न्यायालयों में लंबित मामलों को लेकर हाहाकार मचना आम बात है। देश ही नहीं अपितु विदेश में भी यह समस्या आम है। लेकिन, बिहार के न्यायालयों में कुछ अलग ही चल रहा है। न्याय की आस लगाए फरियादी अपनी पूरी उम्र गुज़ार देने को विवश हैं। कई मामले तो पीढ़ियों से चल रहे हैं। ऐसे मामलों में किसी को कोई रूचि नहीं रह गई। न न्यायलय की और न ही फरियादी की। समाज ने फरियादी के मसले का अपने तरीके से फैसला कर रखा है, जिसे वो खून का घूंट पीकर जीने को विवश हैं।
जस्टिस चंद्रचूड़ की टिप्पणी
पिछले साल मार्च में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस धनंजय चंद्रचूड ने अपनी एक टिप्पणी से सबको हतप्रभ कर दिया। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि बिहार के एक न्यायलय में विगत 50 साल से दीवानी मामला लंबित है। व्यवहार न्यायलय, दरभंगा में दो पक्ष 1952 से अपनी सम्पत्ति के बंटवारे के इंतज़ार में हैं। न्यायलय से उन्हें मिला है तो बस एक नम्बर, जिसे बंटवारा वाद संख्या 157/1952 के रूप में पढ़ा जा सकता है और शेष तारीखें हैं। आज की तारीख में इन तारीखों का कोई महत्व नहीं है। मोतिहारी के सेशन्स अदालत में कोई फरियादी फ़रवरी 1971 से अपने फौजदारी मामले में न्याय का इंतज़ार कर रहा है, जो किसी सुनील कुमार के हाजिरी के लिए रुका हुआ है।
‘हाईकोर्ट में भी बेहतर नहीं हालात’
अदालतों में लंबित मामलों की दास्तां यहीं नहीं रूकती। पटना उच्च न्यायलय का हाल भी कुछ अलग नहीं है। न्यायलय स्वयं ही यह जानकारी देता है कि उसने विगत दो दशक से पूर्ण क्षमता से काम नहीं किया है। वर्ष 2000 से यहां कभी कार्यरत जजों की संख्या उतनी नहीं रही, जितनी इस न्यायालय के लिए झारखंड बंटवारे से पहले तय किया गया था। बात यदि लंबित मामलों की करें, तो पटना उच्च न्यायलय में 04 मामले आधी सदी का सफर तय कर चुके हैं। इस न्यायलय में 573 मामले 40 से 50 साल पुराने हैं। जबकि 1835 मामले 30 से 40 साल पुराने और 4675 मामले 20 से 30 साल पुराने हैं। इस न्यायालय में प्रथम अपील का सबसे पुराना मामला प्रथम अपील संख्या 652/1968 है।
शोध में हुआ खुलासा
यह बात दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय के डिपार्टमेंट ऑफ लॉ एंड गवर्नेंस में किए गए शोध अध्ययन के दौरान सामने आई है।
‘दो तिहाई पद खाली’
गौरतलब है की जस्टिस धनंजय चंद्रचूड के व्याख्यान के कुछ ही समय बाद पटना उच्च न्यायालय ने दो दशकों की अपनी न्यूनतम संख्या भी देखी जब एक समय पटना उच्च न्यायालय में 53 जजों की जगह महज़ 18 जज कार्यरत थे। नवम्बर, 1965 में इस न्यायालय में जजों की क्षमता 17 थी जिसमें मुख्य न्यायाधीश समेत 14 जज स्थायी और 3 अतिरिक्त जज थे। 53 जजों में मुख्य न्यायाधीश समेत 29 स्थायी एवं 14 अस्थायी जजों के पद हैं। फिलहाल, इस न्यायालय में कार्यरत जजों की संख्या 34 है।
बिहार के कोर्ट में 34.20 लाख मामले लंबित
जहां तक आंकड़ों का सवाल है, खबर लिखे जाते वक्त नेशनल ज्युडिशियल डाटा ग्रिड के डाटा के अनुसार बिहार में कुल 34,20,231 मामले लंबित थे, जिनमे से 29,22,323 मामले फौजदारी के और 4,97,908 मामले दीवानी मसलों से जुड़े हुए हैं।