इश्क और जंग में सब जायज हो या न हो, राजनीति में सबकुछ जायज है, यह कई बार साबित हुआ है। अपनी सीट बचाने के लिए, विरोधी हराने के लिए, वर्चस्व बनाए रखने के लिए राजनीति में अतरंगी फैसले लेने की कहानी पुरानी है। ताजा एक मामला झारखंड का है, जिसमें श्रम, नियोजन एवं प्रशिक्षण मंत्री सह राजद विधायक सत्यानंद भोगता ने अपनी राजनीतिक जमीन को बचाने के लिए अतरंगी काम किया है।
दरअसल, सत्यानंद भोगता जिस चतरा विधानसभा सीट से जीते हुए हैं, उस पर अगली बार वे चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। कुछ दूसरी जातीय उलझनों को सुलझाने के चक्कर में विधायक सत्यानंद भोगता की यह सीट उलझ गई है। लेकिन उलझन को मंत्री ने ऐसे सुलझाया है जो राजनीति का बड़ा उदाहरण बन सकता है। वैसे इसी से मिलता जुलता एक उदाहरण झारखंड के पड़ोसी राज्य बिहार का भी है। जहां राजनीतिक उलझन को सुलझाने के लिए धार्मिक बंधन को तोड़कर नया रिवाज पहले ही कायम किया जा चुका है।
जातीय समीकरण को शादी के बंधन से सुलझाया
दरअसल, चतरा के विधायक सत्यानंद भोगता जिस सीट से जीतते रहे हैं, वो सीट तो अभी भी अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है। लेकिन विधायक की जाति अनुसूचित जाति के घेरे से निकालकर अनुसूचित जनजाति में शामिल कर दी गई है। इसलिए 2024 में होने वाले झारखंड विधानसभा चुनाव में सत्यानंद भोगता चतरा सीट से उम्मीदवार नहीं बन सकते हैं। लेकिन संयोग कहें या इस सीट पर पारिवारिक वर्चस्व को कायम रखने की कवायद, सत्यानंद भोगता के तीसरे पुत्र मुकेश भोगता की शादी अनुसूचित जाति की रश्मि से हो गई है।
पुत्रवधू के जरिए अपनी राजनीतिक हैसियत को बरकरार रखने के लिए सत्यानंद भोगता चुनावी मैदान में उतरने को तैयार हैं। वे बहू रश्मि प्रकाश को अपने साथ क्षेत्र भ्रमण में लगाकर उनकी राजनीतिक पहचान स्थापित करने में जुट गए हैं। दूसरी ओर बताया यह जा रहा है कि खुद सत्यानंद भोगता चतरा से लोकसभा चुनाव लड़ने को इच्छुक हैं।
बिहार में टूटी थी धार्मिक दीवार
वैसे सत्यानंद भोगता की इस पहल से पहले बिहार में भी राजनीतिक वर्चस्व बनाए रखने की खातिर शादी के बंधन का इस्तेमाल पहले ही हो चुका है। मामला सत्ताधारी दल जदयू और सीवान की सांसद कविता सिंह से जुड़ा है। दरअसल, सीवान लोकसभा सीट से मौजूदा सांसद कविता सिंह का राजनीतिक कॅरियर बतौर विधायक शुरू हुआ था। लेकिन उनके विधायक बनने की कहानी रोचक है।
दरअसल, 2010 में दरौंदा सीट से जदयू की विधायक चुनी गईं थी जगमातो देवी। लेकिन 2011 में उनका निधन हो गया। जगमातो देवी के निधन के बाद उनके बेटे अजय सिंह ने जदयू नेतृत्व से अपने लिए टिकट मांगा। लेकिन कहा जाता है कि अजय सिंह की बाहुबलि की छवि के कारण उन्हें टिकट नहीं मिला। इसके बाद दरौंदा में पारिवारिक राजनीतिक अस्तित्व कायम रखने की कवायद में अजय सिंह ने पितृपक्ष की परवाह किए बिना कविता सिंह से शादी की और तब जदयू ने टिकट कविता सिंह को दे दिया। कविता सिंह उपचुनाव जीतीं। बाद में भी विधायक रहीं। इसके बाद 2019 में उन्होंने सीवान से लोकसभा चुनाव लड़कर मो. शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब को हराया।