जनता दल यूनाइटेड आहत है। भाजपा पर नाराज है। मणिपुर में विधायकों को ‘हाईजैक’ करने का आरोप लगा रही है। राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह विलाप करते हुए बदला लेने की बात करते हैं। नीतीश कुमार भाजपा को 50 पर समेट देने का दावा भर रहे हैं। बात करें विवाद की तो जदयू इस बार इसलिए नाराज है कि एक के बाद एक दो राज्यों में जदयू के विधायकों को भाजपा ने अपने पाले में कर लिया। लेकिन हकीकत ये है कि विधायकों की इस छीना-झपटी में सब एक ही तराजू पर हैं। थोड़ा पीछे देख लें तो आज नाराज बैठी जदयू भी इस कला में मास्टर रही है।
बिहार से दो पार्टियों को जदयू ने ‘खत्म’ किया
2020 के चुनाव से बड़ा सेटबैक जदयू और सीएम नीतीश को कभी नहीं मिला होगा। वे सत्ता में उससे पहले भी थे और उसके बाद भी आए। लेकिन विधायकों की संख्या के मामले में तीसरे नंबर पर पिछड़ गए। गठबंधन के कारण नीतीश कुमार सीएम तो बने लेकिन ‘कमजोर’ माने गए क्योंकि सिर्फ 243 सीटों वाली बिहार विधानसभा में उनके पास सिर्फ 43 सीटें थी। इस कमजोर स्थिति में भी जदयू ने दो पार्टियों का अस्तित्व विधानसभा में समाप्त कर दिया। दोनों पार्टियों के विधायकों का जदयू में विलय करा दिया।
एक को मंत्री तक बना दिया
विधानसभा चुनाव के बाद अभी मौजूद दलों से बिहार से तीन राजनीतिक दलों की उपस्थिति विधानसभा में थी। इनमें वीआईपी के अलावा लोजपा और बसपा थी। इनमें से लोजपा और बसपा दोनों के विधायकों को जदयू में विलय करा दिया गया। दोनों पार्टियों के एक एक विधायक थे। इसमें मटिहानी सीट से लोजपा के टिकट पर जीते राजकुमार सिंह को जदयू में शामिल करा लिया। इससे पहले चैनपुर सीट से जीते बसपा के इकलौते विधायक जमा खान को न सिर्फ जदयू में शामिल करा लिया, बल्कि मंत्री भी बना दिया। आज भी जमा खान मंत्री हैं।
भाजपा और राजद ने भी यही खेल किया
ऐसा नहीं है कि सिर्फ जदयू ही इस खेल में मास्टर है। जिस भाजपा पर जदयू को दो राज्यों में समाप्त करने का आरोप लग रहा है, उसने बिहार में भी यह खेल किया है। अपने ही गठबंधन से चुनाव लड़े वीआईपी के तीन विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल करा लिया। राजद भी कहीं से पीछे नहीं है। लालू-राबड़ी काल में तो बसपा-सपा ये धोखा खा ही चुके थे। तेजस्वी काल में यह घटना हुई AIMIM के साथ। 2020 के चुनाव में AIMIM के पांच विधायक जीते। अब चार राजद में शामिल हो चुके हैं।