बिहार की राजनीति में इन दिनों ‘करीबियों’ पर दुर्दशा काल हावी हो रहा है। ये सभी लोग ऐसे नेताओं के करीबी रहे हैं, जिनके पास पावर है। लेकिन कुछ ऐसा हो रहा है, जिससे सभी करीबी किनारे लगते जा रहे हैं। चिराग पासवान हों या आरसीपी सिंह या फिर भोला यादव, सबकी कुंडली में किनारे लगने वाला योग सबसे सक्रिय हो गया है।
मोदी के हनुमान तक बने थे चिराग
चिराग पासवान अपने बारे में खुलेआम कहते थे कि वो PM नरेंद्र मोदी के हनुमान हैं। पीएम मोदी भी मौके-बेमौके चिराग को ‘भाव’ देते रहते थे। लेकिन राजनीतिक स्थितियों ने ऐसी करवट मारी कि चिराग पासवान न सिर्फ अपनी ही पार्टी में अकेले पड़ गए। बल्कि पीएम मोदी ने उनकी बजाय उनके चाचा के गुट का ज्यादा वैल्यू दी। एकतरह से चिराग अपनी ही लगाई आग में झुलस गए।
नीतीश के साथ साए की तरह थे RCP
बिहार में जनता दल यूनाइटेड सत्ता में पिछले 17 सालों से है। इतनी लंबी अवधि में कुर्सी पर कोई हो, नीतीश के करीबी के रूप में आरसीपी सिंह की छवि उभरती थी। लेकिन इस बार आरसीपी सिंह ऐसे दरकिनार हो गए कि केंद्र में मंत्री पद पर रहते हुए उनका राज्यसभा के लिए रीन्यूअल नीतीश कुमार ने लटका दिया। कभी नीतीश के साए वाली छवि रहे आरसीपी आज अपना राजनीतिक वजूद तलाश रहे हैं।
भोला यादव पर वक्त की मार
राजद में भोला यादव का जो स्थान है, वो किसी और नेता के पास नहीं है। लालू प्रसाद के रेलमंत्री रहते हुए भोला यादव निजी सहायक थे। लालू ने उन्हें बिहार विधानमंडल तक पहुंचाया। उनका लालू की जिंदगी में दखल इतना रहा है कि उन्होंने तेजप्रताप यादव को एम्स में गीता पाठ से रोक दिया। तेज प्रताप नाराज भी हुए। लेकिन भोला को कोई फर्क नहीं पड़ा। हालांकि CBI की गिरफ्त में आने के बाद भोला लालू के करीबियों की लिस्ट से किनारे लगा दिए गए।