लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन पिछले दो चुनावों के मुकाबले बेहतर रहा। कांग्रेस ने दो गुनी सीटें जीतीं। बिहार में तो संख्या तिगुनी रही। अब कांग्रेस आगे की राजनीति में फ्रंट फुट पर आना चाहती है। बिहार में कांग्रेस ने सालों तक सत्ता चलाई है लेकिन पिछले तीन दशकों में कांग्रेस या तो कमजोर पार्टी रही या फिर पिछलग्गू। लेकिन अब कांग्रेस लालू-तेजस्वी के बूते नहीं अपने बूते आगे बढ़ने की योजना पर काम कर रही है। इसमें सबसे पहले प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह की छुट्टी तय मानी जा रही है। दरअसल, अखिलेश प्रसाद सिंह के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस ने सीटों की संख्या जरुर बढ़ा ली लेकिन कांग्रेस में अंतर्विरोध बढ़ गया। यही कारण है कि चर्चा यह चल रही है कि कांग्रेस अखिलेश प्रसाद सिंह को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने की ओर कदम बढ़ा रही है।
“राजद से कांग्रेस को फायदा नहीं हुआ”
कांग्रेस और राजद लंबे समय से बिहार में साथ हैं। लालू यादव ने देश में कांग्रेस की सरकार बनवाने में 2004 में बड़ी भूमिका भी निभाई थी। लेकिन अब कांग्रेस को लालू यादव का साथ अखरने लगा है। इसका कारण पिछले दो लोकसभा चुनावों के नतीजों में स्पष्ट दिख रहा है। इन दो लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को खास सफलता नहीं मिली। लेकिन कांग्रेस जिन सीटों पर भी सफल हुई, वो या तो कांग्रेस की ही सीट थी या फिर वहां से भाजपा कमजोर हुई।
2019 में कांग्रेस ने सिर्फ किशनगंज जीता
लोकसभा चुनाव 2019 में कांग्रेस ने सिर्फ किशनगंज सीट पर जीत दर्ज की थी। जबकि राजद कोई सीट नहीं जीती। किशनगंज मुस्लिम बाहुल्य सीट है और कांग्रेस का इस समुदाय पर खास असर भी है। ऐसे में किशनगंज सीट कांग्रेस के खाते में आने के पीछे राजद को वजह मानने की कोई खास वजह नहीं है। क्योंकि राजद और कांग्रेस का गठबंधन इतना ही मजबूत होता तो कटिहार में तारिक अनवर, सासाराम में मीरा कुमार जैसे नेताओं को हार का स्वाद नहीं चखना पड़ता।
2024 में कांग्रेस ने परंपरागत सीटें जीती
लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा कमजोर हुई तो कांग्रेस ने बिहार की अपनी परंपरागत सभी सीटें जीत ली। किशनगंज पर कब्जा बरकरार रहा। सासाराम में मीरा कुमार की गैर मौजूदगी में भी कांग्रेस उम्मीदवार मनोज कुमार जीते। तो कटिहार में एक बार फिर तारिक अनवर ने बाजी मार ली। जबकि राजद अपने दिग्गजों की सीटें बचा पाने में एक बार फिर नाकामयाब रहा। लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य भी चुनाव हारीं।
जबकि कांग्रेस के लिए बड़ा झटका पूर्णिया से मिला। यहां कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाने के लिए पप्पू यादव को पार्टी में शामिल तो करा लिया। लेकिन लालू-तेजस्वी के दबाव के आगे कांग्रेस वहां उम्मीदवार नहीं उतार सकी। इसके लिए अखिलेश सिंह को दोषी माना गया क्योंकि वे यह सीट राजद से कांग्रेस में ला पाने में असफल रहे। पप्पू यादव कांग्रेस में हैं, लेकिन सांसद निर्दलीय बने हैं। दूसरी ओर अखिलेश प्रसाद सिंह पर अपने बेटे आकाश प्रसाद सिंह के लिए लालू यादव से समझौते के आरोप भी कई कांग्रेसी दबी जुबान में लगा रहे हैं।
ऐसे में यह माना जा रहा है कि कांग्रेस अपने नए तेवर में बिहार में सफल होने के लिए अखिलेश प्रसाद सिंह को विदा करने को तैयार है। यह तैयारी अमल में कब लाई जाएगी, यह देखने वाली बात होगी। लेकिन संभावना यही है जम्मू कश्मीर, हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड चुनाव के बाद बिहार कांग्रेस में बड़ा फेरबदल संभव है। क्योंकि उसके बाद दिल्ली और फिर बिहार में ही चुनाव की बारी है।