रांची: जेएमएम ने अपने 35 प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है जिसमें दुमका सीट से सीएम के भाई बसंत सोरेन को उम्मीदवार घोषित किया गया है। इस घोषणा के बाद कई ऐसे चेहरे है जो मायूस हो गए है। उनमें एक नाम भाजपा से मुंह मोड़ कर गयी लुईस मरांडी और गणेश महली का है जिनके हिस्से प्रतीक्षा ही आई। बता दें बीती रात जेएमएम की जारी 35 प्रत्याशियों की सूची में लुईस और गणेश दोनो के नाम नही पाए गए। मालूम हो पूर्व मंत्री लुईस मरांडी ने बीजेपी पर आरोप लगा कर पार्टी को अलविदा कह दिया था। और इसकी वजह दुमका की सीट थी जिसपर वो चुनाव लडना चाहती थी। वहीं पिछली बार लुईस की करारी हार के बाद बीजेपी इस बार कोई जोखिम नहीं लेना चाहती। इसबार बीजेपी ने दुमका से सुनील सोरेन को अपना प्रत्याशी नियुक्त किया है। सबसे पहले बता दें कि कौन हैं सुनील सोरेन। सुनील सोरेन भारतीय जनता पार्टी के जुझारू नेता है। सोरेन दुमका जिले के जामा निर्वाचन क्षेत्र से झारखंड विधानसभा के सदस्य थे। दुमका की सीट से भाजपा के मजबूत लोकसभा प्रत्याशी के रूप में सुनील सोरेन की पहचान है। 2019 के लोकसभा चुनाव में सुनील ने जेएमएम के सिबू सोरेन को भारी मतों से पराजित किया था।
वहीं 2024 के चुनाव में उन्हें टिकट नहीं दिया गया था। शायद बीजेपी की ये विधानसभा की तैयारी थी क्योंकि इसके बाद बीजेपी के अलाकमान ने उनकी लोकप्रियता को देख झारखंड विधान सभा चुनाव में उन्हें टिकट दिया है। उनकी सशक्त दावेदारी पर भाजपा इसलिए भी भरोसा जताती है क्योकि पार्टी के अनुसार सुनील दुमका के लिए लूईस से अधिक उपयोगी है। वहीं बात करें लुईस मरांडी की तो फिलहाल उन्हें देख कर कहा जा सकता है कि न माया मिले न राम। बता दें लुईस मरांडी ने दुमका से 2014 विधान सभा में जीत हासिल की लेकिन 19 में वो हेमंत सोरेन से हार गई थी। दुमका उपचुनाव में भी हेमंत के छोटे भाई बसंत सोरेन ने सीट जीती थी। वहीं दुमका सीट के लिए बेकरार लुईस पर भाजपा दांव नहीं लगाना चाहती इसका कारण है कि बीजेपी का मानना है कि दुमका के ही पूर्व लोकसभा सासंद सुनील की पकड़ और लोकप्रियता लुईस से अधिक है। इसलिए बीजेपी ने उन्हें स्वाभाविक है कि सत्ता अपना प्रतिनिधी स्वयं चुनती है। वहीं दिल्ली दरबार के इस फैसले से नाखुश लुईस ने आनन फानन जेएमएम का दामन थाम लिया और शायद झामुमों पर भरोसा था कि वो उन्हें दुमका से सीट देंगे लेकिन बीती रात को आए जेएमएम के लिस्ट में भी दुमका सीट के लिए बसंत सोरेन को प्रत्याशी घोषित किया गया। वहीं सरायकेला में भाजपा के नए सदस्य चम्पई सोरेन को टिकट मिलने से तिलमिलाए गणेश महली को भी सरायकेला से कोई उम्मीदवारी नहीं मिली। तो कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि बीजेपी के भागे हुए ये नेता के हिस्से प्रतीक्षा ही आई है।
क्यों हॉट सीट बन गया है दुमका
दुमका विधानसभा सीट के इतने चर्चे क्यों है। सबसे पहले बता दें कि ये सीट झारखंड में अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित है। वहीं झारखंड राज्य के गठन के बाद सूबे की राजनीति का मुख्य केन्द्र बन गया है। वर्ष 2024 के झारखंड विधानसभा चुनाव में भी दुमका सीट से शिबू सोरेन के पुत्र और सीएम हेमंत सोरेन के छोटे भाई बसंत सोरेन की राजनीतिक प्रतिष्ठा दांव पर होगी। इसका कारण है कि बीजेपी भी दुमका को हॉट सीट मानती है। 2014 के मोदी लहर में लुईस भले ही दुमका जीत गई हों पर से सीट सोरेन परिवार की प्रतिष्ठा रही है। 2019 के चुनाव में इस सीट से पहले हेमंत सोरेन ने लुईस मरांडी को हराकर जीत हासिल की। लेकिन बरहेट विधानसभा सीट से भी जीत हासिल करने के कारण हेमंत सोरेन ने दुमका से त्यागपत्र दे दिया था और 2020 के उपचुनाव में बसंत सोरेन पहली बार दुमका सीट से विधायक बने। इसके बाद सीएम हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद बसंत सोरेन चंपाई सोरेन सरकार में मंत्री भी रहे। बता दें इस बार दुमका सीट के लिए दूसरे चरण में 20 नवंबर को वोट डाले जाएंगे। बता दें दुमका सीट जेएमएम के लिए पिछले चार दशकों से गढ़ रहा है, लेकिन 2014 के चुनाव में बीजेपी की लुइस मरांडी ने