कांग्रेस पार्टी पिछले नौ सालों से केंद्रीय सत्ता से बाहर है। जबकि पिछले 20 वर्षों में कांग्रेस कई राज्यों में सरकार खो चुकी है। लेकिन 2022 के बाद से जैसे कांग्रेस में नई ऊर्जा का संचार हुआ है। यह स्थिति तब है जब सालों तक कांग्रेस के स्तंभ रहे कपिल सिब्बल, ज्योतिरादित्य सिंधिया, गुलाम नबी आजाद जैसे नेताओं ने पार्टी का साथ छोड़ दिया है। अब सवाल यह है कि आखिर कांग्रेस में ऐसा बदला क्या, जो कांग्रेस बदलने लगी। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने को, वहां के सत्ता बदलने का रिवाज भी मान लें तो कर्नाटक की जीत तो निश्चित तौर पर कांग्रेस नेतृत्व का कुशल मैनेजमेंट रही। दरअसल, कांग्रेस के भीतर आया यह बदलाव स्टारडम और स्ट्रगल के बीच का संघर्ष है, जिसमें स्ट्रगल भारी पड़ता दिख रहा है।
लालू बोले – सीट शेयरिंग, JDU बोली – अभी कहां?
राजीव गांधी के बाद कांग्रेस ने नया दौर देखा। कुछ सालों तक गांधी फैमिली का कोई सदस्य कांग्रेस में सक्रिय नहीं रहा। नेतृत्व तो दूर की बात है, सामान्य सक्रियता भी नहीं रही। लेकिन कांग्रेस के तत्कालीन नेताओं को सत्ता खो देने के बाद फिर से सत्ता की वापसी की राह, गांधी फैमिली के स्टारडम में ही दिखी। पहले सोनिया गांधी आईं। कांग्रेस को संभाला। सक्रिय राजनीति में एंट्री की। इसके बाद राहुल गांधी भी आए। सोनिया गांधी 1998 में कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं, 1999 में सांसद बनीं। तो राहुल गांधी 2004 में पहली बार सांसद बने और 2017 में कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुंचे। लेकिन गांधी फैमिली ने अपने स्टारडम के बूते कांग्रेस को सत्ता तक पहुंचा दिया। 10 साल तक कांग्रेस सत्ता में रही भी। इसके बाद ऐसा भी वक्त आया, जब कांग्रेस सत्ता से बेदखल हुई। गांधी फैमिली का स्टारडम भी ऐसा भरभराया कि बीते ढ़ाई दशक में ऐसा पहली बार हुआ है जब गांधी फैमिली राजनीति में तो है लेकिन कांग्रेस के शीर्ष पर नहीं है। साथ ही दशकों बाद ऐसा मौका भी आया है, जब कांग्रेस ने गांधी फैमिली के बिना आगे बढ़ना सीखा है।
कांग्रेस में सबकुछ गांधी परिवार ही है, ऐसी सोच पहली बार ठहरती दिख रही है। कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपने बोल्ड एटीट्यूड से एक नया ट्रेंड सेट किया है। तो दूसरी ओर कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे के बेटे प्रियांक खड़गे ने भी जोशीले तेवर ऐसे दिखाए हैं कि कांग्रेस में अभी खड़गे फैमिली की चर्चा, गांधी फैमिली से अधिक हो रही है। दरअसल, खड़गे फैमिली यानि मल्लिकार्जुन खड़गे और प्रियांक खड़गे का उभरना, ऐसा है जैसे कांग्रेस में स्ट्रगल को अपनाया जा रहा है। कांग्रेस पर आरोप लगते रहे हैं कि परिवारवाद का पोषण यहां की परंपरा है। लेकिन खड़गे फैमिली पर यह आरोप उतनी आसानी से नहीं लग सकते क्योंकि गांधी फैमिली की सोनिया गांधी और राहुल गांधी का राजनीतिक स्ट्रगल खड़गे फैमिली यानि मल्लिकार्जुन खड़गे और प्रियांक खड़गे के मुकाबले कम जान पड़ता है।
