केंद्र सरकार ने संसद में महिलाओं को आरक्षण देने वाले नारी शक्ति वंदन विधेयक को लोकसभा में इंट्रोड्यूस कर मोदी सरकार ने चर्चा का ग्राउंड बदल दिया है। 2024 के लोकसभा चुनाव में एनडीए के खिलाफ जिस क्राइसिस से I.N.D.I.A. जूझ रहा है, वो नारी शक्ति वंदन विधेयक ने और बढ़ा दिया है। आंशिक ही सही इस विधेयक ने I.N.D.I.A. के दलों के बीच आपसी असहमति का एक और मुद्दा ला दिया है। इस असहमति का ठीकरा जदयू के सिर फूटा है क्योंकि जदयू ने नारी शक्ति वंदन विधेयक का लोकसभा में समर्थन कर दिया है। जबकि राजद इस मामले पर विरोध में है। हालांकि राजद का कोई सांसद अभी लोकसभा में नहीं है।
ललन सिंह ने समर्थन के साथ दी चुनौती
दरअसल, नारी शक्ति वंदन विधेयक पर चर्चा के दौरान जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और लोकसभा में पार्टी के नेता ललन सिंह नारी शक्ति वंदन विधेयक को समर्थन दिया। उन्होंने कहा कि महिला सशक्तिकरण की वजह से हम बिल का समर्थन कर रहे हैं। लेकिन समर्थन के साथ ललन सिंह ने चुनौतियों की एक दीवार भी खड़ी कर दी। ललन सिंह ने चुनौती देते हुए कहा कि सरकार जो कह रही है, वो पूरा करे। क्योंकि सरकार जो बिल लाई है उसकी मंशा महिलाओं को लोकसभा और विधायकों को आरक्षण देना नहीं है। बल्कि 26 दलों का INDIA गठबंधन बना है उसका ये पैनिक रिएक्शन है।
नीतीश का गुणगान, मोदी-RSS पर निशाना
ललन सिंह ने अपने भाषण के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आरएसएस पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि यह विधेयक 2024 का चुनावी जुमला है। भाजपा महिलाओं को छलने की कोशिश कर रही है। 2014 में बेरोजगारों को छला, 2 करोड़ रोजगार का वादा करके। काला धन लाएंगे, 15 लाख पहुंचाएंगे, कहकर गरीबों को छला। अगर इनकी मंशा होती तो 2021 में इन्होंने जाति आधारित गणना करवा दी होती। वहीं आरएसएस पर बरसते हुए ललन ने कहा कि मोहन भागवत कहते हैं आरक्षण पर पुनर्विचार होना चाहिए। हम उन्हें बता दें कि आरक्षण आपकी कृपा से नहीं है, संविधान के अनुसार है।
साथ ही नीतीश कुमार का गुणगान करते हुए ललन सिंह ने कहा कि बिहार पहला राज्य है, जहां 2005 में सरकार बनी तब 2006 में महिलाओं को आरक्षण दिया। 2015 में जब महागठबंधन की सरकार बनी, तब 2016 में राज्य सरकार की सभी सेवाओं में 33 फीसदी आरक्षण महिलाओं को दिया गया। एक साल के अंदर यह काम किया गया। आपकी तरह साढ़े चार साल इंतजार नहीं किया।
I.N.D.I.A. में असहमति के अन्य मुद्दे
जातीय जनगणना पर एकमत नहीं
विपक्षी दलों के गठबंधन में वैसे तो 26 दल शामिल है। लेकिन ये सभी दल कई मुद्दों पर एकमत नहीं हैं। इसमें बड़ा मुद्दा जातीय जनगणना का है। जदयू और राजद तो बिहार में अपनी सरकार में जातीय जनगणना करा रही हैं। समाजवादी पार्टी और डीएमके के साथ कांग्रेस भी इसके पक्ष में ही बयान देती है। सोनिया गांधी ने नारी शक्ति वंदन विधेयक के दौरान जातिगत जनगणना की चर्चा की और उसका समर्थन भी किया। लेकिन ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और उद्धव गुट शिवसेना इस पर सहमत नहीं हैं। विपक्षी दलों की बैठक में बार बार तृणमूल के विरोध पर ही जातीय जनगणना को मुख्य एजेंडे में शामिल नहीं किया जा रहा है।
मीडिया के एंकर्स पर बैन से जदयू नाखुश
I.N.D.I.A. ने देश के 14 मीडिया एंकर्स के शोज में अपने प्रवक्ताओं को बैन कर दिया गया है। इन एंकर्स को बैन करने पर कांग्रेस, राजद उत्साहित है और उसके प्रवक्ता इसे खूब प्रचारित भी कर रहे हैं। लेकिन जदयू मीडिया के एंकर्स पर लगे बैन से नाखुश है। खुद नीतीश कुमार ने इस मामले पर अपनी आपत्ति जताई है। नीतीश कुमार ने इस मुद्दे पर कहा कि मीडिया पर आजादी के पक्ष में हम हैं। मीडिया को आजादी मिलेगी, तो जो मन होगा लिखा जाएगा। हम किसी के खिलाफ नहीं है। बैन गलत बात है।
पीएम उम्मीदवार पर चर्चा ही नहीं
विपक्षी दलों के गठबंधन में असहमति का सबसे बड़ा मुद्दा पीएम उम्मीदवार को लेकर है। पीएम उम्मीदवार कौन होगा, इस पर निर्णय तो दूर विपक्ष के दल अभी तक चर्चा भी नहीं कर पाए हैं। कभी नीतीश कुमार को पीएम का उम्मीदवार बनाने की दिशा में हवा बहने लगती है। तो राहुल गांधी तो एक उम्मीदवार हैं ही। ममता बनर्जी और दूसरे नेता भी पीछे नहीं हैं। समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो अखिलेश यादव ने तो एक बार यहां तक कह दिया है कि पीएम उम्मीदवार के लिए हमारे पास महिला, पुरुष, युवा, बुजुर्ग सभी प्रकार के उम्मीदवार हैं। हालांकि वे भी एक नाम नहीं बोल पाए। जबकि इतना तो स्पष्ट है कि पीएम तो एक ही व्यक्ति बनेगा।