यहां से हेमंत सोरेन को पराजित करने में सफलता हासिल की थी। जेएमएम की सूची के अनुसार बसंत सोरेन दुमका से चुनाव मैदान में होंगे और उन्हें टक्कर देने के लिए बीजेपी की ओर से भी दमदार उम्मीदवार को मैदान में उतारे जाने की आवश्यक्ता थी। तो आला कमान ने पहले ही वहां पर सिबू सोरेन को पराजित किए हुए अपने पूर्व सांसद सुनील सोरेन के नाम पर मुहर लगा दी। वहीं बीजेपी ने बरहेट से हेमंत के विरूद्ध एक बार पुन. लुईस को टिकट देने की बात कही और मामला बिगड़ गया। बहरहाल चुनाव में दलबदल तो अब एक आप प्रक्रिया हो गयी है। इससे परहेज नहीं किया जा सकता।
क्या है दुमका का राजनीतिक इतिहास
दुमका विधानसभा क्षेत्र का गठन आजादी के बाद 1952 में दुमका और मसलिया प्रखंड क्षेत्र को मिलाकर किया गया था। जयपाल सिंह मुंडा की झारखंड पार्टी के टिकट पर देवी सोरेन पहली बार विधायक चुने गये थे। वही 1957 में नये परिसीमन के आधार पर दुमका विधानसभा क्षेत्र से जरमुंडी और देवघर जिले के सारवां प्रखंड के कुछ इलाकों को जोड़ कर दो सदस्यों के चुनाव का प्रावधान कर दिया गया। इसमें सामान्य और अजजा से एक एक सदस्यों के चुने जाने का प्रावधान किया गया। बता दें इस चुनाव में सामान्य जाति से झापा के टिकट पर सनाथ राउत और अजजा से बेनजामिन हांसदा विधायक निर्वाचित हुए। इसके उपरांत 1962 में इस सीट का पुनः नये सिरे से परिसीमन कर दिया गया। इसमें जरमुंडी और सारवां को अलग कर दुमका नगर सीट बनाया गया है, जबकि दुमका मुफस्सिल और जामा प्रखंड के कुछ इलाकों को जोड़कर अजजा के एक सदस्य के निर्वाचन का प्रावधान किया गया। इस चुनाव में झापा के टिकट पर पाल मुर्म विधायक चुने गये। इसके बाद 1967 में दुमका से मसलिया को जोड़ कर अजजा के लिए एक सदस्यीय विधायक चुने जाने का प्रावधान किया गया और जामा को अलग विधानसभा बना दिया गया। इसके बाद इस चुनाव में भारतीय जनसंघ के टिकट पर गोपाल मरांडी विधायक चुने गये। 1969 में दुमका अजजा सीट से कांग्रेस के पायका मुर्मू विधायक निर्वाचित हुए। 1971 में भी कांग्रेस के टिकट पर पायका मुर्मू पुनः विधायक चुने गये। 1977 में आपातकाल के बाद कांग्रेस के विरुद्ध चली बयार में जनता पार्टी के टिकट पर महादेव मरांडी गैर कांग्रेसी विधायक चुने गये। इसके बाद झारखंउ आंदोलन जोर पकड़ा और दुमका झामुमो की राजनीति का मुख्य केंद्र बन गया। यहां से शुरू हुई दुमका की नयी कहानी झामुमो के टिकट पर प्रो स्टीफन मरांडी 1980, 1985, 1990, 1995 और 2000 में लगातार विधायक निर्वाचित होते रहे। वहीं झारखंड गठन के बाद 2005 में झामुमो ने प्रो स्टीफन मरांडी को पार्टी टिकट वंचित कर पार्टी सुप्रीमो शिबू सोरेन के पुत्र वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का अपना प्रत्याशी बना कर मैदान में उतारा। लेकिन प्रो स्टीफन मरांडी ने टिकट कटने पर पार्टी से बगावत कर इस सीट पर बतौर निर्दलीय मैदान में उतरे और झामुमो के टिकट पर पहली बार मैदान में उतरे हेमंत सोरेन को हराकर लगातार छठी बार विधायक चुने। दुमका झामुमों का गढ़ है और यहा बीजेपी आना इसलिए भी जरूरी है। चलते चलते बता दें कि झारखंड विधानसभा चुनाव के पहले हुए लोकसभा में झामुमो को झटका लगा है। बता दें इस चुनाव में भले ही सीता सोरेन हार गयी हों पर वोट प्रतिशत बीजेपी की बढ़ी है। इस तरह 1952 से 2020 तक आजादी के 70 साल के अंतराल में इस क्षेत्र में उपचुनाव सहित विधानसभा के 17 चुनाव सम्पन्न हुए। इसमें से 11 बार झापा और झामुमो जैसे झारखंड नामधारी दलों के प्रत्याशी विधायक चुने जाते रहे। जबकि दो बार कांग्रेस और एक-एक बार भारतीय जनसंघ, जनता पार्टी, भाजपा और निर्दलीय प्रत्याशी इस क्षेत्र से विधायक निर्वाचित हुए।
दुमका: एक नजर
इस सीट पर 40 फीसदी आदिवासी, 40 फीसदी पिछड़ी जातियां और 20 प्रतिशत मुस्लिम वोटर हैं.
क्षेत्र: 3,761 वर्ग किमी
आबादी: 13,21,442
भाषा: हिंदी, संथाली
गाँव: 2925
पुरुष: 6,68,514
महिला: 6,52,928
झारखंड के दुमका में दमदार कौन साबित होगा ये तो समय ही बताएगा। लेकिन यहां बीजेपी और जेएमएम की टक्कर देखने लायक होगी। दुमका की इस सीट ने अच्छे अच्छों का दम बेदम कर दिया है।