सोनिया गांधी ने जब कांग्रेस को संभालने की शुरुआत की तो उनके पास अनुभव की कमी थी लेकिन पार्टी के पास सत्ता के अनुभव की कोई कमी नहीं थी। कई नेताओं का साथ सोनिया गांधी को मिला और वे आगे बढ़ती गईं। महज दूसरे चुनाव में सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस के पास केंद्र सरकार की सत्ता वापस आ गई। इसके बाद 10 सालों तक सत्ता कांग्रेस के पास ही रही। सोनिया गांधी के पास शुरुआती स्ट्रगल रहा भी, तो राहुल गांधी के पास वैसी कोई स्थिति नहीं आई। राहुल गांधी पहली बार 2004 में उस अमेठी सीट से जीते, जहां 1999 में सोनिया गांधी जीतीं थी। साथ ही यह सीट गांधी परिवार की पारिवारिक विरासत की तरह देखी जाती थी। 2004 के बाद 10 साल राहुल गांधी संगठन में अलग अलग पदों पर रहे, लेकिन सरकार में कोई भूमिका नहीं निभाई। 2014 में जब मोदी सरकार की शुरुआत हुई तो भाजपा ने राहुल गांधी को पहला टारगेट बनाया और अपने समर्थकों की नजरों में राहुल गांधी को अक्षम साबित कर दिया।
गांधी फैमिली की तरह खड़गे फैमिली को सबसे ऊंची पोजीशन झटके में नहीं मिली। कर्नाटक की गुरमितकल विधानसभा सीट पर 1972 से 2008 तक नौ बार विधायक चुने जाने के बाद मल्लिकार्जुन खड़गे ने दिल्ली की राह पकड़ी। 2009 और 2014 में कलबुर्गी से लोकसभा चुनाव जीतने वाले मल्लिकार्जुन खड़गे को 2019 में हार तो मिली। लेकिन मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में लोकसभा में कांग्रेस के नेता के तौर पर मल्लिकार्जुन खड़गे की बनी पहचान ने उन्हें राज्यसभा तक पहुंचाया और वहां भी पार्टी का नेता बनवाया। यही नहीं स्टारडम वाली गांधी फैमिली के बाद कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में स्ट्रगल वाले मल्लिकार्जुन खड़गे को लगभग सभी ने स्वीकारा है। दूसरी ओर जूनियर खड़गे यानि प्रियांक खड़गे भी अपने पिता की तरह स्ट्रगल कर आगे बढ़ रहे हैं। तीन बार कर्नाटक की चितपुर सीट से विधायक चुने गए हैं और अभी कर्नाटक की सरकार में मंत्री भी बने हैं। लेकिन सक्रिय चुनावी राजनीति और सरकार में शामिल होने से पहले से ही सक्रिय रहे हैं।
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी 53 साल के हैं। बिना किसी संघर्ष के 2004 में उन्हें पहली बार सीधे लोकसभा की सीट मिली और जनता ने उन्हें जिता भी दिया। अब तक लड़े तीन चुनावों में वे एक बार हार भी चुके हैं। इस बीच राहुल गांधी कभी न विधायक रहे, न मंत्री रहे, न किसी राज्य कमेटी में रहे। संगठन में उनकी एंट्री ही युवा कांग्रेस के अध्यक्ष के तौर पर हुई। बाद में वे कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और फिर राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बने। जबकि दूसरी ओर 44 साल के प्रियांक खड़गे के पास राजनीति का अनुभव राहुल गांधी से कहीं अधिक है। प्रियांक 1999 में कॉलेज इलेक्शन में एनएसयूआई से महासचिव पद पर जीते। इसके बाद 2001 से 2005 तक स्टेट एनएसयूआई में महासचिव रहे, 2005 से 2007 तक कर्नाटक यूथ कांग्रेस के महासचिव रहे। इसके बाद 2011 में प्रियांक यूथ कांग्रेस के उपाध्यक्ष बने। उन्होंने पहला चुनाव 2013 में लड़ा और वो भी विधानसभा का। 1999 से लेकर 2019 तक के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस स्टारडम वाली लीडरशिप के भरोसे आगे बढ़ी है। अब 2024 में कांग्रेस के पास स्ट्रगल से आगे बढ़ी लीडरशिप का नेतृत्व है।