इस 30 जनवरी को राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की 75वीं पुण्यतिथि है। राजधानी दिल्ली के राजघाट में बापू का समाधि स्थल स्थित है, जहाँ आज देश के गणमान्यों द्वारा गांधीजी को श्रद्धांजलियाँ अर्पित की गयी। 30 जनवरी 1948 को आज ही के दिन महात्मा गाँधी की नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर हत्या कर दी थी।
क्या हुआ था उस दिन
महात्मा गांधी प्रार्थना की तैयारी में थे जो शाम के 5 बजे हुआ करती थी। इसी बीच भारत के प्रथम गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल बापू के दिल्ली स्थित बिरला हाउस पहुँच गए। किसी खास विषय पर हो रही चर्चा ने इतना जोड़ पकड़ा कि कब 5 बजे पता नहीं चला। गाँधीजी की भागिनियों ने उनकी लटक घड़ी में समय की ओर इशारा किया। गांधीजी वक़्त के पाबन्द थे, सो चर्चा को बीच में ही छोड़ प्रार्थना सभा के लिए निकल पड़े। महात्मा गांधी दिल्ली के बिड़ला मंडप की ओर जा ही रहे थे कि उसी वक्त 35 साल का एक युवक गांधीजी के चरण छूने लगा। साथ जा रही उनकी एक भागिनी ने इस बात के लिए टोका कि पहले ही बापू को प्रार्थना के लिए देर हो रही है,अतः उनका मार्ग छोड़ उन्हें मंडप की ओर जाने दें। इतने में उस युवक ने उस महिला को धक्का मार दिया। कोई कुछ समझ पता इतने में उस युवक ने अपनी पिस्तौल निकाली और गांधीजी पर नजदीक से एक के बाद एक तीन गोलियां दनादन बरसा दीं, जो बापू के छाती, पेट और कमर में लगीं। 15 मिनट के अंदर महात्मा गांधी की मौत हो गई। आपको बता दें कि ये युवक कोई और नहीं, नाथूराम गोडसे था ,जिसने महात्मा गाँधी की छाती और पेट में गोलियां उतार दी। उस समय महात्मा गांधी 78 वर्ष के थे।
क्या हुआ था हत्या के बाद
घटना के तत्काल बाद मौके पर मौजूद सुरक्षा कर्मियों ने गोडसे को पकड़ लिया। इसके बाद गोडसे को तुगलक रोड पुलिस स्टेशन में गोडसे के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई। गांधी की हत्या को लेकर केस मई 1948 में दिल्ली के लाल किले में स्थिति एक स्पेशल कोर्ट से शुरू हुआ,जिसके जज थे आत्मा चरण। बॉम्बे के तत्कालीन एडवोकेट जनरल सीके दफ्तरी ने अभियोजन का नेतृत्व किया था। गोडसे के साथ-साथ नारायण आप्टे और विनायक सावरकर सहित अन्य आरोपियों को अपनी पसंद के वकील की मदद लेने की अनुमति दी गई थी। सबसे महत्वपूर्ण गवाह दिगंबर बैज थे,जिनपर साजिशकर्ताओं में से एक होने और हत्या की प्लानिंग में सक्रिय भागीदार होने का आरोप लगाया गया था। अपनी गिरफ्तारी के बाद बैज ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया और अपने सहयोगियों को दोषी ठहराने के लिए सहमत हो गए थे। आखिरकार 10 फरवरी, 1949 को फैसला सुनाया गया, जिसमे गोडसे, आप्टे और पांच अन्य को महात्मा गांधी की हत्या का दोषी ठहराते हुए गोडसे और आप्टे को मौत की सजा सुनाई गई, जबकि सावरकर को छोड़ अन्य को उम्रकैद हुआ। सावरकर को निर्दोष मानते हुए बरी कर दिया गया था। इसके बाद लोअर कोर्ट के फैसले के खिलाफ गोडसे सहित अन्य लोग पंजाब हाई कोर्ट की शरण में गए। सुनवाई के दौरान गोडसे ने एक वकील से अपना प्रतिनिधित्व कराने से इनकार कर दिया और कहा कि वो खुद अपील पर बहस करना चाहते हैं। जिसके बाद कोर्ट ने उनका यह अनुरोध स्वीकार कर लिया। कोर्ट में बोलते वक्त गोडसे ने गांधी जी की हत्या पर किसी तरह का पश्चाताप नहीं किया। साथ ही खुद को एक निडर देशभक्त और हिंदू विचारधारा नायक के रूप में प्रस्तुत किया। बेंच ने 21 जून, 1949 को अपना फैसला सुनाया। इसने दत्तात्रेय परचुरे और शंकर किस्तैया के मामलों को छोड़कर लोअर कोर्ट के निष्कर्षों और सजाओं की पुष्टि की, जिन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया गया था। भारत के गवर्नर-जनरल द्वारा भी उनकी दया याचिकाएं खारिज करने के बाद गोडसे और आप्टे को फांसी देने का रास्ता साफ हो गया। गोडसे की दया याचिका खुद गोडसे ने नहीं, बल्कि उनके माता-पिता ने दायर की थी। दोनों दोषियों को को 15 नवंबर 1949 को अंबाला जेल में फांसी दे दी गई।
क्यों मारा था गोडसे ने एम के गाँधी को
गोडसे को लगा कि यदि गांधी और भारत सरकार ने पश्चिम और पूर्वी पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों (हिंदुओं और सिखों) की हत्या को रोकने के लिए कार्रवाई की होती तो विभाजन के दौरान और उसके कारण होने वाले नरसंहार और पीड़ा से बचा जा सकता था।। गोडसे ने कहा कि गांधी ने अत्याचारों का विरोध नहीं किया। गोडसे ने दावा किया कि गांधी के अनशन पर बैठने के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान को अंतिम भुगतान जारी करने के लिए सरकार पर दबाव बनाने के लिए अपना नीतिगत निर्णय पलट दिया, जिसे पहले कश्मीर में युद्ध के कारण रोक दिया गया था। गोडसे ने कहा कि गांधी को राजनीतिक मंच से हटाना होगा, ताकि भारत एक राष्ट्र के रूप में अपने हितों की देखभाल करना शुरू कर सके। गोडसे के अनुसार, धार्मिक सहिष्णुता और अहिंसा पर महात्मा गांधी के रुख के कारण पहले ही भारत ने लाखों घरों को उजाड़ने के साथ-साथ मुसलमानों को पाकिस्तान सौंप दिया था। गोडसे का मानना था कि यदि गांधीजी को नहीं रोका गया तो वे हिंदुओं का विनाश और अधिक नरसंहार करेंगे।
कौन थे नाथूराम गोडसे
नाथूराम विनायक गोडसे महाराष्ट्र के पुणे के चितपावन ब्राह्मण थे। वह एक हिंदू राष्ट्रवादी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सदस्य थे। गोडसे हिंदू महासभा का सदस्य भी थे।गोडसे का जन्म एक महाराष्ट्रीयन चितपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता विनायक वामनराव गोडसे एक डाक कर्मचारी थे, जबकि उनकी मां लक्ष्मी गोडसे थीं। नाथूराम गोडसे ने कभी भी बापू की हत्या से इनकार नहीं किया, बल्कि अपने उद्देश्यों को स्पष्ट करते हुए लंबे-लंबे बयान दिए। उन्होंने कहा कि वह महात्मा गांधी से नफरत नहीं करते थे, बल्कि उन्हें मारकर अपना ‘नैतिक कर्तव्य’ निभाया।