमार जिस कुर्मी जाति से आते हैं, उसकी जनसंख्या 2.87 फीसदी है। लेकिन नीतीश कुमार की समर्थक जातियों का आधार कहीं अधिक है। इसके पीछे कारण यह रहा कि नीतीश ने 2005-10 के शासनकाल में दो नए जाति वर्गों को बनाया। इसमें एक था महादलित और दूसरा था अतिपिछड़ा। इस अतिपिछड़े वर्ग को ही जदयू ने अपना मुख्य वोट बैंक बनाने में पूरी ताकत झोंक दी। अब बिहार में जातीय जनगणना की जो रिपोर्ट आई है, उसमें ये साफ पता चल रहा है कि नीतीश का वो पुराना फैसला कितना कारगर निकला है। क्योंकि कोटिवार जातियों के वर्ग की गणना देखें तो अतिपिछड़ा वर्ग की जनसंख्या सबसे अधिक है, जो नीतीश सरकार द्वारा किए वर्गीकरण से पहले पिछड़ा वर्ग का ही हिस्सा थी। अतिपिछड़ा वर्ग ने उन्हें अलग मान्यता दी और इसे नीतीश ने अपने समर्थक जातियों में शुमार कर पाने में सफलता पा ली।
चिराग भी नीतीश की इसी राह पर
अतिपिछड़ा वर्ग जो नीतीश कुमार ने बनाया, उसमें उन्होंने लोहार, कुम्हार, बढ़ई, कहार, सोनार समेत 114 जातियों को रखा। अब चिराग इनमें से 11 ऐसी जातियों को अनुसूचित जातियों में शामिल करने की मांग कर रहे हैं, जिनकी जनसंख्या 12.60 प्रतिशत से अधिक है। अगर चिराग की मांग पूरी होती है तो कानू, हलवाई, नोनिया, बेलदार, बढ़ई, कुम्हार, बिंद, नाई, तुरहा, तमोली, चंद्रवंशी जातियों की जनसंख्या अनुसूचित जाति में जुड़ जाएगी और तब अतिपिछड़ा वर्ग बहुसंख्यक नहीं रह जाएगा। अभी जारी रिपोर्ट के हिसाब से अनुसूचित जाति की जनसंख्या 19.65 प्रतिशत है। चिराग की मांग के अनुसार जातियां अनुसूचित जाति वर्ग में शामिल हुईं तो अतिपिछड़ा वर्ग की जनसंख्या 20 प्रतिशत रह जाएगी। जबकि अनुसूचित जाति की जनसंख्या 31 प्रतिशत हो जाएगी।
कोटिवार गणना
- अनारक्षित : 15.52 प्रतिशत
- पिछड़ा वर्ग : 27.12 प्रतिशत
- अत्यंत पिछड़ा वर्ग : 36.01 प्रतिशत
- एससी : 19.65 प्रतिशत
- एसटी : 1.68 प्रतिशत