विपक्षी दलों के गठबंधन I.N.D.I.A की दो बैठके सफल रही है। तीसरी बैठक मुंबई में 31 अगस्त को मुंबई में प्रस्तावित है। दूसरी बैठक के बाद और तीसरी बैठक से पहले विपक्षी दलों ने अपनी एकता को दिखाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। संसद के अंदर विपक्षी दल दिल्ली सेवा बिल को फेल और अविश्वास प्रस्ताव को पास नहीं करा पाए पर अपनी एकजुटता का नमूना जरुर पेश किया। लेकिन तीसरी बैठक से पहले I.N.D.I.A गठबंधन पटना से दिल्ली और मुंबई से कोलकाता तक डोल रहा है। इसमें शॉटगन के नाम से मशहूर टीएमसी सांसद शत्रुघ्न सिन्हा के एक बयान ने फायर का काम किया है।
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पश्चिम बंगाल से महिला PM की मांग
भाजपा हमेशा से ही I.N.D.I.A गठबंधन में पीएम पद के उम्मीदवार के नाम को लेकर हमलावर रहती है। भले ही अभी पीएम फेस को लेकर I.N.D.I.A कोई फैसले तक नहीं पहुंचा हैं । लेकिन I.N.D.I.A में शामिल दलों के अपने-अपने दावे हैं। ऐसा ही कुछ दावा टीएमसी सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने भी किया है। उनका कहना है कि एक महिला देश की राष्ट्रपति हैं तो एक महिला देश की प्रधानमंत्री क्यों नहीं हो सकती? ये सवाल देश की जनता के मन में हैं। ये सबसे अच्छा समय है जब एक महिला ही राष्ट्रपति रहे और एक महिला ही प्रधानमंत्री हो। दरअसल एक महिला प्रधानमंत्री से उनका इशारा ममता बनर्जी की तरफ ही है। तीसरी बैठक से पहले इस तरह के बयान से I.N.D.I.A गठबंधन के लिए कितना सही है इसपर एक लंबी बहस हो सकती है।
राहुल को राहत से कांग्रेस का कॉन्फिडेंस हाई
कांग्रेस नेता राहुल गांधी को कोर्ट से मिली राहत से कांग्रेस का कॉन्फिडेंस भी हाई है। पिछली बार की I.N.D.I.A के बैठक तक राहुल गांधी के चुनाव लड़ने पर भी खतरा मंडरा रहा था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। खुल कर तो कांग्रेसी कुछ नहीं कह रहे लेकिन उनके हाव-भाव यही बता रहे हैं कि वो राहुल गांधी को अगला प्रधानमंत्री देखने के लिए उतावले हैं। अब ये बात I.N.D.I.A के अन्य दलों को असहज कर सकती है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कांग्रेस का ये हाई कांफिडेंस अन्य विपक्षी दलों के I.N.D.I.A के प्रति कांफिडेंस को लूज कर सकता है।
बिहार में नीतीश की क्या मंशा?
विपक्षी दलों को एकजुट करने में सबसे अहम भूमिका निभाने वाले नीतीश कुमार की मंशा पर भी खूब चर्चाएं हो रही है। जिस तरह I.N.D.I.A की दूसरी बैठक के बाद प्रेस कांफ्रेंस से पहले नीतीश कुमार वहां से निकल गए उसको लेकर भी खूब तुक्के लगाए गए। ऐसा कहा जा रहा कि पीएम उम्मीदवारी तो दूर गठबंधन के संयोजक के लिए भी उनके नाम को आगे नहीं किया जा रहा है। उसके बाद लालू यादव का दो-दो बार दिल्ली जाकर राहुल गांधी से मुलाकात करना। ये सारी आम राजनीतिक घटनाएँ जरुर लग रही हैं लेकिन ऐसा है नहीं। तीसरी बैठक से पहले ये घटनाएँ I.N.D.I.A की आगे कि दिशा और दशा को बहुत प्रभावित कर सकती है।
महाराष्ट्र की पॉलिटिक्स में सुनामी
उस महाराष्ट्र से भी I.N.D.I.A गठबंधन के लिए शुभ घटनाएँ नहीं घट रही जहां तीसरी बैठक प्रस्तावित है। जिस तरह महाराष्ट्र में समुन्द्र की लहरें काफी उफान पर होती है तो कभी शांत रहती है। उसी तरह कि कुछ महाराष्ट्र की पॉलिटिक्स भी है। जो अभी उफान पर है। राजनीति का चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार की पॉलिटिक्स ने इस उफान को और बढ़ा दिया है। एनसीपी में टूट के बाद ऐसा लग रहा था कि उनके तेवर ढीले पड़ गए हैं लेकिन ऐसा है नहीं। I.N.D.I.A की दूसरी बैठक से पहले उनकी पार्टी टूटी। लेकिन इसके बाद भी वो अपने गुट वाले एनसीपी के नेता के रूप में दूसरी बैठक में शामिल हुए । लेकिन उसके बाद जिस प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ I.N.D.I.A गठन किया गया है उनके साथ एक कार्यक्रम में मंच साझा करते दिखे।
भतीजे अजित पवार से भी उनकी पिछले कुछ दिनों में दो बार मुलाकात हो चुकी है । वही अजित पवार जिसने उनकी पार्टी तोड़ी और महाराष्ट्र की सरकार में शामिल भाजपा और शिवसेना(शिंदे गुट) के साथ हाथ मिलाकर उपमुख्यमंत्री बन गए । तीसरी बैठक से पहले शरद पवार के इस रुख ने I.N.D.I.A गठबंधन को डोला रखा है।
केजरीवाल की ख़ामोशी
I.N.D.I.A में शामिल उस दल का भी जिक्र करना जरुरी है जिसको लेकर गृह मंत्री अमित शाह ने भी विपक्ष की चुटकी ली थी। वो है आम आदमी पार्टी। दिल्ली सेवा बिल के विरोध में समर्थन जुटाने के लिए अरविंद केजरीवाल ने लगभग हर विपक्षी पार्टी का दरवाजा खटकाया। विपक्षी पार्टियों ने साथ भी दिया लेकिन उससे कोई फायदा हुआ नहीं। I.N.D.I.A की पहली बैठक में शामिल होने के लिए केजरीवाल ने शर्त रख दी थी कि दिल्ली सेवा बिल के विरोध में समर्थन पर चर्चा होनी चाहिए ।
पहली बैठक के बाद प्रेस कांफ्रेंस में शामिल हुए बिना केजरीवाल निकल गए थे । दूसरी बैठक में उनकी मांग को मान लिया गया। जब से दिल्ली सेवा बिल, कानून बना है तब से उनकी पार्टी की I.N.D.I.A में भूमिका को लेकर संदेह की स्थिति में है। पिछले कुछ दिनों से केजरीवाल की चुप्पी ने भी इस संदेह को बढ़ा दिया है । क्योंकि जिस शर्त पर केजरीवाल की पार्टी I.N.D.I.A का हिस्सा बनी उसका अब कोई मतलब रह नहीं गया है।